logo-image

Haldwani में 'सीएए विरोध' की तर्ज पर 'शाहीनबाग' जैसा जमावड़ा... जानें 'सुप्रीम राहत' के बीच पूरा मसला

गफ्फूर बस्ती कहे जाने वाले इस क्षेत्र में अतिक्रमण विरोधी अभियान का असर यहां रह रहे 4,400 परिवारों यानी 50,000 लोगों पर पड़ना तय है. कुछ परिवारों के दावा है कि वे दशकों से इस जमीन पर बसे हुए हैं और आज तक कभी किसी ने रोका-टोका नहीं.

Updated on: 05 Jan 2023, 02:03 PM

highlights

  • रेलवे की जमीन पर दशकों से अवैध कब्जा हटाने का अदालती आदेश
  • हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फिलहाल लगाई रोक
  • मामले को मुस्लिमों के खिलाफ रंग देकर शाहीनबाग जैसा विरोध शुरू

नई दिल्ली:

जब दुनिया 1 जनवरी की सुबह उठ कर नए साल की शुरुआत कर रही थी, लगभग उसी वक्त सोकर उठे हल्द्वानी (Haldwani) में बनभूलपुरा निवासियों की आंखों के आगे अखबारों में रेल विभाग (Indian Railway) के सार्वजनिक नोटिस को पढ़ अंधेरा छा चुका था. इस नोटिस में रेलवे स्टेशन के पास जमीन पर अवैध कब्जा (Encroachment) खाली करने के लिए कहा गया था, जहां हजारों परिवार रहते आ रहे थे. गफ्फूर बस्ती कहे जाने वाले इस क्षेत्र में अतिक्रमण विरोधी  अभियान का असर यहां रह रहे 4,400 परिवारों यानी 50,000 लोगों पर पड़ना तय है. कुछ परिवारों के दावा है कि वे दशकों से इस जमीन पर बसे हुए हैं और आज तक कभी किसी ने रोका-टोका नहीं. यहां न सिर्फ सरकारी स्कूल और अस्पताल हैं, बल्कि निवासियों के पास पानी-बिजली कनेक्शन भी है. हालांकि अधिकारियों के मुताबिक हल्द्वानी स्टेशन के पास करीब 2.2 किमी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण विरोधी अभियान चलना है. उत्तर पूर्व रेलवे के इज्जतनगर डिवीजन के अंतर्गत आने वाली इस जमीन पर लाल कुआं से काठगोदाम (एलकेयू-केजीएम) खंड की 80.710 से 82.900 किलोमीटर पर अवैध कब्जा है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अतिक्रमण विरोधी अभियान को हरी झंडी दे दी, जिसके फैसले को चुनौती देती याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई करते हुए अतिक्रमण हटाने पर रोक लगा दी. उत्तराखंड सरकार और रेलवे विभाग को नोटिस जारी करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 7 फरवरी को सुनवाई की अगली तारीख तय की है. आइए जानते हैं कि यह पूरा मसला क्या है और इस पर राजनीति क्यों हो रही है. खासकर कैसे इस मसले को अब मुस्लिमों के खिलाफ ज्यादिती के तौर पर कुछ राजनीतिक दल प्रदर्शित कर रहे हैं.

अवैध खनन से पता चला अवैध अतिक्रमण का
हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के बगल से बहने वाली गौला नदी में अवैध खनन को लेकर 2013 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. नैनीताल स्थित उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए रेलवे को इस क्षेत्र में अतिक्रमण की जांच करने का आदेश दिया. 2017 में राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ किए गए एक संयुक्त सर्वेक्षण में रेलवे ने 4,365 अतिक्रमणों की पहचान की. इसके कुछ समय बाद अतिक्रमण हटाने में हो रही देरी को लेकर हाईकोर्ट में नई याचिका दायर की गई. इस पर कोर्ट ने मार्च 2022 में जिला प्रशासन, नैनीताल और रेलवे को इस संबंध में बैठक कर योजना बनाने का निर्देश दिया था.

यह भी पढ़ेंः Kanjhawala Case में इस CCTV फुटेज से नया खुलासा, हादसे के बाद जानें आरोपियों ने क्या किया?

