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आज अगर ये वकील नहीं होते तो राम मंदिर का निर्माण संभव नहीं हो पाता, जानें कौन हैं वो शख्सियत

आखिरकार वकील हरि शंकर जैन पर प्रभु राघव की कृपा हुई और वो राम को न्याय दिलाने में सफलता हासिल की. इस केस से जुड़े लोगों का कहना है कि हरि शंकर जैन कोर्टों का चक्कर नहीं लगाते तो मंदिर का निर्माण संभव नहीं था.

Updated on: 22 Jan 2024, 01:48 PM

नई दिल्ली:

एक ओर अपनी मां के जाने का दर्द.. तो दूसरी तरफ भगवान श्रीराम को न्याय दिलाने के लिए वकील हरि शंकर जैन वर्षों तक न्यायालयों का चक्कर लगाते रहे. आखिरकार वकील हरि शंकर जैन पर प्रभु राघव की कृपा हुई और राम को न्याय दिलाने में सफलता हासिल की.  कोर्ट में वकील हरि शंकर जैन ने याचिका में लिखा ''भगवान राम के दर्शन पाना प्रत्येक हिंदू का जन्मसिद्ध अधिकार है''. ये याचिका उन्होंने सबसे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सौंपी थी. तारीख थी 20 दिसंबर 1992 जब माता के निधन होने पर मुंडन करवाकर सीधा वकील साहब 13 दिन बाद याचिका लेकर कोर्ट पहुंच गए थे. लेकिन अयोध्या राम मंदिर मामले में उन्हें पहली जीत साल 1993 में मिली, जब इनकी याचिका पर ही जिला जज ने बाबरी मस्जिद का गेट हिन्दुओं की पूजा के लिए खुलवाया था. 

लेकिन उसके बाद इनका जीना मुश्किल हो गया. इस केस को छोड़कर मुस्लिम पक्ष की ओर से केस लड़ने के लिए उन्हें कई बार डराया धमकाया गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, ना वो डरे, उन्होंने ठान लिया कि वो सनातन धर्म के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देंगे. इस केस को करीब से जानने वालों का कहना और मानना है कि हरि शंकर जैन की ही बदौलत आज राम मंदिर का निर्माण संभव हुआ है.  वकील हरी शंकर जैन और उनके बेटे विष्णु जैन ने कई साल निस्वार्थ इस केस पर मेहनत की और इसके बदले एक रूपये की फीस नहीं ली. आज हरि शंकर जैन साहब की उम्र 69 की हो चली है और वकालत में उनका अनुभव 47 सालों का है. 

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फ्री में केस लड़ते हैं पिता और पुत्र

अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला विराजमान हो गए. करीब 500 वर्षों के त्याग और 70 साल के विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और मुस्लिमों को अलग से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. राममंदिर केस में जीत के बाद ये जोड़ी आज भी ताजमहल, ज्ञानवापी, कुतुबमीनार जैसे कई केसेस फ्री में लड़ रही है.