Shastriji Death Mystery: आखिर ताशकंद में उस रात हुआ क्या था?
'लाल बहादुर शास्त्रीः वॉज ही पॉइजंड' चैप्टर में कुलदीप नैयर लिखते हैं-मैं सपने में शास्त्रीजी को मरते हुए देख रहा था, जब दरवाजा खटखटाने की आवाज से मेरी नींद टूटी. दरवाजा खोलने पर कॉरिडोर में खड़ी महिला ने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं.
highlights
- अपनी मौत की रात शास्क्षीजी ने भारतीय राजदूत के घर से आया खाना खाया.
- परिजन भी आश्चर्य करते रहे कि निजी सेवक के होते बाहर से आया खाना.
- शास्त्रीजी की पत्नी से जबरन वक्तव्य पर हस्ताक्षर कराने की हुई थी कोशिश.
नई दिल्ली:
भारत की आजादी, स्वतंत्र भारत के नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू का आधी रात को पहला संबोधन, गांधीजी की हत्या समेत देश के ऐतिहासिक क्षणों के साक्षी बने प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर (अब स्वर्गवासी) ने डेढ़ दशक पहले 'बियांड द लाइन' नाम से आत्मकथा लिखी थी. उसमें उन्होंने देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद प्रवास और उस रात का जिक्र किया है, जब रहस्यमय परिस्थितियों में शास्त्रीजी की मौत हुई. जानते हैं कि नैयर साहब ने क्या लिखा है...
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एक महिला ने बताया-आपके पीएम मर रहे हैं
'लाल बहादुर शास्त्रीः वॉज ही पॉइजंड' चैप्टर में कुलदीप नैयर लिखते हैं, 'मैं सपने में शास्त्रीजी को मरते हुए देख रहा था, जब दरवाजा खटखटाने की आवाज से मेरी नींद टूटी. दरवाजा खोलने पर कॉरिडोर में खड़ी महिला ने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. यह सुनते ही मैं झटपट तैयार हुआ और एक भारतीय अधिकारी के साथ शास्त्रीजी के रुकने के स्थान की ओर रवाना हो गया. वह जगह कुछ दूरी पर थी.' वह लिखते हैं, 'एक विशालकाय पलंग पर पड़ी उनकी बॉडी किसी ड्राइंग बोर्ड पर उकेरे बिंदू की तरह लग रही थी. कालीन बिछे फर्श पर उनकी चप्पले यथास्थान रखी थीं. उन्होंने उसका इस्तेमाल नहीं किया था. कमरे के एक कोने में रखी ड्रेसिंग टेबल पर हालांकि थर्मस फ्लास्क गिरा पड़ा था. ऐसा लग रहा था कि शास्त्रीजी ने उसे खोलने के लिए संघर्ष किया था. कमरे में कोई बजर नहीं था. बाद में इस मसले पर सरकार ने शास्त्रीजी की मौत पर विपक्ष के हमले पर झूठ बोला था.'
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राजदूत के घर से आया खाना खाया था शास्त्रीजी ने
शास्त्रीजी के निजी सचिव जगन नाथ सहाय ने वहां कुलदीप नैयर को बताया कि आधी रात को उनके कमरे का दरवाजा खटखटा कर शास्त्रीजी ने पानी मांगा था. पानी पीने के बाद दो स्टेनोग्राफर और जगन नाथ खुद शास्त्रीजी को उनके कमरे तक छोड़ कर आए थे. कुलदीप नैयर शास्त्रीजी के निजी सचिव के हवाले से लिखते हैं, 'फेयरवेल समारोह में शिरकत करने के बाद शास्त्रीजी रात 10 के आसपास अपने आवास पहुंचे. उन्होंने अपने निजी सेवक रामनाथ से भारतीय राजदूत टीएन कौल के घर से आए खाने को परोसने को कहा. वह खाना कौल के कुक जन मोहम्मद ने पकाया था. शास्त्रीजी ने बहुत थोड़ी मात्रा में खाना खाया.'
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शास्त्रीजी के आखिरी शब्द थे-डॉक्टर साहब कहां हैं?
इसके बाद रामनाथ ने शास्त्रीजी को दूध दिया, जिसे सोने से पहले पीने के वह आदी थे. दूध पीने के बाद शास्त्रीजी कमरे में इधऱ-उधर टहलने लगे. फिर रामनाथ से पानी मांग कर पिया और उससे सोने को कहा, क्योंकि अगले दिन सुबह उन्हें काबुल रवाना होना था. रामनाथ ने शास्त्रीजी के कमरे के फर्श पर ही सो जाने की बात कही, लेकिन उन्होंने उससे अपने कमरे में जाकर सोने को कहा. रात 1.20 पर सहयोगी सामान बांध रहे थे जब रामनाथ ने शास्त्रीजी को अपने कमरे के दरवाजे पर खड़े देखा. बड़ी कठिनाई से शास्त्रीजी बोल सके थे, 'डॉक्टर साहब कहां हैं?' इस बीच रामनाथ ने उन्हें पानी पिलाते हुए कहा, 'बाबूजी, अब आप ठीक हो जाएंगे.' यह सुनते हुए शास्त्रीजी ने अपनी छाती को छुआ और बेहोश से हो गए.
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परिवार को पूरा शक जन मोहम्मद द्वारा बनाए खाने पर
ताशकंद से लौटने पर कुलदीप नैयर ने शास्त्रीजी की धर्मपत्नी ललिता से हुई मुलाकात का जिक्र भी आत्मकथा में किया है. वह लिखते हैं, 'उन्होंने मुझसे नीले पड़ गए शरीर और उस पर पड़े कट्स के बारे में पूछा. मैंने नीलेपन का कारण लेप को बताया और कट्स से अनभिज्ञता प्रकट कर दी, क्योंकि उन्हें मैंने देखा नहीं था. हालांकि मैं थोड़ा परेशान था कि ललिता ने क्यों कहा कि शास्त्रीजी का पोस्टमार्टम न तो वहां हुआ और न ही यहां हुआ. बाद में मुझे ललिता की शास्त्रीजी के दो सहयोगियों से नाराजगी का कारण पता चला, क्योंकि उन्होंने इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था जिस पर लिखा था कि शास्त्रजी की मौत प्राकृतिक नहीं है. उसके बाद तो हर गुजरते दिन के साथ शास्त्रीजी के परिजनों को यह पुख्ता विश्वास होता गया कि शास्त्रीजी को जहर दिया गया था. शास्त्रीजी के जन्मदिन (2.10.1970) ललिता ने शास्त्रीजी की मौत की जांच कराने को कहा. शास्त्रीजी का परिवार इस बात से उद्वेलित था कि ताशकंद में शास्त्रीजी का खाना रामनाथ के बजाय कौल साहब के कुक जन मोहम्मद ने बनाया था.'
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मोरारजी का बयान था लीपापोती
शास्त्रीजी की मौत के कारणों पर उठ रहे सवालों से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जांच के लिए सहमत थे. हालांकि 1970 के अक्टूबर के अंत में मैंने इस बारे में मोरारजी देसाई से पूछा तो उनका जवाब मिला, 'यह सिर्फ राजनीति है. मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें कोई धोखा नहीं है. वह (शास्त्रीजी) दिल के दौरे से ही मरे हैं. इसकी पुष्टि मैंने उनके डॉक्टर और सचिव सीपी श्रीवास्तव से भी की है.'
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