पांच साल पहले आई थी मोदी सूनामी, बीजेपी की जीत में थी नारों की भूमिका, जानें कैसे
16 मई 2014 को भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐसे दिन की तरह दर्ज हो गया, जिस दिन आए 'भूकंप' ने भारतीय राजनीति के आधार को ही इधर से उधर कर दिया.
highlights
- 2014 में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में नारों की भूमिका कम नहीं आंकी जा सकती, जो जुबान पर चढ़ गए.
- बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस 'हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की' के साथ चुनावी रण में उतरी थी.
- भारतीय राजनीति के लिहाज से बड़ा बदलाव था कांग्रेस का 2014 में 44 सीटों पर सिमट जाना.
नई दिल्ली.:
आज से ठीक पांच साल पहले नरेंद्र मोदी नाम की सूनामी ने दिल्ली के दिग्गज राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को ध्वस्त कर बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिलाया था. 16 मई 2014 को भारतीय राजनीति के इतिहास में एक ऐसे दिन की तरह दर्ज हो गया, जिस दिन आए 'भूकंप' ने भारतीय राजनीति के आधार को ही इधर से उधर कर दिया. बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए ने 336 सीटें हासिल कर एक नई इबारत गढ़ी थी.
2014 में कम नहीं थी नारों की भूमिका
बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत में नरेंद्र मोदी के नाम की तो अहमियत थी ही, लेकिन ऐसे नारों की भूमिका भी कम करके नहीं आंकी जा सकती, जो आते ही लोगों की जुबान पर चढ़ गए. बीजेपी ने अपना प्रमुख नारा 'अबकी बार मोदी सरकार' नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द रखा था, तो कांग्रेस 'हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की' के साथ आमने-सामने थे. यह अलग बात है कि नारों की इस लड़ाई में भी बाजी बीजेपी के हाथों रही. वजह यह रही कि बीजेपी के रणनीतिकारों ने अपना हर चुनावी नारा 'अबकी बार, मोदी सरकार' से जोड़ कर उछाला था.
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'अबकी बार मोदी सरकार'
बीजेपी ने इसे इस तरह उछाला कि हर नारे के साथ यह जुड़ कर लोगों के कानों तक पहुंचने लगा. मसलन 'बहुत हुआ किसानों पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार'. इन नारों से हर छोटे-बड़े बैनर, अखबार और टीवी चैनलों को पाट दिया गया था. इनके साथ नरेंद्र मोदी की अन्य बीजेपी नेताओं के साथ फोटो भी थीं. यह नारे इस कदर लोकप्रिय हुए कि आम आदमी भी हर नारे के साथ इसका इस्तेमाल करने लगे. 'अबकी बार मोदी सरकार' की लोकप्रियता का अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय -अमेरिकियों को लुभाने के लिए 'अबकी बार, ट्रंप सरकार' नारा गढ़ा था.
'हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की'
बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस 'हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की' के साथ चुनावी रण में उतरी थी. यह अलग बात है कि कांग्रेस के हाथ इस मोर्चे पर भी नाकामी ही हाथ लगी. कांग्रेस ने आम आदमी को इसके जरिये लुभाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रही. उस पर बीजेपी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा गढ़, उसकी मुसीबतें और बढ़ा दी थीं. यह नारा भी लोगों की जुबान की पर ऐसा चढ़ा कि कांग्रेस 2014 में 44 सीटों पर ही सिमट गई.
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'अच्छे दिन आने वाले हैं'
गर्म होते राजनीतिक तापमान के बीच बीजेपी ने 'अच्छे दिन आने वाले हैं' नारे को गढ़ा और युवाओं को केंद्रित कर उछाल दिया. युवा और पहली बार मतदान करने जा रहे किशोरों को यह नारा भी बहुत भाया. इसके इर्द-गिर्द गढ़े गए नारों ने युवा मतदाताओं के बीच बीजेपी की हवा बनाने में महती भूमिका निभाई.
'कट्टर सोच नहीं, युवा जोश'
कांग्रेस ने बीजेपी के 'अच्छे दिन आने वाले हैं' का जवाब देने के लिए 'कट्टर सोच नहीं, युवा जोश' का नारा गढ़ा, लेकिन यह किसी भी लिहाज से लोगों को प्रभावित करने में सफल नहीं रहा. यूपीए-2 के कार्यकाल में सामने आए घोटालों ने कांग्रेस की ऐसी छवि बनाई, जिसके साये में कांग्रेस की सारी रणनीति ध्वस्त हो गई.
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फिर आया 'जन-जन मोदी, घर-घर मोदी'
बीजेपी के प्रचार अभियान के लिए बूस्टर करार दिए जा सकने वाले दो नारे 'जन-जन मोदी, घर-घर मोदी' और 'सबका साथ सबका विकास' के साथ आई. पहले से ही आक्रामक प्रचार कर कांग्रेस को बैकफुट पर लाने वाली बीजेपी ने इन दो नारों के साथ कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी.
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