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Rajasthan Election: राजस्थान में भाजपा की जीत के क्या हैं कारण? जानें कांग्रेस की पांच बड़ी गलतियां 

Rajasthan Election: कांग्रेस की कई और योजनाएं भी जारी थीं. कांग्रेस के आलाकमान ने सचिन पायलट को इस चुनाव में शुरू से ही एकसाथ काम करने के मना लिया था. इसके बाद भी कुछ काम नहीं आया. 

Updated on: 03 Dec 2023, 04:05 PM

नई दिल्ली:

Rajasthan Election: राजस्थान के रण में कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत की जादूगरी काम नहीं आई. कांग्रेस को अभी तक रुझानों में हार का सामना करना पड़ रहा है. खबर लिखे जाने तक कांग्रेस सत्ता से बाहर होती दिखाई दे रही है. कांग्रेस की 25 लाख रुपये की हेल्थ इश्योरेंस स्कीम भी काम नहीं आई. कांग्रेस की कई और योजनाएं भी जारी थीं. कांग्रेस के आलाकमान ने सचिन पायलट को इस चुनाव में शुरू से ही एकसाथ काम करने के मना लिया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी प्रचार में उतरे, मगर कुछ काम नहीं आया. 

1. हेल्थ स्कीम का नहीं मिला लाभ 

राजस्थान में पब्लिक हेल्थ एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है. यहां पर सरकारी अस्पतालों की हालत सही नहीं है. वहीं प्राइवेट सेक्टर के अस्पताल इलाज के नाम पर लूट मचाते हैं. ऐसे में सरकार ने मध्यवर्गीय और गरीब लोगों के लिए एक हेल्थ स्कीम निकाली. चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना को लागू किया गया. इस स्कीम को फायदा उन्हें मिलना था, जिनकी आय 8 लाख रुपये से कम थी. इस योजना के लिए कांग्रेस ने 2021 से मशक्कत शुरू कर दी थी. पहले स्कीम के तहत पांच लाख रुपये की कैशलेस योजना थी. इसके बाद ये बढ़कर दस लाख रुपये हो गई. फिर बीमा की ये रकम बढ़ाकर 25 लाख रुपये तक कर दी गई. 

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इस बीमा योजना के तहत गंभीर बीमारियों के इलाज का बंदोबस्त है. इसमें कोविड 19, ब्लैक फंगस, हार्ट सर्जरी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, न्यूरो सर्जरी, पैरालाइसिस और कैंसर जैसी बीमारियों को रखा गया. योजना के तहत 425 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया. इसके तहत 25 मोबाइल फूड टेस्टिंग एम्बुलेंस और दस चिरंजीवी जननी एक्सप्रेस शामिल है. इस तरह से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सही वक्त पर इलाज देने की प्रक्रिया थी. 

2. इसलिए जनता ने नकारा

इतना सब किए जाने के बाद भी वोटरों ने इसे नकार दिया. जानकारों की मानें तो इस योजना का जिस जोरशोर से ऐलान किया गया था. उस स्तर पर इसे लागू करने में सरकार पूरी तरह से विफल रही.

3, गुटबाजी में लगे रहे कांग्रेस नेता

सरकारी पूरे साल गुटबाजी में उलझी दिखी. सचिन पायलट के पहले विद्रोह के बाद मंत्रियों का सारा ध्यान सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत करने में रहा. इसके उलट भाजपा ने अपनी सारी ताकत  चुनाव जीतने में लगा दी. भाजपा में वसुंधरा राजे कई मौकों पर सबसे आगे दिखीं. मगर पार्टी ने उन्हें इस तरह का कोई अवसर ​नहीं दिया, जिससे पार्टी गुट में बंट जाए. केंद्रीय नेतृत्व ने पूरी ताकत लगाकर प्रचार किया. वहीं कांग्रेस के पास नेताओं की कमी देखने को मिली, जिससे मतदाता एकजुट हो सकें. इसका रिजल्ट ये हुआ कि राजस्थान की सत्ता पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती चली गई. 

4. कांग्रेस में सीएम पद को लेकर चेहरा साफ नहीं

कांग्रेस में बीते काफी समय से एक गुट सचिन पायलट को सीएम के चेहरे के रूप में देख रहा था. मगर चुनाव में आलाकमान की ओर से गहलोत को ही आगे बढ़या जा रहा था. ऐसे में जनता के बीच कंफ्यूजन की स्थिति थी. राजस्थान का युवा सचिन पालट के पक्ष में था. 

5. कांग्रेस की बूथ लेवल पर पकड़ नहीं 

कई सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी ये मान के चल रही थी कि इन सीटों पर वह जीत दर्ज करेगी. मगर ऐसा नहीं हुआ. बताया जा रहा है कि बूथ लेवल पर भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी. इसका नतीजा ये है कि पार्टी 115 के आसपास सीटें लेकर आ रही है.