मणिपुर हिंसा की पूरी कहानी, क्यों आमने-सामने आ गए मैतेई और कुकी?
मणिपुर की शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी के नेतृत्व में मैतेई समुदाय साल 2012 से ST का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है, मैतेई का तर्क है कि 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी.
नई दिल्ली:
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पिछले 90 दिनों से हिंसा की आग में जल रहा है. गुरुवार 20 जुलाई सामने आए एक वीडियो में राज्य में जारी जातीय हिंसा का विभत्स रूप देखने को मिला. वीडियो में हिंसक भीड़ दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर उनका सरेआम यौन शोषण करती दिख रही है. इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस वीडियो का देश के सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान लेना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सांप्रदायिक टकराव के क्षेत्र में महिलाओं को किसी चीज की तरह इस्तेमाल करना संविधान का उल्लंघन है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि मणिपुर में महिलाओं के साथ जो हुआ वो पूरा तरह अस्वीकार्य है. बता दें कि जो वीडियो 20 जुलाई को सामने आया है वो दरअसल 4 मई को हुई घटना का है. खबरों के मुताबिक वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं. दरअसल ये वीडियो मणिपुर में हिंसा के शुरुआती चरण का है और इन महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है.
ऐसा बताया जा रहा है कि इस घटना की शिकायत 18 मई को पुलिस को दी गई थी. पुलिस ने इस मामले में 21 जून को FIR दर्ज की, जिसके अनुसार 4 मई की दोपहर 3 बजे करीब हजार अज्ञात लोगों ने उनके गांव पर हमला बोल दिया. ये हमलावर मैतेई समुदाय से जुड़े थे. इस भीड़ ने गांव पर हमला कर उनके घर पर लूटपाट और आगजनी की. हमला होने पर 3 महिलाएं किसी तरह अपनी जान बचाने के लिए अपने पिता और भाई के साथ जंगल की तरफ भागे. वहां पुलिस की टीम ने इन्हें बचा लिया. जब पुलिस उन्हें थाने लेकर जा ही रही थी तभी भीड़ ने उन्हें रास्ते में रोक लिया. भीड़ ने महिलाओं को उनके पिता-भाई से अलग कर दिया. ये सारी घटना थाने से 2 किलोमीटर पहले हुई. भीड़ ने पुलिस के सामने ही उन महिलाओं के पिता की हत्या कर दी. इसके बाद तीनों महिलाओं को कपड़े उतारने को मजबूर किया. इनमें से एक की उम्र 21 साल, दूसरी की 42 साल और तीसरी की 52 साल थी.
आखिर क्या है हिंसा की मुख्य वजह
चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर इस हिंसा के पीछे क्या वजह? क्यों मणिपुर के लोग आपस में ही लड़ रहे हैं? यहां हमें सबसे पहले मणिपुर की जिओग्राफिकल कंडीशन को समझना जरूरी है. 16 जिलों के इस राज्य की राजधानी इंफाल बिलकुल बीच में है. क्षेत्रफल के हिसाब से इंफाल राज्य की भूमि का केवल 10% हिस्सा है. लेकिन आबादी के लिहाज से देखें तो यहां राज्य की 57% आबादी रहती है. इंफाल के चारों तरफ का 90% हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र है. इन क्षेत्रों में राज्य की 43 प्रतिशत आबादी रहती है. अगर हम केवल इंफाल घाटी की ही बात करें तो यहां सबसे ज्यादा आबादी मैतेई समुदाय की है. इस समुदाय के लोग ज्यादातर हिंदू होते हैं. राज्य की कुल आबादी में मैतेई की हिस्सेदारी करीब 53% बताई जाती है. राजनीतिक रूप से भी मैतेई समुदाय का खासा वर्चस्व माना जाता है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि 60 विधायकों वाली मणिपुर विधानसभा में 40 विधायक मैतेई समुदाय से आते हैं.
बता दें कि मैतई राजाओं का शासन म्यांमार में छिंदविन नदी से लेकर मौजूदा बांग्लादेश की सूरमा नदी के इलाकों तक फैला हुआ था. भारत में शामिल होने के बाद ये समुदाय राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9 फीसदी भूभाग पर ही सिमट गया है. मैतेई समुदाय के बुजुर्गों के मुताबिक, उन्होंने 17वीं और 18वीं सदी में हिंदू धर्म को स्वीकार कर लिया था. वहीं, दूसरी तरफ मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त ट्राइब्स यानी जनजातियां रहती हैं. इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी ट्राइब हैं. ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई धर्म को मानती हैं. इसके अलावा मणिपुर में 8-8 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है. मणिपुर में पहाड़ी ट्राइब्स को आर्टिकल 371(C) के अंतर्गत स्पेशल स्टेटस मिला है. ये स्टेटस मैतेई समुदाय को नहीं मिलती. इसके अलावा यहां भूमि सुधार अधिनियम की वजह से मैतेई लोग पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकते. वहीं दूसरी तरफ ट्राइबल्स को पहाड़ों से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है. ये रियायत भी दोनों समुदायों में मतभेद का बढ़ा कारण बताई जाती हैं.
मैतेई समुदाय साल 2012 से ST का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा
मणिपुर की शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी के नेतृत्व में मैतेई समुदाय साल 2012 से ST का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है, मैतेई का तर्क है कि 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन भारत में विलय के बाद उनकी ये पहचान समाप्त हो गई. इसके बाद मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा. इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी सेंट्रल ट्राइबल अफेयर मीनिस्ट्री की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था. इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है. कोर्ट ने मैतेई समुदाय को एसटी स्टेटस देने का आदेश दे दिया. अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच केस की सुनवाई कर रही है.
हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिंसा की शुरुआत राज्य के चुराचंदपुर जिले से हुई. कुकी आदिवासी बाहुल्य इस जिले में, गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने 8 घंटे बंद का ऐलान किया था. देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया. उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया. 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे. इसके ठीक पांचवें दिन यानी 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था. यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई. आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए.
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हिंसा की आग में जल रहा मणिपुर
एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग. देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा. आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया. मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं. ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है.
वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है. उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं. सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया. जिससे आक्रोश और फैल गया. हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया. दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं. मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया. इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था. तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई. ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी. ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं. हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे.
नवीन कुमार की रिपोर्ट
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