बिहार: एक ऐसा शहर जहां फसल की जगह उगते हैं बूदंक, चंद रुपयों में मिल जाते हैं AK 47 जैसे हथियार
आपने बीते दिनों बिहार लगातार प्रतिबंधित खतरनाक हथियार AK 47 के लगातार मिलने की खबर सुनी होगी। इस खबर से अगर आपको हैरानी हो रही तो तो हम बता दें कि बिहार में एक हथियारों का ही पूरा शहर है और इसका नाम है मुंगेर
नई दिल्ली:
आपने बीते दिनों बिहार लगातार प्रतिबंधित खतरनाक हथियार AK 47 के लगातार मिलने की खबर सुनी होगी। इस खबर से अगर आपको हैरानी हो रही तो तो हम बता दें कि बिहार में एक हथियारों का ही पूरा शहर है और इसका नाम है मुंगेर। जी हां मुगल काल के मीर कासिम से आज के नीतीश कुमार तक के शासनकाल में इस शहर का परिचय नही बदला और अब तो यह AK 47 वाला शहर है। मुंगेर के हर कोने से इन दिनों निकल रहे ak 47 की वजह से नक्सल से आतंकियों तक के तार जुड़े होने की जांच चल रही है। इस AK 47 बंदूक को लेकर कई राज्यों से जुड़ा एक अनोखे संगठित गिरोह के नेटवर्क की कहानी सामने आ रही है जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
कैसे मुंगेर में शुरू हुआ हथियार का निर्माण
इतिहास के मुताबिक बंगाल के मुगल शासक मीर कासिम ने अपने सेनापति गुरगीन खां को सैन्य शक्ति के विस्तार के लिए बंगाल से मुंगेर भेजा था। कहा जाता है कि गुरगीन ने बंगाल से अपने साथ 18 हथियार कारीगर मुंगेर लेकर आया था। उन्होंने मुंगेर के लोगों को उस समय खुले रूप से हथियार बनाने का प्रशिक्षण दिया था।
प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में हथियार का निर्माण होता था। इस पर कोई प्रतिबंध नहीं था। हथियार से मुगल अपने सैन्य शक्ति का विस्तार कर साम्राज्य विस्तार कर रहे थे। बाद में मुगलों का शासन खत्म हुआ और अंग्रेजों ने शासन करना शुरू किया लेकिन फिर भी हथियार निर्माण का व्यापार मुंगेर में बदस्तूर चलता रहा।
देश आजाद होने के बाद इसे एकीकृत कर मुंगेर बंदूक कारखाना का नाम दिया गया। मुगल शासक के बाद अंग्रेजों के जाने से पहले ही बंदूक कारखाना की स्थिति बदतर होने लगी थी। आजादी के बाद तो बंदूक कारखानों में बंदूक निर्माण खत्म सी हो गई थी। यहां के सैकड़ों कारीगर बेरोजगार होने लगे थे। यही कारीगर चोरी छिपे बाहर में हथियार का निर्माण करने लगे। बाहर निर्माण करने के एवज में इन्हें कम समय में अधिक पैसा मिलता था इस कारण मुंगेर धीरे-धीरे अवैध हथियार की काली मंडी के रूप में पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया। पहले यहां सिर्फ देसी कट्टा, एक नाली बंदूक का निर्माण होता था। बदलते समय के साथ देशी कट्टा की जगह सिक्सर, छह चक्रीय रिवाल्वर, फिर 9mm पिस्टल , कार्बाइन के बाद अब एक 47 जैसे हथियार यहां पर असेंबल (पुर्जों को जोड़कर) होने लगे।
क्यों बना मुंगेर अवैध हथियारों की काली मंडी
मुंगेर बंदूक कारखाना में कुशल कारीगर हैं। फिर भी इस कारखाना में काम नाम मात्र है इस कारण इससे आश्रित लोग दाने-दाने को मोहताज है। वहीं अवैध हथियार निर्माता और तस्कर इन्हें मोटे पैसे का लालच देकर अपनी और खींच लेते हैं। जिसके कारण वह व्यापार फल फूल रहा है। पुलिस के दबिश के कारण हथियार निर्माण में कमी तो आई है लेकिन अब नए नए किस्म के हथियार असेंबलिंग कर इसे बाहर भेजने का भी नेटवर्क तैयार हो गया है।
