रसगुल्ला कहां से आया, कहां पैदा हुआ और पहली बार कहां बना, जानें पूरी कहानी
नरम और रस से भरे मीठे रसगुल्ले को लेकर कई सालों से चल रहे विवाद का अब कसे कम 2028 तक पटाक्षेप हो गया है.
नई दिल्ली:
भारत के दो राज्यों ओडिशा (Odisha)और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के बीच रसगुल्ले (Rasgulla) को लेकर लड़ाई में ओडिशा (Odisha)ने बाजी मार ली है. नरम और रस से भरे मीठे रसगुल्ले (Rasgulla) को लेकर कई सालों से चल रहे विवाद का अब कसे कम 2028 तक पटाक्षेप हो गया है. वैसे विवाद की शुरुआत तब हुई थी जब ओडिशा (Odisha)सरकार ने कटक और भुवनेश्वर के बीच पाहाल में मिलने वाले मशहूर रसगुल्ले (Rasgulla) को जीआई (GI)मान्यता दिलाने के लिए कोशिशें शुरू कीं. जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई (GI)टैग वह मार्क है जिससे पता चलता है कि प्रोडक्ट का ओरिजन कहां का है. यानी रसगुल्ला कहां से आया, कहां पैदा हुआ और पहली बार कहां बना?
ओडिशा (Odisha)के दावे में छिपी कहानी
ओडिशा (Odisha)भी कहता रहा है कि रसगुल्ला का अविष्कार वहीं हुआ. माना जाता है कि इस रसगुल्ला का जन्म पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में हुआ. मान्यता यह है कि रथयात्रा के बाद जब भगवान जगन्नाथ वापस मंदिर आते हैं तो दरवाजा बंद पाते हैं. क्योंकि उन्होंने देवी लक्ष्मी को अपने साथ नहीं ले गए थे. रूठी देवी को मनाने के लिए जगन्नाथ उन्हें रसगुल्ला पेश करते हैं और देवी मान जाती हैं.
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इंटरनेट पर थोड़ा सर्च करने पर पता चलता है कि इतिहासकार यह राय रखते हैं कि रसगुल्ला 13वीं शताब्दी से ओडिशा (Odisha)में बनाया जा रहा है. विकीपीडिया पर मौजूद जानकारी के मुताबिक ओडिशा (Odisha)में इस मिठाई का जन्म खीरमोहन के नाम से हुआ. मंदिर के पुजारी भी यही दावा करते हैं कि कि रसगुल्ले (Rasgulla) का जन्म ओडिशा (Odisha)में ही हुआ. या यूं कहें कि भुवनेश्वर के पास बसे एक गांव पाहला में हुआ. पुजारियों के मुताबिक इस मिठाई का जन्म इसी गांव में हुआ.
बंगाल के रोसोगोल्ला की कहानी
बंगाल के केसी दास के वारिसों का दावा है कि रसगुल्ले (Rasgulla) का ईजाद नोबीन चंद्र दास ने 1868 में किया था. दावे के मुताबिक इसका ईजाद नोबीन दास के होनहार बेटे कृष्ण चंद्र दास ने किया. खैर बात फिलहाल रसगुल्ले (Rasgulla) की ही. नोबीन चंद्र दास (1845-1925) के पिता की मृत्यु उनके जन्म से तीन महीने पहले हो गई थी. उन्होंने उत्तरी कोलकाता के बागबाजार इलाके में 1866 में एक मिठाई की दुकान खोली. दुकान बहुत अच्छी नहीं चल रही थी. उस समय सोन्देश प्रमुख मिठाई थी लेकिन उन्होंने कुछ नया बनाने की ठानी और प्रयास शुरू कर दिए. दावे के मुताबिक 1868 में उन्होंने रोसोगोल्ला का अविष्कार किया.
ऐसे पापुलर हुआ रोसोगोल्ला
एक बार एक सेठ रायबहादुर भगवानदास बागला अपने परिवार के कहीं जा रहे थे. बग्गी में बैठे उनके एक बेटे को प्यास लगी. उन्होंने नोबीन दास की दुकान के पास बग्गी रुकवा ली. नोबीन ने बच्चे को पानी के साथ रोसोगोल्ला भी दिया जो उसे काफी अच्छा लगा. उसने अपने पिता से इसे खाने को कहा. सेठ को भी ये मिठाई बहुत पसंद आई और उसने अपने परिवार और दोस्तों के लिए इसे खरीद लिया. बस फिर तो ये मिठाई शहर भर में प्रसिद्ध हो गई. और आज पूरी दुनिया इसका नाम जानती है.
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एक अनुमान के मुताबिक संभवत: रसगुल्ले (Rasgulla) के विधि ओडिशा (Odisha)से बंगाल पहुंची होगी, हालांकि यह मानने वालों की भी कमी नहीं कि ये विधि बंगाल से ओडिशा (Odisha)पहुंची होगी. अब इस बहस के बाहर देखें तो पूरे देश के लोग इस मिठाई को पसंद करते हैं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि रसगुल्ले (Rasgulla) का ओरिजन कहां का है.
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