छत्तीसगढ़ के इस गांव में एक हफ्ते पहले ही मना ली जाती है होली
पूरा भारत देश जहां 12 और 13 मार्च को होली के रंग में सराबोर होगा वहीं छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के ग्राम सेमरा (सी) में पांच व छह मार्च को होली खेल ली गई। पौने दो सौ की आबादी वाले सेमरा गांव के ग्रामीण सैकड़ों वर्षो से इस अनोखी परंपरा को निभा रहे हैं।
नई दिल्ली:
पूरा भारत देश जहां 12 और 13 मार्च को होली के रंग में सराबोर होगा वहीं छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के ग्राम सेमरा (सी) में पांच व छह मार्च को होली खेल ली गई। पौने दो सौ की आबादी वाले सेमरा गांव के ग्रामीण सैकड़ों वर्षो से इस अनोखी परंपरा को निभा रहे हैं। ग्राम देवता का मान रखने के लिए इस गांव के निवासी होली का त्योहार तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व ही मना लेते हैं।
ग्राम सेमरी (सी) के सरपंच सुधीर बललाल ने बताया, 'इस वर्ष पांच मार्च को होलिका दहन किया गया। छह मार्च को परंपरा के अनुसार होली खेली गई। रात्रि को ग्राम देवता के मंदिर में परंपरा अनुसार पूजा के बाद होलिका दहन किया गया। दूसरे दिन यानी छह मार्च को सुबह पुन: ग्राम देवता की विधि विधान के साथ पूजा के बाद रंग-गुलाल खेला गया।'
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दीपावली भी एक हफ्ते पहले मनायी जाती है
गांव की फाग मंडली ने नगाड़ों की धुन में फाग गायन किया। फाग गीतों के स्वर फूटते ही गांव के बच्चे, युवा और बुजुर्ग डंडा नृत्य पर जमकर झूमे। इसी तरह इस गांव में दीपावली, पोला और हरेली के पर्व को भी तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व ही मना लिया जाता है।
ग्राम देवते के स्वप्न को पूरा करने के लिए एक हफ्ते पहले मनाया जाता है त्योहार
अब तक किसी ने भी अपने पूर्वजों के जमाने से चली आ रही इस परंपरा से मुंह नहीं मोड़ा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस पंरपरा की शुरुआत कब हुई, इससे ग्रामीण अनजान हैं। यहां ग्राम देवता सिरदार देव के स्वप्न को साकार करने प्रतिवर्ष त्योहार एक सप्ताह पूर्व ही मना लिए जाते हैं।
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सैकड़ों वर्ष पूर्व इस गांव में एक बुजुर्ग आकर रहने लगा। उनका नाम सिरदार था। उनकी चमत्कारिक शक्तियों एवं बातों से गांव के लोगों की परेशानियां दूर होने लगी। लोगों में उनके प्रति आस्था व श्रद्धा का विश्वास उमड़ने लगा। समय गुजरने के बाद सिरदार देव के मंदिर की स्थापना की गई।
मान्यता है कि किसी किसान को स्वप्न देकर सिरदार देव ने कहा था कि प्रतिवर्ष दीपावली, होली, हरेली व पोला ये चार त्योहार हिंदी पंचाग में तय तिथि से एक सप्ताह पूर्व मनाए जाएं ताकि इस गांव में उनका मान बना रहे। तब से ये चार त्योहार प्रतिवर्ष ग्रामदेव के कथनानुसार मनाते आ रहे हैं।
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