शुरू से ही मुंगेर हथियार निर्माण और तस्करी के लिए भारत में प्रसिद्ध हो गया था. बताया जाता है कि इलाके में मुफस्सिल थाना क्षेत्र के बरदह इलाके में हर तीन घर में से एक घर हथियार तस्करी और निर्माण में जुड़ा हुआ है। इस मामले में कई लोग जेल भी जा चुकें हैं। ऐसा लगता है यहां के खेत में फसल की जगह हथियार उगते हैं. , कुएं से पानी की जगह एके 47 निकलता है। यहां कम कीमत में आसानी से आधुनिक से आधुनिक हथियार मिल जाते हैं।
मुंगेर के एक कुएं में मिल चुके हैं 10 से ज्यादा AK 47
दरअसल 29 अगस्त को मुंगेर पुलिस ने जमालपुर थाना क्षेत्र के जुबली वेल के पास एक हथियार तस्कर इमरान को एक बैग में रखे तीन एके 47 सहित कई पार्ट्स के साथ गिरफ्तार किया था। पूछताछ में तस्कर ने मध्य्प्रदेश के जबलपुर निवासी पुरुषोतम लाल के नाम का खुलासा किया था। जिसके बाद मुंगेर एसपी के निर्देश पर दो टीम का गठन किया गया और एक टीम जबलपुर और दूसरी टीम पश्चिम बंगाल भेजी गई।
वहीं जबलपुर में पुरुषोतम लाल से पूछताछ के दौरान खुलासा हुआ की 29 अगस्त को लोकमान्य तिलक ट्रेन से वो और उसकी पत्नी जबलपुर से एके 47 के दो बैग लेकर जमालपुर स्टेशन आया था और एक बैग इमरान और दूसरा बैग मो शमशेर आलम को दिया था। जिसके बाद पुलिस ने 6 सितम्बर को शमशेर उसकी वहन रिजवाना बेगम के घर से एक बैग में तीन एके 47 के साथ गिरफ्तार किया था। 14 सितंबर को अमना खातून को भी एके 47 के साथ गिरफ्तार किया गया।
28 सितंबर को पुलिस ने 12 एके 47 बंदूक बरदह के एक कुएं से बरामद किया। इस मामले में तस्कर मुफसिल थाना क्षेत्र के तौफीर निवासी तनवीर अख्तर को हजारीबाग से गिरफ्तार किया गया। एके 47 के मामले में मुंगेर पुलिस ने पश्चिम बंगाल के बागडोगरा में सेना में पदस्थापित शमेशर के भाई नियाजुल रहमान उर्फ़ गुल्लो को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
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कैसे शुरू हुआ AK 47 की तस्करी का यह पूरा खेल
दरअसल ये तस्करी का पूरा खेल तब शुरू हुआ जब जबलपुर में स्थित सेंट्रल आर्डनेंस डिपो में सीनियर स्टोर कीपर के पद पर काम करने वाले सुरेश ठाकुर की पुरुषोतम लाल से घनिष्ठ जान पहचान हुई। वहीं साल 2003-04 में बिहार रेजिमेंट के 5 /11 में परुषोतम लाल की मुलाकत बिहार के मुंगेर जिला के बरदह निवासी नियाजुल रहमान से हुई दोनों में गहरी दोस्ती थी। वहीं सेना में पदस्थापित नियाजुल रहमान का छोटा भाई शमशेर भी भाई से मिलने जाता था इस दौरान उसकी भी पुरुषोतम लाल से अच्छी दोस्ती हो गयी।
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रिटायरमेंट के बाद शुरू हुई हथियारों की डील
दरअसल पुरुषोतम लाल जब सेना से रिटायर हो गया तो वो एक बार वो मुंगेर आया। जहां अपने दोस्त नियाजुल रहमान के घर बरदह में रुका था। वहीं नियाजुल रहमान के छोटे भाई शमशेर और इमरान से मुलाकात हुई। इनलोग ने परुषोतम लाल को बताया की भागलपुर जिला नक्सलियों का क्षेत्र है और यहां एके 47 की काफी डिमांड है। इसके बाद से परुषोतम लाल ने आर्डनेंस फैक्टरी स्टोर कीपर के तौर पर काम करने वाले सुरेश ठाकुर से संपर्क किया हथियार तस्करी का खेल शुरू कर दिया। पुलिस के मुताबिक पुरुषोतम 2012 से लेकर 2018 तक 70-80 एके 47 रायफल शमशेर और इमरान को दे चूका है।
अब पुलिस पुरुषोत्तम लाल और उसके पुत्र के साथ ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का पुराना डिपो मैनेजर और तीन और लोगों से इस मामले में पूछताछ कर रही है।
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