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इस जगह को कहा जाता है 'नर्क का द्वार' जहां पिछले पांच दशकर से लगातार जल ही है आग

नर्क का नाम सुनते ही यकीनन आपके रोंगटे खड़े हो जाते होंगे, लेकिन आप इस बात से संतुष्ट हो जाते होंगे कि ये तो सिर्फ कल्पना मात्र है. लेकिन आज हम आपको पृथ्वी पर मौजूद एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जो यकीनन नर्क से कम नहीं है.

Updated on: 24 Jun 2023, 03:18 PM

New Delhi:

स्वर्ग और नर्क के बारे में तो हम सब बचपन से ही सुनते आते हैं. कहा जाता है कि दुनिया में जो अच्छे कर्म करता है उसे मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है. वहीं जो लोग बुरे काम करते हैं उन्हें नर्क भोगना पड़ता है. मरने के बाद क्या होगा इसके बारे में कोई नहीं जानता. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारी पृथ्वी पर ही नर्क मौजूद है. जहां से पिछले पांच दशक से ज्यादा समय से लगातार आग निकल रही है. लोग इसे नर्क का दरवाजा नाम से ही जानते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं तुर्कमेनिस्तान में मौजूद एक विशालकाय क्रेटर के बारे में जिसे लगातार आग निकल रही है.

हमेशा निकलती रहती है आग

बता दें कि नर्क के दरवाजे के नाम से मशहूर हो चका विशाल क्रेटर या गड्ढा 230 फीट चौड़ा है. इनमें पिछले 50 सालों से ज्यादा वक्त से आग जल रही है. इसका आकार इतना बड़ा है कि काभी बड़ी संख्या में लोग एक बार में ही इसमें आ सकते हैं. बताया जाता है कि इस गड्ढे में आग लगने का कारण जहरीली गैस है. जो आसपास के लोगों के लिए खतरा बनी हुई है. इस गैस से लोग धीरे-धीरे बीमार हो रहे हैं. ये विशालकाय क्रेटर काराकुम रेगिस्तान में मौजूद है. जो अश्गाबत शहर से करीब 160 मील दूरी पर स्थित है. इस जगह को लोग 'माउथ ऑफ हेल' या 'गेट ऑफ हेल' भी कहते हैं.

कैसे लगी इसमें आग

बताया जाता है कि ये विशाल गड्ढा पहले नहीं था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के हालात खराब हुए तो उसने तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के लिए रेगिस्तान में खुदाई शुरु की. जहां उन्हें प्राकृतिक गैस तो मिली लेकिन वहां जमीन धंस गई. जो एक विशालकाय गड्ढा बन गया. यहां से मीथेन गैस का रिसाव होने लगा. वायुमंडल को ज्यादा नुकसान से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने इस गड्ढे में आग लगा दी. उन्हें लगा कि जैसे ही गैस खत्म होगी आग बुझ जाएगी, लेकि ऐसा नहीं हुआ और ये आज तक जल रही है.

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बंद करने की कोशिश कई बार हुई

इस गड्ढे को बंद करने की कई बार कोशिश की गई. तुर्कमेनिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहामेदोव ने इस गड्ढे को बंद करने का फैसला लिया. लेकिन उसपर अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.

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