अतिक्रमण मुक्त कराने की योजना 2022 में शुरू हुई
अदालत के आदेश पर अप्रैल 2022 में इज्जतनगर मंडल के रेल अधिकारियों और नैनीताल जिला प्रशासन के बीच बैठक हुई. उसी महीने रेलवे ने अतिक्रमण हटाने के लिए एक कार्य योजना भी प्रस्तुत कर दी. अतिक्रमण पर दाखिल याचिका पर अंतिम फैसला 20 दिसंबर 2022 को आया. इस फैसले में अदालत ने रेलवे को निर्देश दिया कि वह रेलवे की जमीन से अनाधिकृत कब्जाधारियों को बेदखल करने की कार्रवाई करे.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा
कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों को जमीन खाली करने के लिए कब्जाधारियों को एक सप्ताह का नोटिस देने का निर्देश दिया. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि रेलवे, जिला प्रशासन के साथ समन्वय कर कार्यवाही पूरी करे. यदि आवश्यक हो, तो अर्धसैनिक बलों की मदद लेकर लोगों से जमीन खाली करने के लिए कहा जाए. अदालती आदेश के तहत अवैध कब्जा खाली करने का नोटिस अखबारों में और क्षेत्र में ढोल पीटकर दिया जाना था. रेलवे को एक सप्ताह की अवधि समाप्त होने के बाद की जाने वाली संभावित कार्रवाई को लेकर भी निवासियों को सूचित करना था.

यह भी पढ़ेंः Putin कुछ करने जा रहे बड़ा, अटलांटिक महासागर में जिरकॉन क्रूज मिसाइल तैनात

रविवार को जारी किया गया नोटिस
रेलवे ने 1 जनवरी यानी रविवार को अखबारों में पब्लिक नोटिस जारी किया. इस नोटिस के तहत बनभूलपुरा के लोगों से सात दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाने को कहा गया. कोर्ट के आदेश के अनुसार सात दिन की अवधि खत्म होने के बाद भी अगर अतिक्रमणकारी जमीन खाली नहीं करते हैं, तो रेलवे जबरन कब्जा वापस ले सकता है. इसके तहत अधिकृत अधिकारी रेलवे की भूमि पर अनाधिकृत ढांचों को गिरा या हटा सकते हैं. यही नहीं, अतिक्रमण हटाने और अवैध कब्जाधारियों की बेदखली पर आने वाला खर्च भी अदालत ने अतिक्रमणकारियों से वसूलने के निर्देश दिए थे. आदेश में कहा गया है कि यह राशि भू-राजस्व के बकाए के रूप में वसूल की जाएगी.

पर्याप्त सुरक्षा देने का भी आदेश
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अदालत ने उत्तराखंड के गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक और रेलवे सुरक्षा बल के प्रमुख को अतिक्रमण साइट पर पर्याप्त बलों की तैनाती सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया. अतिक्रमण हटाओ अभियान पूरा होने के बाद रेल प्रशासन अपनी भूमि की सीमा की जांच कर उसका सत्यापन करे और आगे किसी विवाद से बचने के लिए समुचित बाड़बंदी करे. साथ ही इस जमीन पर रेलवे प्रशासन आवश्यक बल भी तैनात करे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में इस भूमि पर कोई अतिक्रमण न हो. 

यह भी पढ़ेंः  Weather Update: दिल्ली समेत कई राज्यों में अगले 2-3 दिन भारी सर्दी, जानें मौसम का हाल

अदालती आदेश और बेदखली पर राजनीति
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी बेदखली के आदेश का विरोध कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी के नेता एसके राय का कहना है कि यह दशकों से रह रहे हजारों अल्पसंख्यक परिवारों को उनके घरों से बेदखल करने की साजिश है और समाजवादी पार्टी परिवारों का समर्थन करने के लिए सब कुछ करेगी. इसी तर्ज पर वनभूलपुरा निवासियों का कहना है कि वे दशकों से हल्द्वानी के इस इलाके में रह रहे हैं. एक स्थानीय निवासी अयाज के मुताबिक, 'हमारे पूर्वज 1940 के दशक की शुरुआत में बनभूलपुरा आए थे. पिछले कई दशकों से हम सभी कर चुका रहे हैं. हमारे पास पानी-बिजली के वैध कनेक्शन हैं. अब अचानक रेलवे इस जमीन पर अपना दावा कर रहा है.' यही वजह है कि बेदखली के अदालती आदेश के खिलाफ बीते कई दिनों से सैकड़ों परिवार इलाके में रोजाना विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. इस धरने में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.

आगे की लंबी है कानूनी लड़ाई
नोटिस मिलने के एक दिन बाद बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासियों ने अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. गफ्फूर बस्ती के निवासियों की दुआएं कबूल हुई और फिलहाल अतिक्रमण के तहत ध्वस्तीकरण कार्रवाई पर रोक लगा दी गई है. मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. कांग्रेस भी निवासियों का समर्थन कर रही है. इसी वजह से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद सुप्रीम ने कोर्ट में पीड़ित पक्ष का प्रतिनिधित्व किया. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दस से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं.