निजता का अधिकारः सुप्रीम कोर्ट में ये दो केस हो चुके हैं खारिज
याचिकाकर्ता ने सरकार के इस दावे को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि यह अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
New Delhi:
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई होगी। एक तरफ सरकार का कहना है कि यह अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार निहित है।
याचिकाकर्ता ने सरकार के इस दावे को चुनौती दी है जिसमें कहा गया है कि यह अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है। कोर्ट की 9 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
इस केस से पहले सुप्रीम कोर्ट में निजता के अधिकार को लेकर दो मामले की सुनवाई हो चुकी है। दोनों मामलों में कोर्ट का फैसला याचिकाकर्ता के खिलाफ गई है।
पहला केस
पहला केस साल 1954 की है जब दिल्ली के जिलाधिकारी ने डालमिया ग्रुप के ठिकानों पर छापामारी करके कई कागजात अपने साथ ले गए थे। जिसके बाद डालमिया ग्रुप ने इन कागजातों को वापस पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था।
यह केस एमपी शर्मा बनाम सतीश चंद्रा (जिलाधिकारी) के नाम से जाना जाता है। इस केस की सुनवाई आठ जजों की बेंच ने की थी। इस सुनवाई में फैसला डालमिया ग्रुप के खिलाफ गई थी।
दरअसल डालमिया ग्रुप पर पैसे के घालमेल के आरोप में कई ठिकानों पर छापे पड़े थे। उनके कई कागजात सीज कर लिए गए थे। जिससे की घालमेल का पता लगया जा सके।
दूसरा केस
दूसरा केस खड़ग सिंह बनाम यूपी सरकार का है। इस केस में यूपी पुलिस ने खड़ग सिंह को गिरफ्तार किया था लेकिन साक्ष्य के अभाव में बरी करना पड़ा था। बरी होने के बाद भी पुलिस उन पर कड़ी नजर रख रही थी।
पुलिस कई अन्य मामलों में जासूसी करने लगी। खड़ग सिंह ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि पुलिस के जासूसी के कारण मेरे निजता का अधिकार का हनन हो रहा है।
उन्होंने कहा था कि पुलिस रात में भी मेरे घर में छापेमारी करती है। इस कारण मेरे निजता के अधिकार का हनन हो रहा है। यूपी पुलिस को मिले अधिकार के मुताबिक वह रात में भी छापेमारी कर सकती थी।
बाद में यूपी पुलिस के इस नियम में संशोधन कर दिया गया था। लेकिन कोर्ट ने इसे निजता के अधिकार का हनन मानने से इंकार कर दिया था।
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