Transgender: किन्नर समाज में मरने के बाद खुशियां क्यों मनाई जाती है जानें कारण
Transgender: जब किसी किन्नर की मृत्यु हो जाती है तो उसके अंतिम संस्कार को गुप्त रखा जाता है. अन्य धर्मों के विपरीत किन्नरों की अंतिम यात्रा दिन की बजाय रात में निकाली जाती है. किन्नरों का अंतिम संस्कार गैर किन्नरों से छिपाकर किया जाता है.
नई दिल्ली:
Transgender: किन्नर समुदाय में मौत के बाद खुशियां मनाने का प्रथम आधार उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है. किन्नर समुदाय में जन्म और मृत्यु के समय विशेष समारोह होते हैं और मृतक को उनकी आत्मा का शांति स्थान पर भेजा जाता है. मौत के बाद, किन्नर समुदाय के सदस्य अपने साथियों के साथ जन्मदिनों, शादियों, और अन्य खुशी के अवसरों को मनाते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके यात्रा को आराम मिले. इसके अलावा, यह उनके समाज में समर्पितता और सामूहिक एकता को भी प्रकट करता है. किन्नरों में मृत्यु के बाद खुशियां मनाने की परंपरा के पीछे कई कारण हैं:
1. मुक्ति का प्रतीक: किन्नर समाज में मृत्यु को एक मुक्ति माना जाता है. किन्नरों को अक्सर समाज में भेदभाव और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. वे अपनी मृत्यु को इस जीवन के कष्टों से मुक्ति और एक बेहतर जीवन की शुरुआत के रूप में देखते हैं.
2. भगवान अरावन से जुड़ाव: किन्नरों को भगवान अरावन का अनुयायी माना जाता है. भगवान अरावन ने अपनी मृत्यु से पहले 18 किन्नरों से विवाह किया था. किन्नर अपनी मृत्यु को भगवान अरावन से मिलने और उनके साथ रहने का अवसर मानते हैं.
3. सामाजिक रीति-रिवाज: किन्नर समाज में मृत्यु के बाद खुशियां मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा उनके समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है.
4. नकारात्मकता को दूर करना: किन्नर समाज मृत्यु को नकारात्मकता के रूप में नहीं देखता है. वे मृत्यु को जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा मानते हैं. मृत्यु के बाद खुशियां मनाकर वे नकारात्मकता को दूर करते हैं और जीवन का जश्न मनाते हैं.
5. समाज को संदेश: किन्नर समाज मृत्यु के बाद खुशियां मनाकर समाज को यह संदेश देना चाहता है कि वे जीवन के हर पल का आनंद लेते हैं और मृत्यु से नहीं डरते हैं.
किन्नरों की मृत्यु के बाद खुशियां मनाने की परंपरा से कई बातों से जुड़ी हैं. किन्नरों की मृत्यु के बाद उनकी शव यात्रा रात में निकाली जाती है. किन्नर मृत्यु के बाद गम नहीं करते हैं, बल्कि नाचते-गाते हैं और खुशियां मनाते हैं. किन्नरों की मृत्यु के बाद उनके लिए एक विशेष समाधि बनाई जाती है, जिसे "गढ़ी" कहा जाता है. यह परंपरा समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है. यह समाज को मृत्यु के बारे में एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है और मृत्यु से जुड़े डर को दूर करने में मदद करती है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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