1957 से लोकसभा चुनाव लड़ रहा खीरी का ये परिवार, 10 बार बने सांसद, अब तीसरी पीढ़ी मैदान में
लोकसभा चुनाव में जहां नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, वहीं कई बड़े रिकॉर्ड भी बन रहे हैं.
नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव में जहां नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, वहीं कई बड़े रिकॉर्ड भी बन रहे हैं. हम बात कर रहे एक ऐसे जिले की, जहां एक ही परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक सांसदी रही है. ये रिकॉर्ड खीरी लोकसभा सीट पर बना है. इस लोकसभा चुनाव में भी उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी जनता के बीच है.
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खीरी लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था. उस वक्त कांग्रेस की टिकट पर रामेश्वर दयाल नेवटिया ने चुनाव जीता था. 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नेवटिया को फिर रणभूमि पर उतारा, लेकिन वह हार गए. इसके बाद कांग्रेस ने 1962 के चुनाव में प्रत्याशी बदल दिया और गोला कस्बे के बाल गोविंद वर्मा को टिकट दिया. इसके बाद 1962, 1967 और 1972 में बाल गोविंद वर्मा ही सांसद रहे पर वह 1977 के चुनाव में जनता पार्टी से हार गए, लेकिन कांग्रेस का भरोसा उनसे कम नहीं हुआ.
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1980 में उनको फिर कांग्रेस ने उतारा और वह जीतकर आए. इस बीच 1980 में बाल गोविंद वर्मा का निधन हो गया. उनके निधन के बाद खाली हुई सीट पर मध्यावधि चुनाव हुआ, जिसमें उनकी पत्नी ऊषा वर्मा को कांग्रेस ने लड़ाया और वह जीतीं. इसके बाद 1984 और 1989 के चुनाव में भी ऊषा वर्मा सांसद रहीं. 1991 में भाजपा ने ऊषा वर्मा को मात दे दी. वह हारीं तो अगले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और वह सपा में शामिल हो गईं. बावजूद इसके 1996 के चुनाव में भी वह जीत नहीं सकीं. 1998 में दोबारा चुनाव हुआ तो पिता और मां की विरासत संभालने रवि प्रकाश वर्मा सामने आ गए. सपा से चुनाव लड़े रवि लगातार तीन बार सांसद रहे. वह 1998, 1999 व 2004 में सांसद रहे. अब उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी पूर्वी को सौंप दी है.
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गोला गोकर्णनाथ कस्बे के वर्मा परिवार को जनता ने जिताया भी खूब और हराया भी कम नहीं। बाल गोविंद वर्मा तो 4 बार लोकसभा जीते, महज 1 बार हारे. उनकी पत्नी ऊषा वर्मा लगातार दो बार चुनाव हारीं, जबकि तीन बार जीतीं. उनके बेटे रवि ने पांच चुनाव लड़े और दो चुनाव हारे. इस तरह ये परिवार 15 बार चुनाव मैदान में उतरा.
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