भारत को कर्ज में कमी लाने, राजकोषीय पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत: मुद्राकोष
जी-20 के तहत भारत ने पहले ही तिमाही आधार पर राजकोषीय सूचना प्रकाशित करने की प्रतिबद्धता जतायी है.
दिल्ली:
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारत को अपने सार्वजनिक क्षेत्र की कर्ज जरूरतों में कमी लाकर रिण कटौती की अपनी प्रतिबद्धता दोहरानी चाहिए तथा राजकोषीय पारदर्शिता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. आईएमएफ का कहना है कि इससे निवेशकों को आर्थिक निर्णय लेने में आसानी होगी. उसने कहा कि राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर कुछ सुधार के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) हिस्सेदारी के रूप में कर्ज में पिछले एक दशक में बहुत कम बदलाव आया है. इसका कारण बजट से बाहर होने वाले वित्त पोषण का बढ़ना है. आईएमएफ ने कहा, 'अधिक राजकोषीय पारदर्शिता का मतलब है कि भारत में आर्थिक नीतियां बेहतर होंगी... दुनिया के समक्ष भारत के वास्तविक राजकोषीय रुख का नीति निर्माताओं और भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हो सकता है.'
उसने कहा कि जी-20 के तहत भारत ने पहले ही तिमाही आधार पर राजकोषीय सूचना प्रकाशित करने की प्रतिबद्धता जतायी है. इससे बेहतर निगरानी और तेजी से नीतिगत कदम उठाये जा सकेंगे. आईएमएफ ने कहा, 'इसके पूरक के रूप में भारत को लोक उपक्रमों खासकर राज्यों के स्तर पर सरकारी कंपनियों के बारे में सूचनाओं के खुलासे में सुधार करना होगा ताकि वित्तीय संकट के मामलों का बेहतर आकलन किया जा सके और करदाताओं के लिये लागत को कम किया जा सके.' उसने कहा कि भारत में राजकोषीय नीतियों के संदर्भ में जो चर्चा होती है, उसमें केंद्र तथा राज्य सरकार के घाटों पर जोर होता है.
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आईएमएफ के अनुसार सरकार की राजकोषीय स्थिति का प्रासंगिक और व्यापक कारक तथा जिसका अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है, वह है सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की कर्ज की जरूरत. यह बढ़कर जीडीपी का करीब 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है. बहुराष्ट्रीय संस्था ने कहा, 'अनुमान में केंद्र सरकार के खर्च को लेकर कुछ सूचना है जिसका वित्त पोषण बजट से इतर अन्य माध्यम से किया गया है. लेकिन इसमें राज्यों के सार्वजनिक उपक्रमों और सरकार के निचले निकायों के बारे में सूचना का अभाव है....' मुद्राकोष ने कहा कि भारत के मामले में हाल के वर्षों में घरेलू शुद्ध वित्तीय बचत सरकारी कर्ज जरूरत के मुकाबले कम रही है. इसका मतलब है कि निजी निवेश वाली परियोजनाओं को वित्त पोषण को लेकर समस्या का सामना करना होता है.
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इससे वित्त पोषण की लागत महंगी होती है और जो संभावित व्यवहारिक परियोजनाएं हैं, उसे शुरू करने में समस्या आती है. आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक कर्ज की जरूरत के कारण भारत की विकसित अर्थव्यवस्था की क्षमता प्रभावित हो रही है. इसकी वजह निजी क्षेत्र के निवेश का महंगा होना है. कोष ने सुझाव दिया है कि भारत को आने वाले वर्ष में अपने सार्वजनिक क्षेत्र के कर्ज में कमी लानी चाहिए. आईएमएफ ने कहा, 'राजकोषीय पारदर्शिता बढ़ाने तथा उसकी जानकारी देने में सुधार के उपायों की पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होगी.'
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