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पाक अदालत ने अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के मुख्य आरोपी की मौत की सजा कैद में बदली

न्यायाधीश मोहम्मद करीम खान आगा की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ ने दोषियों की 18 साल पहले दाखिल की गई अपीलों पर यह फैसला सुनाया

Updated on: 02 Apr 2020, 03:13 PM

नई दिल्ली:

पाकिस्तान की एक अदालत ने 2002 के अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या मामले के मुख्य आरोपी एवं ब्रिटेन में जन्मे अहमद उमर शेख की मौत की सजा गुरुवार को सात साल कैद में बदल दी और साथ ही तीन अन्य को मामले में रिहा कर दिया. ‘दि वाल स्ट्रीट जर्नल’ के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख पर्ल को 2002 में कराची से अगवा कर लिया गया था और उसके बाद गला काट कर उनकी हत्या कर दी गई थी. सिंध हाईकोर्ट ने आतंकवाद रोधी अदालत : एटीसी : द्वारा शेख को सुनाई गई मौत की सजा को पलट दिया और तीन अन्य दोषियों फहद नसीम, सलमान साकिब और शेख आदिल को बरी कर दिया.

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न्यायाधीश मोहम्मद करीम खान आगा की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ ने दोषियों की 18 साल पहले दाखिल की गई अपीलों पर यह फैसला सुनाया. पीठ ने राज्य की उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें तीनों सह आरोपियों की सजा की अवधि को आजीवन कारावास में बदलने की अपील की गयी थी. रिपोर्ट के अनुसार, शेख की सात साल की जेल की सजा उसके जेल में बिताए गए समय से गिनी जाएगी. वह पिछले 18 साल से जेल में है.मामले में दलीलें पेश करते हुए याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके मुवक्किलों के खिलाफ मामला साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है. और अभियोजन पक्ष के अधिकतर गवाह पुलिसकर्मी थे जिनकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

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उन्होंने आगे कहा था कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष नसीम और आदिल के इकबालिया बयान दोषपूर्ण और स्वैच्छिक नहीं थे. उनका यह भी कहना था कि नसीम से लैपटाप की बरामदगी की तारीख 11 फरवरी 2002 दिखाई गई थी जबकि कम्प्यूटर विशेषज्ञ रोनाल्ड जोसेफ ने अपनी गवाही में कहा था कि उन्हें जांच के लिए कम्प्यूटर चार फरवरी को दिया गया था और उन्होंने छह दिन तक लैपटाप की जांच की थी. उप महाभियोजक सलीम अख्तर ने निचली अदालत के फैसले का समर्थन करते हुए कहा था कि अभियोजन ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ पूरा मामला साबित कर दिया हैऔर इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं बची है. लिहाजा इनकी याचिकाओं को खारिज किया जाए.

दि एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में एटीसी ने सह आरोपी कारी हाशिम को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. उसी साल शेख ने कथित रूप से जेल में आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पर्ल की हत्या के बाद उसकी जांच के उपरांत जनवरी 2011 में जार्जटाउन यूनिवर्सिटी में पर्ल प्रोजेक्ट द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि पर्ल हत्याकांड में गलत लोगों को सजा दी गयी.