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साल 2018: सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले, जिसने डाला आम लोगों की जिंदगी पर असर

ऐतिहासिक फैसलों को लेकर साल 2018 यादगार साल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल कई महत्‍वपूर्ण फैसले दिए.

Updated on: 18 Dec 2018, 10:59 AM

नई दिल्ली:

ऐतिहासिक फैसलों को लेकर साल 2018 यादगार साल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल कई महत्‍वपूर्ण फैसले दिए. कई फैसलों ने तो सीधे आम आदमी की जिंदगी को प्रभावित किया. कुछ फैसलों से देश की राजनीति गरमा गई. आंदोलन हुए, तोड़फोड़ और प्रदर्शन भी किए गए. एससी-एसटी एक्‍ट को लेकर दिए गए फैसले के बाद तो सरकार को मजबूर होकर वहीं प्रावधान बहाल करने पड़े, जिससे सुप्रीम कोर्ट ने निरस्‍त कर दिया था. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले:

1. राफेल पर सरकार को क्‍लीन चिट
राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, हमने कोर्ट में पेश किए रिकॉर्ड पर गौर किया. हमने सीनियर एयरफोर्स अधिकारियों से भी विभिन्न पहलुओं पर बात की. हम मानते हैं कि राफेल डील की फैसले की प्रकिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है. कोर्ट ने कहा इसमे कोई संदेह नहीं कि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत थी. ये भी सच है कि 126 राफेल की खरीद को लेलर डील पर लम्बी चली बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची थी. हम 126 एयरक्राफ्ट के बजाए 36 एयरक्राफ्ट की खरीद पर सरकार की फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते. हम सरकार को 126 एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसमे कोई सन्देह नहीं कि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उल्‍लिखित एक पैरा में करेक्‍शन को लेकर सरकार और विपक्ष में विवाद खड़ा हो गया है.

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2. तत्‍काल तीन तलाक अब अपराध
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी व्यवस्था में इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया. कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 365 पेज के फैसले में कहा, ‘3:2 के बहुमत से ‘तलाक-ए-बिद्दत’’ तीन तलाक को निरस्त किया जाता है. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक की इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाने की हिमायत करते हुए सरकार से कहा कि वह इस संबंध में कानून बनाए, जबकि न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिया. बहुमत के फैसले में कहा गया कि तीन तलाक सहित कोई भी प्रथा जो कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, अस्वीकार्य है.

3. समलैंगिकता अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष समलैंगिकता को लेकर अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने समलैंगिकता पर फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं है. अगर दो व्यस्कों के बीच सहमति से संबंध बनते हैं तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 6 सितंबर 2018 को दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 से बाहर कर दिया.

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4. व्यभिचार (एडल्‍ट्री) कानून खत्म
व्यभिचार (एडल्ट्री) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष सितंबर महीने में बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह महिलाओं की भावना को ठेस पहुंचाता और इस प्रावधान ने महिलाओं को पतियों की संपत्ति बना दिया था. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया था.

5. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक खत्‍म
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को समाप्त कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की सदस्यीय संविधान पीठ ने 4-1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. 800 साल पुराने सबरीमाला मंदिर में ये मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश ना करने दिया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी महिलाएं इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई है.

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6. आधार को मिला सशर्त आधार
सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष सितंबर महीने में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. साथ ही यह भी कहा है कि स्कूल में प्रवेश, मोबाइल फोन कनेक्शन के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि आधार कार्ड की ड्यूप्लिकेसी संभव नहीं है. कोर्ट ने कहा, यूजीसी, नीट और सीबीएसई परीक्षाओं और स्कूल के प्रवेश के लिए आधार अनिवार्य नहीं है. बैंकों को खाता खोलने के लिए आधार की जरूरत नहीं है, कोई भी मोबाइल कंपनी और निजी कंपनियां आधार डेटा नहीं ले सकतीं हैं.

7. निर्भया को मिला इंसाफ
देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को आधी रात को हुए निर्भया गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर फैसला बरकरार रखने का आदेश दिया और कहा, तीनों दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रहेगी. जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि साल 2018 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और बाबरी मस्जिद का मुद्दा पूरे साल चर्चा में रहा है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कई बार सुनवाई हुई लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया. सुप्रीम कोर्ट 2019 जनवरी में इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा.

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8. कावेरी जल विवाद- 'पानी पर सबका हक'
कावेरी जल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को अहम फैसला सुनाते हुए कहा, नदी के पानी पर किसी भी स्टेट का मालिकाना हक नहीं है. कर्नाटक को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि वह बिलिगुंडलू डैम से तमिलनाडु के लिए 177.25 टीएमसी (थाउजेंड मिलियन क्यूबिक) फीट पानी छोड़े. हालांकि कोर्ट ने तमिलनाडु को मिलने वाले पानी में 14.75 टीएमसी फीट की कटौती की है. यानी अब उसे पहले से 5% कम मिलेगा. वहीं, कर्नाटक के कोटे में 14.75 टीएमसी का इजाफा किया है.

9. दिल्‍ली का बॉस कौन
दिल्ली का असली बॉस कौन, इसपर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है. केंद्र-राज्य मिलकर काम करें. संघीय ढांचों में राज्यों को भी स्वतंत्रता मिली है. हर मामले में एलजी की इजाजत जरूरी नहीं है. पांच जजों की पीठ ने इस बात को सर्वसम्मति से माना कि असली शक्ति मंत्रिमंडल के पास है. जनमत का महत्व है तकनीकी पहलुओं में उलझाया नहीं जा सकता. एलजी दिल्ली के प्रशासक हैं. SC ने कहा सिर्फ तीन मुद्दे लैंड, लॉ ऐंड ऑर्डर और पुलिस को छोड़ दिल्ली सरकार किसी भी मुद्दे को लेकर कानून बना सकती और शासन कर सकती है. लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं. संविधान का पालन होना चाहिए. सरकार जनता के प्रति जवाबदेह हो.

10. एससी-एसटी एक्‍ट के कुछ प्रावधान निरस्‍त
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग पर बंदिश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा था, एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी. इसके पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा. यदि आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा था कि संसद ने यह कानून बनाते समय नहीं यह विचार नहीं आया होगा कि अधिनियम का दुरूपयोग भी हो सकता है. देशभर में ऐसे कई मामले सामने आई जिसमें इस अधिनियम के दुरूपयोग हुआ है. हालांकि केंद्र सरकार ने संसद में संशोधन विधेयक पास कराकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और अब पुराने प्रावधान फिर से बहाल हो गए हैं.

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