विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का हक नहीं, हाईकोर्ट ने भी माना था: रामलला के वकील
अब रामलला की ओर से सी.एस.वैद्यनाथन ने बहस शुरू कर दी है वो इस पर दलील दे रहे है कि कैसे जन्मस्थान को भी देवता की तरह 'न्यायिक व्यक्ति' का दर्जा है.
नई दिल्ली:
अयोध्या मामले में रामलला की ओर से पूर्व AG के परासरन की दलील मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट पूरी हो चुकी है. इस दौरान 92 साल के परासरन ने खड़े होकर कुल मिलाकर 11 घन्टे जिरह की और कानूनी दलीलों के साथ आध्यत्मिक पक्ष को भी बखूबी रखा. हालांकि कोर्ट ने बीच में उन्हें बैठ कर जिरह करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने विनम्रता से ये कहते हए इंकार कर दिया कि परंपरा इसकी इजाजत नहीं देते और मैं खड़े होकर ही अपनी बात रखूंगा.
के परासरन ने इस बात पर भी ऐतराज किया कि जिरह के दौरान दूसरे पक्ष के वकील ब्रेक लें. परासरन ने कहा कि ये वकील की ड्यूटी है कि वो जिरह के बीच कोर्ट न छोड़े ,हो सकता है कि मेरी जिरह के बीच कोर्ट को दूसरे पक्ष से सवाल पूछने की ज़रूरत लगे. अब रामलला की ओर से सी.एस.वैद्यनाथन ने बहस शुरू कर दी है वो इस पर दलील दे रहे है कि कैसे जन्मस्थान को भी देवता की तरह 'न्यायिक व्यक्ति' का दर्जा है.
जन्मस्थान को न्यायिक दर्जा होने की दलील को आगे बढ़ाते हुए सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मंदिर के अस्तित्व के लिए मूर्ति का होना ज़रूरी नहीं है. कैलाश पर्वत और कई नदियों की लोग पूजा करते हैं. वहां कोई मूर्ति नहीं है.
जस्टिस अशोक भूषन ने भी एक तरह से सहमति जताते हुए चित्रकूट में कदमगिरी परिक्रमा का हवाला देते हुए कहा कि माना जाता है कि वनवास के दिनों में राम, लक्ष्मण , सीता वहां रहे थे. वैद्यनाथन ने कहा कि - जन्मस्थान अपने आप में देवता है. निर्मोही अखाड़ा ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं मांग सकता.
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वैद्यनाथन ने कहा कि हाई कोर्ट के तीनों जज भी इसको लेकर एक राय थे कि विवादित ज़मीन पर कभी भी मुस्लिम पक्ष का अधिकार नहीं रहा और तीनों ने वहां मंदिर की मौजूदगी को माना था. हालांकि जस्टिस एस यू खान की राय थोड़ा अलग थी, पर उन्होंने भी पूरी तरह से मंदिर की बात को खारिज नहीं किया था. इसके अलावा उस फैसले में ये भी माना गया था कि दिसंबर 1949 में मूर्तियां रखे जाने के बाद वहां कभी नमाज नहीं पढ़ी गई.
इससे पहले 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दलील देते वक्त परासन ने कहा था कि इसमे कोई दो राय नहीं कि विवादित जगह ही जन्मस्थान है. हिन्दू और मुस्लिम दोनों इसे मानते हैं. सुनवाई के दौरान जस्टिस अशोक भूषण ने परासरन से पूछा कि क्या जन्मस्थान को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा देते हुए मामले में पक्षकार बनाया जा सकता है. हम जानते है कि मूर्ति (देवता) को कानूनन जीवित व्यक्ति का दर्जा हासिल है, लेकिन जन्मस्थान को लेकर क्या कानून है.
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परासरन ने जवाब दिया था ये तय होना अभी बाकी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ मूर्ति को कानूनन जीवित व्यक्ति का दर्जा हासिल है. जस्टिस बोबड़े ने ध्यान दिलाया कि हालिया फैसले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नदी को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था.
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