Emergency 1975: 'लोक नायक' जयप्रकाश नारायण...जे.पी. आंदोलन और इंदिरा गांधी की बर्बादी!
25 जून 1975 ये वो काला दिन था जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती है. आयरन लेडी मानी जानेवाली इंदिरा गांधी एक ही झटके में विलन बन गईं. प्रेस पर पूरी तरीके से प्रतिबंधन लगा दिया गया. पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं को चुन-चुनकर जेल भेजा जाने लगा.
highlights
- 'लोक नायक' जयप्रकाश नारायण की कहानी
- जेपी आंदोलन के नायक जयप्रकाश नारायण कहानी
- इंदिरा गांधी की सरकार हिलाकर रख दी थी
- इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े होने वाले पहले विपक्ष के नेता थे जेपी
- सम्पूर्ण क्रांति के जनक थे जयप्रकाश नारायण
Patna:
25 जून 1975 ये वो काला दिन था जब देश में आपातकाल की घोषणा की जाती है. आयरन लेडी मानी जानेवाली इंदिरा गांधी एक ही झटके में विलन बन गईं. प्रेस पर पूरी तरीके से प्रतिबंधन लगा दिया गया. पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं को चुन-चुनकर जेल भेजने का काम किया जाने लगा. इसी दौरान बिहार के पुत्र जेपी साहब यानि जय प्रकाश नारायण ने आंदोलन शुरू किया. उनकी ही वजह से तमाम क्षेत्रीय पार्टियां बनीं और ये अलग बात है कि जेपी आंदोलन से निकले माननीयगण अब उनकी याद यदा-कदा ही करते हैं. इस मौके पर हम याद करते हैं बिहार के लाल 'लोक नायक' जयप्रकाश नारायण जी को और उनके द्वारा किए गए कामों को.
- जेपी आंदोलन के कर्ता धरता जयप्रकाश नारायण
- बिहार की धरती के असली नायक, विपक्षी की शक्ति का कराया एहसास
- जेपी आंदोलन से निकली हैं जेडीयू, आरजेडी समेत तमाम पार्टियां
1974 में जेपी ने एक आंदोलन की शुरुआत की.. देखते ही देखते आंदोलन देशव्यापी हो गया और इस आंदोलन का नाम हमेसा-हमेसा के लिए भारतीय राजनीति के इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिख गया.. जेपी की अगुवाई में छात्र आंदोलन की वो बयार उठी जिसने सत्ता की शीर्ष को हिलाकर कर रख दिया. जय प्रकाश नारायण जिन्हें आम तौर पर जेपी के नाम से जाना जाता था. जेपी का नाम जैसे ही जुबां पर आता है आंखों के सामने एक ऐसे जननायक की तस्वीर उभरती है जिसे न सरकार का डर था न गिरफ्तारियों का. सिर्फ एक जुनून था जनता की लड़ाई लड़ने का. जयप्रकाश नारायण को वैसे तो 1970 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान विपक्ष के नेतृत्वकर्ता के तौर पर जाना जाता है लेकिन उनकी पहचान सिर्फ विपक्ष के नेता के तौर पर नहीं है. जेपी को भारत में संपूर्ण क्रांति का जनक कहा जाता है.
- अमेरिका की पढ़ाई, जेपी को रास ना आई!
- 1929 में अमेरिका से लौटे भारत, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गये
जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था. पटना से शुरुआती पढ़ाई के बाद अमेरिका में पढ़ाई की. 1929 में स्वदेश लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए. तब वे मार्क्सवादी थे. सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को भगाना चाहते थे. हालांकि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से मिलने के बाद उनका नजरिया बदल गया. जेपी पूर्व पीएम नेहरू की सलाह पर कांग्रेस से जुड़े, लेकिन आजादी के बाद वे आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए. ग्रामीण भारत में आंदोलन को आगे बढ़ाया और भूदान को सपोर्ट किया.
जेपी ने 1950 के दशक में राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना नाम से किताब लिखी. इसके बाद ही नेहरू ने मेहता आयोग बनाया और विकेंद्रीकरण पर काम किया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जेपी ने कभी सत्ता का मोह नहीं पाला. नेहरू चाहते थे, लेकिन कैबिनेट से जेपी दूर ही रहे. 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप सही साबित हुआ तो जेपी ने उनसे इस्तीफा मांगा. उन्होंने इंदिरा के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया, जिसे बाद में जेपी आंदोलन के नाम से जाना गया. उन्होंने इसे संपूर्ण क्रांति नाम दिया था. इस पर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी और जेपी के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.
- जेपी की गिरफ्तारी, इंदिरा की बर्बादी!
- जेपी के समर्थन में देशभर से लोग हुए इकट्ठा
- इंदिरा की सरकार गिराने में जेपी आंदोलन का था बड़ा हाथ
जेपी की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने हुंकार भरी. उस समय रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है. 21 मार्च मार्च 1977 में इमरजेंसी हटी. लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.
तस्वीर : साभार गूगल इमेज
जेपी ने आठ अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली. लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे. तो ये थी बिहार के नायक विपक्ष के लिए सच का आइना और युवाओं के आदर्श जगत प्रकाश नारायण की कहानी.
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