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Article 15 Movie Review: समाज के क्रूर और गंदे चेहरे को बेनकाब करती है 'आर्टिकल 15'

फिल्म की कहानी दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को पूरी तरह दिखाती है

Updated on: 28 Jun 2019, 10:54 AM

नई दिल्ली:

फिल्म 'आर्टिकल 15' की शुरुआत ही ऐसे गाने से होती है जो हम सब को इस बात का एहसास दिला जाता है कि अभी भी समाज में जाति का भेदभाव चरम पर है. फिल्म की कहानी दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को पूरी तरह दिखाती है. अनुभव सिन्हा निर्देशित आर्टिकल 15 के ये संवाद फिल्म में दर्शाई हुई विडम्बना और चीत्कार को दर्शाने के लिए काफी हैं. फिल्म की कहानी समाज में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार और भेदभाव पर आधारित है. समाज में दलितों को आज भी हीन भावना से देखा जाता है और उन्हें समाज का हिस्सा नहीं समझा जाता. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 देश में किसी भी तरह के भेदभाव को नकारता है. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग किसी भी आधार पर. मगर यह भेदभाव आज भी समाज में है और इस कदर भयानक तौर पर है कि एक वर्ग विशेष को उनकी औकात दिखाने के लिए न केवल उनकी बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है बल्कि मार कर पेड़ पर लटका दिया जाता है.

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कहानी- आईपीएस अधिकारी अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) को लालगांव पुलिस स्टेशन का चार्ज दिया जाता है. यूरोप से हायर स्टडीज करके लौटा अयान इस इलाके में आकर बहुत उत्सुक है, मगर अपनी प्रेमिका अदिति (ईशा तलवार) से मैसेजेस पर बात करते हुए वह बता देता है कि उस इलाके में एक अलग ही दुनिया बसती है, जो शहरी जीवन से मेल नहीं खाती. अभी वह वहां के माहौल को सही तरह से समझ भी नहीं पाया था कि कि उसे खबर मिलती है कि वहां की फैक्टरी में काम करने वाली तीन दलित लड़कियां गायब हैं, मगर उनकी एफआरआई दर्ज नहीं की गई है. उस पुलिस स्टेशन में काम करने वाले मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा उसे बताते हैं कि इन लोगों के यहां ऐसा ही होता है. लड़कियां घर से भाग जाती हैं, फिर वापस आ जाती हैं और कई बार इनके माता-पिता ऑनर किलिंग के तहत इन्हें मार कर लटका देते हैं.

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दलित लड़की गौरा (सयानी गुप्ता) और गांव वालों की हलचल और बातों से अयान को अंदाजा हो जाता है कि सच्चाई कुछ और है. वह जब उसकी तह में जाने की कोशिश करता है, तो उसे जातिवाद के नाम पर फैलाई गई एक ऐसी दलदल नजर आती है, जिसमें राज्य के मंत्री से लेकर थाने का संतरी तक शामिल है. अयान पर गैंग रेप के इस दिल दहला देनेवाले केस को ऑनर किलिंग का जामा पहनकर केस खोज करने के लिए दबाव डाला जाता है, मगर अयान इस सामाजिक विषमता के क्रूर और गंदे चेहरे को बेनकाब करने के लिए कटिबद्ध है.

निर्देशन- निर्देशक अनुभव सिन्हा के निर्देशन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने जातिवाद के इस घिनौने रूप को थ्रिलर अंदाज में पेश किया और जब कहानी की परतें खुलने लगती है, तो दिल दहल जाने के साथ आप बुरी तरह चौंक जाते हैं कि इन तथाकथित सभ्य, परिवारप्रेमी और सफेदपोश किरदारों का असली रूप क्या है? फिल्म का वह दृश्य झकझोर देनेवाला है, जब अयान को पता चलता है कि मात्र तीन रुपये ज्यादा दिहाड़ी मांगने पर लड़कियों को रेप कर मार दिया गया. फिल्म में द्रवित कर देनेवाले ऐसी कई दृश्य हैं. निर्देशक ने फिल्म को हर तरह से रियलिस्टिक रखा है.

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एक्टिंग - मंगेश धाकड़े का संगीत प्रभावशाली है. समर्थ कलाकारों का अभिनय फिल्म का आधार स्तंभ है. एक हैंडसम, निर्भय और फर्ज को लेकर कटिबद्ध पुलिस अधिकारी के रूप में आयुष्मान खुराना ने करियर के इस पायदान पर बेहतरीन अभिनय किया है. उनके अभिनय की विशेषता रही है कि उन्होंने इसे कहीं भी ओवर द टॉप नहीं होने दिया. अपने किरदार को बहुत ही खूबसूरती से अंडरप्ले किया है. गौरा के रूप में सयानी गुप्ता ने शानदार अभिनय किया है.