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Bihar Flood: नेपाल में बारिश से बिहार में हाहाकार, टापू में तब्दील हुए गांव

बिहार में बाढ़ से हाहाकार की तस्वीरें लगातार देखने को मिल रही है. नेपाल में फिर बारिश हुई है. जिसका असर बिहार में दिखने लगा है.

Updated on: 02 Sep 2023, 10:40 AM

highlights

  • कटिहार में टापू में तब्दील हुए गांव 
  • सड़कें और पुल नदी में समाए
  • नाव से आवाजाही कर रहे ग्रामीण
  • सीतामढ़ी में नदियों का प्रहार

Patna:

बिहार में बाढ़ से हाहाकार की तस्वीरें लगातार देखने को मिल रही है. नेपाल में फिर बारिश हुई है. जिसका असर बिहार में दिखने लगा है. बारिश के बाद जहां नदियों में उफान है तो वहीं कई जिले अब बाढ़ की चपेट में आ गए हैं. गांव के गांव जलसमाधि ले चुके हैं, लेकिन अभी तक बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए शासन और प्रशासन नहीं पहुंचा है. बिहार में हाहाकारी बाढ़ का तांडव जारी है. बाढ़ की चपेट में आए जिलों से तबाही की तस्वीरें देखने को मिल रही है. जहां गांव के गांव टापू बन गए हैं. लोगों के घर बार जलमग्न हैं. खेतों में लगी फसलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो रही है. कई गांवों का तो एक दूसरे से संपर्क भी टूट चुका है. बिहारवासी एक बार फिर बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर हो गए हैं.

कटिहार में टापू में तब्दील हुए गांव

इस बार बाढ़ के प्रहार से कहिटार में हाहाकार मचा है. लोग त्राहिमाम कर रहे हैं. बात करें अमदाबाद की तो यहां के लोगों के लिए बाढ़ की त्रासदी मानो नियती बन गई है. जिले में पिछले 2 महीने से गंगा नदी और महानंदा नदी के बढ़ते जलस्तर के चलते अमदाबाद के परदियारा, भवानीपुर, चौकीयापहाड़ और दुर्गापुर पंचायत के साथ साथ कई पंचायत जलसमाधि ले चुके हैं. सड़के डूब चुकी है. घरों में पानी घुस आया है. यहां तक की पुल पुलिया भी पानी में समा चुके हैं. ऐसे में लोगों के लिए एकमात्र सहारा नाव बच गया है. लोग नाव के सहारे ही आवाजाही करने को मजबूर हैं.

सड़कें और पुल नदी में समाए

इस जिले में बाढ़ के बाद हर साल ऐसी तस्वीर दिखती है. बावजूद शासन प्रशासन बाढ़ के हालातों से निपटने के लिए कोई पहल नहीं करता और ग्रामीणों को उनकी हालत पर छोड़ दिया जाता है. ग्रामीणों की मानें तो वो पिछले दो महीने से प्राइवेट नाव के सहारे अपनी जान जोखिम में डालकर आवाजाही करने को मजबूर हैं. आवाजाही के लिए उन्हें हर बार 50 से 60 रुपए का किराया भी देना पड़ता है. कई बार प्रशासन को हालात की जानकारी दी गई है, लेकिन अब तक प्रशासन ने सरकारी नाव का कोई इंतजाम नहीं किया है.

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सीतामढ़ी में नदियों का प्रहार

सीतामढ़ी जिले के मेजरगंज में बागमती नदी की धार कहर बरपा रही है. हालात इस कदर बदतर हो गए हैं कि लोग अब अपने आशियाना को खुद अपने ही हाथों से तोड़ने को मजबूर हैं. मेजरगंज प्रखंड के बसबिट्टा पंचायत में बाढ़ के पानी ने साल 2018 से लेकर अब तक 40 से ज्यादा घरों को निगल लिया है. इस बार भी अब तक 15 से ज्यादा घरों को बागमती नदी ने लील लिया है. हर साल बांध को मजबूत करने के नाम पर विभाग के अधिकारी और ठेकेदार लाखों करोड़ों की लूट करते हैं और जनता के लिए हालात जस के तस रह जाते हैं.

दरभंगा में भी बाढ़ से त्राहिमाम

नेपाल के तराई क्षेत्र में हुई मूसलाधार बारिश के बाद नेपाल से छोड़े गए पानी के चलते कमला कोसी के साथ ही अधवारा समूह की नदियों के जलस्तर में बढोतरी हुई है. जिसका असर दरभंगा के कुशेश्वरस्थान पूर्वी और किरतपुर प्रखंड के निचले इलाके में देखने को मिल रहा है. नदी के जलस्तर बढ़ जाने के कारण लोगों का मुख्यालय से संपर्क टूट गया है. लोग नाव के सहारे आवाजाही कर रहे हैं. हालांकि यहां लोगों की परेशानी को देखते हुए प्रशासन ने सरकारी नाव का इंतजाम कर दिया है.

सुपौल में कोसी नदी का तांडव

सुपौल में कोसी का जलस्तर फिर बढ़ा है. जलस्तर में बढोतरी के चलते कोसी तटबंध के अंदर बाढ़ और कटाव के हालात बन गए हैं. दर्जनों घर कोसी के कटाव की जद में आकर नदी में समा चुके हैं. शासन प्रशासन ने तो बाढ़ प्रभावितों की सुध नहीं ली है. ऐसे में अब लोगों के पास पूजा-अर्चना करने के अलावा कोई चारा नहीं है. दरअसल, जिले में बाढ़ पीड़ित ग्रामीण कोसी मैया की पूजा अर्चना कर रहे हैं और कोसी मैया पर दूध, मीठाई औऱ कपड़े चढ़ा रहे हैं. ताकि कोसी मैया खुश हो जाए और कोसी तटबंध के अंदर तबाही मचाना छोड़ दे.

बिहार में हाहाकार

बिहार में बार-बार बाढ़ से मचे हाहाकार की तस्वीरें ये बताने को काफी है कि यहां बाढ़ से निपटने के लिए नेता हो या अधिकारी सिर्फ दावे ही करते हैं. सरकार भले ही विभागों को जिम्मेदारे सौंपे, लेकिन विभाग के अधिकारियों को ना तो ग्रामीणों की पेरशानी से कोई मतलब है ना ही उनकी सुरक्षा से कोई लेना देना. यही वजह है कि कहीं कटाव से लोग परेशान हो रहे हैं तो कहीं आवाजाही के लिए नाव का सहारा ले रहे हैं. कहीं लोग अपने ही घरों को तोड़ने को मजबूर हैं तो कहीं पलायन का दंश झेल रहे हैं.