लोकसभा चुनाव: गांधी परिवार की बहू होने के बाद भी आखिर कांग्रेस छोड़ BJP का दामन क्यों थामा था मेनका गांधी ने
साल 2014 में आई ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, मेनका गांधी के पास 37 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. मेनका गांधी ने अपने संसदीय फंड की करीब 87 फीसदी राशि खर्च की है.
नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो चुका है. चुनावी मैदान में उतरने के लिए कई पार्टीयों ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी है. ऐसे में हमने भी चुनाव के लिए अपनी तैयारी पूरी कल ली है. तो आइए इस लोकसभा चुनाव से पहले जानिए अपने सांसद और संसदीय क्षेत्र के बारें में. आज हम आपतो बताएंगे उत्तर प्रदेश पीलीभीत लोकसभा सीट से सांसद मेनका गांधी के बारे में जो कि सरकार में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री है.
ये भी पढ़ें: Lok Sabha Election 2019 : आइए जानते हैं केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के संसदीय क्षेत्र पीलीभीत के बारे में
जीनव परिचय
मेनका गांधी का जन्म 23 अगस्त 1956 में दिल्ली में हुआ था. उनकी शिक्षा लारेंस स्कूल, सनवर और उसके बाद क लेडी श्रीराम कालेज से हुई थी.राजनीति में आने से पहले वे एक पत्रकार थीं और उन्होंने अब तक कई किताबें भी लिख चुकी हैं. मेनका गांधी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छोटी बहू हैं उनका विवाह उनके छोटे बेटे संजय गांधी से हुआ था. गांधी परिवार से होने के बाद भी वो कांग्रेस का हिस्सा नहीं है. दरअसल, पारिवारिक कलह की वजह से उन्होंन कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया था.
मेनका गांधी का राजनीतिक सफर
साल 1980 में कांग्रेस नेता संजय गांधी की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. जिसके बाद से ही मेनका गांधी ने कांग्रेस से दूरी बनाना शुरू कर दिया था. साल 1988 में उन्होंने जनता दल का दामन थामा था, लेकिन 2004 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई थीं. 1989 से ही वह यहां चुनाव लड़ रही हैं, सिर्फ 2009 में उनकी जगह उनके बेटे वरुण गांधी यहां से चुनाव लड़े थे.
16वीं लोकसभा में मेनका गांधी ने सदन की कुल 23 बहस में हिस्सा लिया. मेनका गांधी ने इस कार्यकाल में सरकार की ओर कई बिल भी पेश किए. साल 2014 में आई ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, मेनका गांधी के पास 37 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. मेनका गांधी ने अपने संसदीय फंड की करीब 87 फीसदी राशि खर्च की है.
मेनका गांधी एक जानी-मानी पर्यावरणवादी कार्यकर्ता हैं. भारत में पशु-अधिकारों के प्रश्न को मुख्यधारा में लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. सन् 1992 में उन्होंने पीपल फॉर एनिमल्स (People for Animals) नामक एक गैर्-सरकारी संगठन शुरू किया था, जो पूरे भारत में (पशु) आश्रय चलाता है.
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