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Budget 2019 :जब बजट भाषण के दौरान मनमोहन सिंह ने पढ़ी थी ये शायरी

आइए जानें बजट भाषण के दौरान पढ़ी गईं ऐसी ही कुछ कविताएं और शायरियां-

Updated on: 01 Feb 2019, 02:57 PM

नई दिल्‍ली:

बजट के भाषण नीरस और ऊबाऊ होने से बचाने में वित्‍त मंत्रियों ने अपने बजट भाषण में कई बार शेर-ओ-शायरी, चुटकुले और दूसरी कई किताबों के कोटेशन भी बोलते रहे हैं. आइए जानें बजट भाषण के दौरान पढ़ी गईं ऐसी ही कुछ कविताएं और शायरियां-

1. अरुण जेटली (2016-17)

तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण की शुरुआत पिछली सरकार द्वारा उन्हें मिली खराब अर्थव्यवस्था का ज़िक्र करते हुए की. हालांकि आगे उन्होंने कहा, 'अच्छी बात यह है कि हम जानते हैं कि इसे कैसे सही करना है'. फिर उनके अंदर का शायर जाग उठा और उन्होंने उर्दू शायरी पढ़ी-

कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें,
लहर-लहर तूफान मिले और मौज-मौज मजधार हमें,
फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको,
इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें.

2. मनमोहन सिंह (1990-91)

तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने 1991 के बजट भाषण के दौरान भारत को पूरी तरह से बदल कर रख दिया. उस साल जो आर्थिक सुधार लागू किए गए थे, उनसे सेवा क्षेत्र में उदारीकरण आया. उन्होंने संसद में अलामा इकबाल की लाइनें पढ़ीं-

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोम सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाकी नामो-निशां हमारा

3. प्रणब मुखर्जी (2009-10)

महात्मा गांधी और कौटिल्य से प्रेरित प्रणब मुखर्जी ने संसद में कौटिल्य की लिखी हुई किताब अर्थशास्त्र की पंक्तियां पढ़ी थीं-

'किसी देश की प्रगति के लिए उस देश के राजा को आने वाली विपदाओं को लेकर पहले से ही सजग रहना चाहिए और उन्हें समय से पहले खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए, आर्थिक प्रगति में आने वाली सभी बाधाओं को खत्म करना चाहिए और राजस्व की हानि को कम करने की कोशिश करनी चाहिए.'

4. अरुण जेटली (2015-16)


यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए वित्त मंत्री ने हिंदी कविता की कुछ पंक्तियां पढ़ीं-

कुछ तो गुल खिलाए हैं, कुछ अभी खिलाने हैं,
पर बाग में कांटे अब भी कुछ पुराने हैं...

5. अरुण जेटली (2017-18)
मोदी सरकार की काले धन के खिलाफ लड़ाई को लेकर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा-

नई दुनिया है, नया दौर है, नई है उमंग,
कुछ थे पहले से तरीके तो कुछ हैं आज के रंग-ढंग
रोशनी आ के जो अंधेरों से टकराई है,
काले धन को भी बदलना पड़ा अपना रंग

6. यशवंत सिन्हा (2001-02)

बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि इसका उद्देश्य दूसरी पीढ़ी के रिफॉर्म को टारगेट करना है. उन्होंने ये कविता पढ़ी-

तकाज़ा है वक्त का कि तूफान से जूझो
कहां तक चलोगे किनारे-किनारे


पी चिदंबरम ने 1997 में बजट पेश करते हुए तमिल कवि तिरुवल्लुवर की पंक्तियां पढ़ी थीं- ' इदिप्परई इल्लाथा इमारा मन्नान केदुप्पार इलानुअम केदुम (उस राजा पर नजर रखें जो ऐसे लोगों पर भरोसा नहीं करता जो उससे खरी बात कहते हैं, उसका कोई दुश्मन न हो तो भी वह बर्बाद हो सकता है