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Chanakya Niti: चाणक्य के अनुसार क्या है मनुष्य का असली धर्म, यहां जानिए 

Chanakya Niti: चाणक्य नीति विभिन्न सिद्धांतों का संग्रह है जो मनुष्य को एक सार्थक और धर्मपूर्ण जीवन जीने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं.

Updated on: 08 May 2024, 11:27 AM

नई दिल्ली :

Chanakya Niti: चाणक्य ने अपनी प्रसिद्ध रचना "अर्थशास्त्र" में मनुष्य के धर्म के बारे में विस्तार से लिखा है. चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय विचारक, राजनीतिज्ञ, और कूटनीतिज्ञ थे. उन्हें मौर्य साम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार और मार्गदर्शक होने का श्रेय दिया जाता है. चाणक्य के अनुसार, मनुष्य का असली धर्म उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति और कर्तव्यों को पूरा करना है. उन्होंने कहा कि मनुष्य को धर्म के पालन के साथ अपनी धर्मिक, सामाजिक, और नैतिक दायित्वों का पालन करना चाहिए. इसके अलावा, वह समाज में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए समर्थ होना चाहिए. चाणक्य ने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म का अर्थ तब तक समझा जा सकता है जब तक कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है और समाज के लिए सही कार्य कर रहा है. इस प्रकार, चाणक्य ने मनुष्य के असली धर्म को उसके कर्तव्यों और उनके पालन में देखा.

नीति

नीति का अर्थ है नैतिकता और आचार-व्यवहार. चाणक्य का मानना था कि मनुष्य को सदैव सत्य, ईमानदारी, और न्याय का पालन करना चाहिए. नैतिकता, अर्थव्यवस्था, भोग, और आत्म-साक्षात्कार का एक समग्र दर्शन है. चाणक्य का मानना था कि मनुष्य को इन चारों स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करके एक संतुलित और सार्थक जीवन जीना चाहिए.

अहिंसा

चाणक्य ने अहिंसा को मनुष्य के धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया. उनका मानना था कि किसी भी प्राणी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. चाणक्य आत्म-संयम को मनुष्य का धर्म मानते हैं. उनका मानना है कि मनुष्य को अपनी इंद्रियों और भावनाओं को नियंत्रित करना चाहिए. उनका मानना है कि मनुष्य को सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, और न्याय जैसे नीति-नियमों का पालन करना चाहिए.

कर्म और भोग

चाणक्य ने कर्म को मनुष्य के जीवन का मुख्य आधार माना. उनका मानना था कि कर्म से ही मनुष्य को जीवन में सफलता प्राप्त होती है. काम का अर्थ है इंद्रियों का आनंद और भौतिक सुख. चाणक्य का मानना था कि मनुष्य को अपने जीवन का आनंद लेना चाहिए और सुख-सुविधाओं का लाभ उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भोग जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसे संयम और नैतिकता के साथ संतुलित रखना चाहिए.

धर्म और राजधर्म

धर्म का अर्थ है सत्य के मार्ग पर चलना, नैतिकता का पालन करना, और अच्छे कर्म करना. चाणक्य का मानना था कि मनुष्य को ईश्वर और सभी जीवों का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने ईश्वर भक्ति, दान, और परोपकार को भी धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया.चाणक्य ने राजाओं के लिए भी धर्म का उल्लेख किया है. उनका मानना था कि राजा का धर्म प्रजा की रक्षा करना, न्याय स्थापित करना, और समाज का कल्याण करना है.

परोपकार

चाणक्य ने परोपकार को भी मनुष्य के धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया. उनका मानना था कि दूसरों की मदद करना और समाज के लिए योगदान देना मनुष्य का कर्तव्य है. चाणक्य के अनुसार, परोपकार धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो मनुष्य को उनके संबंधित समाज के सदस्यों के प्रति समर्पित और उदार बनाता है. वह समाज में सहायता के लिए तत्पर रहता है और दूसरों की समस्याओं को समझने और उन्हें हल करने का प्रयास करता है.

विद्या

चाणक्य ने शिक्षा और ज्ञान को मनुष्य के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण माना. उनका मानना था कि शिक्षा से मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है और ज्ञान से मनुष्य का जीवन प्रकाशित होता है. चाणक्य के अनुसार, विद्या सिर्फ एक शिक्षा का संग्रह नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति को उच्चतम आदर्शों और मूल्यों के प्रति प्रेरित करती है, और उसे समाज में उपयोगी और सकारात्मक रूप से योग्य बनाती है. इस प्रकार, विद्या को धर्म का महत्वपूर्ण पहलू माना जा सकता है क्योंकि यह व्यक्ति को नैतिक और सामाजिक मूल्यों की समझ और सम्मान के प्रति प्रेरित करती है.

चाणक्य के अनुसार, मनुष्य का असली धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है. मनुष्य का धर्म नीति, अहिंसा, परोपकार, विद्या, कर्म, और राजधर्म (राजाओं के लिए)  का पालन करने में निहित है. चाणक्य के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और मनुष्य को एक बेहतर जीवन जीने में मार्गदर्शन करते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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