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शब्बीर शाह को आतंकी फंडिंग मामले में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया

धनशोधन के मामले में गिरफ्तार कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने बुधवार को अदालत से जमानत दिए जाने की मांग की, जिसके बाद अदालत ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

Updated on: 09 Aug 2017, 09:00 PM

नई दिल्ली:

धनशोधन के मामले में गिरफ्तार कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने बुधवार को अदालत से जमानत दिए जाने की मांग की, जिसके बाद अदालत ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सिद्धार्थ शर्मा ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा आगे की पूछताछ के लिए आरोपी की हिरासत की मांग नहीं किए जाने पर शाह को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। शाह की छह दिनों की हिरासत समाप्त होने के बाद उसे अदालत के समक्ष पेश किया गया।

अदालत ने शब्बीर शाह की जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए मामले को 14 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

शाह के वकील एम.एस. खान ने जमानत याचिका में कहा कि ईडी ने अदालत को गुमराह किया है और इस तथ्य को छिपाया कि आरोपी मोहम्मद असलम वानी को युद्ध, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम व अन्य अपराधों के लिए कोई सजा नहीं हुई है।

खान ने यह भी कहा कि शाह 2011 से लगातार घर में नजरबंद रहे और उन्हें मस्जिद में नमाज अदा करने और अपने रिश्तेदारों व दोस्तों से मिलने तक की इजाजत नहीं दी गई। यहां तक कि उन्हें अपने करीबी लोगों के निधन पर भी नहीं जाने दिया गया।

उन्होंने कहा कि शाह कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं और उन्हें उचित इलाज की जरूरत है। वकील ने दावा किया कि उनके मुवक्किल को फंसाने के लिए आरोप लगाए गए हैं। शाह ने कहा कि अदालत द्वारा जमानत देने के लिए लगाई गई किसी भी शर्त का पालन करेंगे।

शब्बीर शाह को 2005 के धनशोधन के एक मामले से जुड़े होने के आरोप में 25 जुलाई को श्रीनगर से गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने हवाला कारोबारी मोहम्मद असलम वानी को गिरफ्तार किया था।

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वानी ने कबूल किया है कि उसने शाह को हवाला के जरिए 2.25 करोड़ रुपये दिए थे। ईडी ने धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया।

ईडी ने वानी को रविवार को गिरफ्तार किया। वह 14 अगस्त तक के लिए हिरासत में है। विशेष शाखा द्वारा दर्ज 2005 के मामले में अदालत ने सह आरोपी वानी को आपराधिक साजिश व दूसरे आरोपों से तो बरी कर दिया, लेकिन उसे शस्त्र अधिनियम के तहत दोषी करार दिया।

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