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Braj Holi 2022 Bhajan: बृज की होली और फाग की मनोरम धुन, मन में भर जाएगौ आनंद ये भजन सुन

आज हम आपको बृज धाम के उन होली के प्रसिद्द गीतों की धुन सुनाने जा रहे हैं जिन्हें सुनकर आपका हृदय गदगद हो उठेगा और अपने लल्ला और राधे रानी के धाम आप होली खेलने भागे चले आएंगे.

Updated on: 25 Feb 2022, 07:43 PM

नई दिल्ली :

'सब जग होरी, या बृज होरी'... बृज की होली के बारे में यह एक प्रसिद्ध कहावत है और सटीक भी है क्योंकि जहां देश भर में होली अधिकतम 3 दिन तक तक मनाई जाती है वहीं बृज क्षेत्र में इस त्यौहार के रंग महीने भर तक उड़ते हैं. बृज श्री कृष्ण और राधा रानी की लीला नगरी है इसलिए यहां के स्थानों से लेकर पर्वों तक के भाव उन्हीं से जुड़े हुए हैं, होली भी इसी क्रम में शामिल है. एक तरफ दुनिया भर की होली और एक तरफ बृज धाम की होली. होली का जो असीम आनंद बृज में आता है वो और कहीं नहीं मिल सकता. सिर्फ होली खेलने का ही नहीं बल्कि फाग के गीत और बृज की होली के भजन सुनने भर से जो अनुभूति होती है उसे व्यक्त करना अत्यधिक कठिन है. ऐसे में आज हम आपको बृज धाम के उन्हीं होली के प्रसिद्द गीतों की धुन सुनाने जा रहे हैं जिन्हें सुनकर आपका हृदय गदगद हो उठेगा और अपने लल्ला और राधे रानी के धाम आप होली खेलने भागे चले आएंगे. 

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1. आज बिरज में होरी रे रसिया...
आज बिरज में होरी रे रसिया होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया 

कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया॥
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ कमोरी रे रसिया॥ 
अपने-अपने घर से निकसीं, कोई श्यामल, कोई गोरी रे रसिया॥
उड़त गुलाल लाल भये बादर, केशर रंग में घोरी रे रसिया॥ 

बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, और नगारे की जोड़ी रे रसिया॥ 
कै मन लाल गुलाल मँगाई, कै मन केशर घोरी रे रसिया॥ 
सौ मन लाल गुलाल मगाई, दस मन केशर घोरी रे रसिया॥
'चन्द्रसखी' भज बाल कृष्ण छबि, जुग-जुग जीयौ यह जोरी रे रसिया॥ 
आज बृज में होली रे रसिया। होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥

2. होरी खेलन आयौ श्याम, आज याहि रंग में बोरौ री
कोरे-कोरे कलश मँगाओ, रंग केसर घोरौ री। रंग-बिरंगौ करौ आज कारे तो गौरौ री॥ होरी.
पार परौसिन बोलि याहि आँगन में घेरौ री। पीताम्बर लेओ छीनयाहि पहराय देउ चोरौ री॥ होरी.
हरे बाँस की बाँसुरिया जाहि तोर मरोरौ री। तारी दे-दै याहि नचावौ अपनी ओड़ौ री॥ होरी.
'चन्द्रसखी; की यही बीनती करै निहोरौ री। हा-हा खाय परै जब पइयां तब याहि छोरौ री॥ होरी...

3. फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर।।
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली, जिन ढोल मृदंग बजाये हैं बंसी की घनघोर।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
जुर मिल के सब सखियाँ आई, उमड घटा अंबर में छाई, जिन अबीर गुलाल उडाये हैं, मारत भर भर झोर
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
ले रहे चोट ग्वाल ढालन पे, केसर कीच मले गालन पे, जिन हरियल बांस मंगाये हैं चलन लगे चहुँ ओर।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
भई अबीर घोर अंधियारी, दीखत नही कोऊ नर और नारी, जिन राधे सेन चलाये हैं, पकडे माखन चोर।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
जो लाला घर जानो चाहो, तो होरी को फगुवा लाओ, जिन श्याम सखा बुलाए हैं, बांटत भर भर झोर ।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
राधे जू के हा हा खाओ, सब सखियन के घर पहुँचाओ, जिन घासीराम पद गाए हैं, लगी श्याम संग डोर।
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर....
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर। 
फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर।।

4. मैं होरी कैसे खेलूँ री जा साँवरिया के संग रंग मैं होरी
कोरे-कोरे कलश मँगाये उनमें घोरौ रंग। भर पिचकारी ऐसी मारी चोली हो गई तंग॥ रंग में.
नैनन सुरमा दाँतन मिस्सी रंग होत भदरंग। मसक गुलाल मले मुख ऊपर बुरौ कृष्ण कौ संग॥ रंग में
तबला बाज सारंगी बाजी और बाजी मृदंग। कान्हा जी की बाँसुरी बाजे राधाजी के संग॥ रंग में
चुनरी भिगोये, लहँगा भिगोये छूटौ किनारी रंग। सूरदास कौ कहा भिगोये कारी कामर अंग॥ रंग में...

5. मेरी चुनरी में पड़ गयौ दाग री जाने कैसौ चटक रंग डारौ,
श्याम मोरी चुनरी में पड़ गयौ दाग री कैसो चटक रंग डारौ।।
औरन को अचरा ना छुअत है...या की मोहि सौं, या की मोहि सो लग रही लाग री कैसौ चटक रंग डारौ,
श्याम मोरी चुनरी में पड़ गयौ दाग री....

मो सो कहां कोऊ सुन्दर नारी... ये तो मोही सौं, ये तो मोही सौं खेले फाग री कैसौ चटक रंग डारौ,
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री.......

बल बल दास आस ब्रज छोड़ौ... ऐसी होरी में, ऐसी होरी में लग जाये आग री कैसो चटक रंग डारौ,
श्याम मोरी चुनरी में पड़ गयो दाग री.....

मेरी चुनरी में पड़ गयौ दाग री जाने कैसो चटक रंग डारौ,
श्याम मोरी चुनरी में पड़ गयौ दाग री कैसो चटक रंग डारौ।।

6 . नैनन में पिचकारी दई, मोय गारी दई,
होरी खेली न जाय, होरी खेली न जाय॥ टेक
क्यों रे लँगर लँगराई मोते कीनी, ठाड़ौ मुस्काय॥ होरी
नेक नकान करत काहू की, नजर बचावै भैया बलदाऊ की। पनघट सौ घर लौं बतराय, घर लौं बतराय॥ होरी
औचक कुचन कुमकुमा मारै, रंग सुरंग सीस ते ढारै। यह ऊधम सुनि सासु रिसियाय, सुनि सासु रिसियाय॥ होरी
होरी के दिनन मोते दूनौ अटकै, सालिगराम कौन याहि हटकें। अंग लिपटि हँसि हा हा खाय॥ होरी...