China अमेरिका समेत शेष विश्व को ढकेल रहा बड़े संकट की ओर,जानें कैसे और क्यों
एक समय वैश्विक स्तर पर सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था आज ठहराव के दौर से गुजर रही है. जुलाई में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में चीन की अर्थव्यवस्था में महज 0.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. यह सरकार के 5.5 फीसदी के लक्ष्य से काफी नीचे थी.
highlights
- चीन का रियल एस्टेट सेक्टर गंभीर संकट के दौर में फंसा
- इस कारण सरकारी बैंकों का गैर-निष्पादित कर्ज भी बढ़ा
- इसका असर वैश्विक आर्थिक विकास पर भी पड़ना है तय
नई दिल्ली:
वैश्विक आर्थिक विकास का इंजन करार दी गई चीन की अर्थव्यवस्था फिलवक्त मंदी के दौर से गुजर रही है, जो अमेरिका और शेष दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डाल रही है. यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि चीन वैश्विक स्तर पर कच्चे माल (Raw Material) का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है. इसके साथ ही भारी निर्यात पर केंद्रित जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा निर्यात बाजार भी है. न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस कारण चीन की धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था (Slow Economy) शेष विश्व के लिए समस्याएं खड़ी कर रही है. अगर घरेलू मोर्चे की बात करें तो चीन (China) की मंद पड़ती अर्थव्यवस्था चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के लिए भी बड़ी समस्या बन कर उभरी है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) की जीरो कोविड नीति को इसका मूल कारण माना जा रहा है. जीरो कोविड नीति को समग्र देश से कोविड संक्रमण (COVID-19) के पूरी तरह से खात्मे के लिए अमल में लाया गया था, लेकिन इसकी वजह से एक समय 350 मिलियन श्रमिकों के लिए सामान्य तौर पर काम करना मुहाल हो गया था. किसी भी विकासशील देश के लिए यह एक बड़ी समस्या का कारण होता है.
सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था में आया ठहराव
ऐसे में कतई कोई आश्चर्य नहीं है कि एक समय वैश्विक स्तर पर सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था आज ठहराव के दौर से गुजर रही है. जुलाई में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में चीन की अर्थव्यवस्था में महज 0.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. यह सरकार के 5.5 फीसदी के लक्ष्य से काफी नीचे थी. यह कहना भी असंभव है कि हानिकारक कोविड नीति आने वाले समय में फिर वापसी नहीं करेगी. जल्द ही होने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में शी जिनपिंग तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के अपने प्रयास पर अंतिम मुहर लगवाने जा रहे हैं. ऐसे में जिनपिंग कोविड पॉलिसी के यू-टर्न का जोखिम कतई नहीं उठा सकते. हालांकि न्यूयॉर्क पोस्ट कहता है कि इससे चीनी अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने में और विलंब जरूर हो सकता है.
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प्रॉपर्टी संकट ने बैंकों को भी डाला मुश्किल में
समस्या के गहरे संकेत चीन के रियल एस्टेट सेक्टर में अभी से दिखने भी लगे हैं. रियल एस्टेट देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 30 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है और पारिवारिक संपत्ति में इसकी भागीदारी 70 फीसदी के लगभग है. चीन का प्रॉपर्टी संकट और गहराता जा रहा है. बड़ी संख्या में लोगों ने खरीदी गई संपत्ति के कर्ज भुगतान से सिरे से इंकार कर दिया है, जिनका अभी भी पूरी तरह से निर्माण नहीं हुआ है. कर्ज अदायगी का पूरी तरह से बॉयकॉट करने वाले दसियों लाख परिवार है, जिसकी वजह से प्रॉपर्टी संकट गहराया है और अब जिसकी चपेट में बैंकिंग उद्योग भी आ सकता है. हालांकि सच तो यह है कि यह संकट बैंकों की चौखट तक आ पहुंचा है. बैंकों ने रियल एस्टेट सेक्टर को भारी मात्रा में कर्ज दे रखा है.
चीन के 4 बड़े सरकारी बैंकों की स्थिति डगमगाई
आंकड़ों की भाषा में कहें तो चीन के रियल एस्टेट पर बैंकों का 26 फीसदी कर्ज है. तुलनात्मक तौर पर देखें तो जापान में आए प्रॉपर्टी उछाल के समय बैंकों के रियल एस्टेट कर्ज की दर 21 से 22 फीसदी रही थी. चीन में स्थिति यह आ पहुंची है कि चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों का 2021 में गैर निष्पादित कर्ज एक फीसदी से बढ़कर 3.8 प्रतिशत हो गया. चीन के कई हाउसिंग डेवलपर्स ने अपनी आवासीय परियोजनाओं के लिए धन जुटाने में असमर्थता के चलते निर्माण कार्य रोक दिया है. शंघाई स्थित ई-आवासीय चाइना आर एंड डी इंस्टीट्यूट के आकलन के मुताबिक नए आवासीय परिसरों में महज 4 फीसदी घर ही बिके हैं.
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वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ना तय
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अर्थव्यवस्था में आए ठहराव का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर पड़ेगा. चीन की मंद अर्थव्यवस्था वॉशिंगटन को अपनी मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए प्रेरित करेगी, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा और खाद्यान्नों की कीमतों में और तेजी आएगी. नतीजतन इसका सीधा प्रभाव अमेरिका के निर्यात की संभावनाओं पर पड़ेगा, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति भी और धीमी पड़ सकती है.
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