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Chandrayaan 3: चांद के ऑर्बिट में हुई चंद्रयान-3 की एंट्री, जानें कब होगी सतह पर लैंडिंग

चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) को लेकर इसरो (ISRO) ने बड़ी जानकारी दी है. भारत के मिशन ने चंद्रमा के ऑर्बिट में प्रवेश कर लिया है.

Updated on: 05 Aug 2023, 08:54 PM

highlights

  • चंद्रयान-3 को लेकर इसरो ने दी बड़ी जानकारी.
  • चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया है चंद्रयान-3. 
  •  23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा चंद्रयान-3. 

नई दिल्ली:

Chandrayaan 3 In Lunar Orbit: चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) को लेकर इसरो (ISRO) ने बड़ी जानकारी दी है. भारत के मिशन ने चंद्रमा के ऑर्बिट में प्रवेश कर लिया है. इसरो के मुताबिक चंद्रयान-3 आज (5 जुलाई 2025) शाम चंद्रमा की कक्षा (Lunar Orbit) में प्रवेश कर गया. इसका मतलब यह है कि ये चंद्रमा की गोलाकार कक्षा में चला गया है और पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह के चारों ओर चक्कर लगाना शुरू करेगा. इसे लूनर ऑर्बिट इंजेक्शन या इंसर्शन (Lunar Orbit Injection or Insertion - LOI) भी कहते हैं. 

23 अगस्त को चंद्रमा पर होगी लैंडिंग 

चंद्रयान-3 मिशन में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं, जोकि 16 अगस्त तक चंद्रमा के चक्कर लगाएंगे. इसके बाद 17 अगस्त को लैंडर से प्रोपल्शन मॉड्यूल अगल हो जाएगा, जोकि चंद्रमा की कक्षा में मौजूद रहकर पृथ्वी से आने वाले रेडिएशन्स का जानकारी जुटाएगा. वहीं, लैंडर आगे बढ़ते हुए 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा. ये उपलब्धि इस लिहाज से भी खास इसलिए है क्योंकि इसे सबसे कठिन चरण माना जा रहा था. 

कम की जाएगी चंद्रयान-3 की स्पीड

चांद के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए चंद्रयान-3 की गति को करीब 3600 किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास किया गया. क्योंकि चंद्रमा की ग्रैविटी धरती की तुलना में छह गुना कम है. अगर ज्यादा गति रहती तो चंद्रयान इसे पार कर जाता. इसके लिए इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान की गति को कम करके 2 या 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड किया. इस गति की वजह से यान चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ पाया. अब धीरे-धीरे चांद के चारों तरफ उसके ऑर्बिट की दूरी को कम करके दक्षिणी ध्रुव के पास पर लैंड कराया जाएगा. 

खास है तकनीक 

बता दें कि इस बार जो यंत्र लैंडर में लगाया गया है, उसका नाम है लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC). लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर जमीन पर उतरते समय थ्रीडी लेजर फेंकता है. ये लेजर जमीन से टकराकर वापस यह बताता है कि सतह कैसी है. बाकी दो दिशाओं में जो लेजर जाते हैं, वो ये देखते हैं कि कहीं सामने या पीछे की तरफ कोई ऊंची चीज तो नहीं है, जिससे लैंडर के टकराने का खतरा हो.