पीएम मोदी एस जयशंकर के जरिए बढ़ाएंगे भारत का दबदबा, विदेश मंत्री बनाने की अटकलें
पीएम मोदी दक्षिण एशिया में भारत का दबदबा बनाने के लिए एस जयशंकर का इस्तेमाल करेंगे. बतौर विदेश सचिव एस जयशंकर ने कई मौकों पर भारत को कूटनीतिक विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
highlights
- पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाए जाने की अटकलें.
- पीएम मोदी जयशंकर के जरिये दक्षिण एशिया में बढ़ाएंगे भारत का दबदबा.
- डोकलाम विवाद समेत अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते में निभाई भूमिका.
नई दिल्ली.:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने वाले मंत्रिमंडल (Team Modi 2.0) में अगर किसी ने चौंकाया, तो वह थे पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर (S Jaishankar). जाहिर है टीम मोदी 2.0 में जयशंकर को शामिल किए जाने के कहीं गहरे निहितार्थ हैं. अगर राजनीतिक गलियारों में चल रहे कयासों पर यकीन किया जाए, तो पीएम मोदी जयशंकर को विदेश मंत्री (Foreign Minister) के महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो से नवाज सकते हैं. ऐसा इसलिए कि मोदी दक्षिण एशिया (South Asia) में भारत का दबदबा बनाने के लिए एस जयशंकर का इस्तेमाल करेंगे. बतौर विदेश सचिव एस जयशंकर ने कई मौकों पर भारत को कूटनीतिक विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
शानदार रहा है अब तक का कैरियर
अगर एस जयशंकर के कार्यकाल (Tenure) की बात करें तो वह जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव (Foreign Secretary) रहे. इससे पहले वह सिंगापुर में उच्चायुक्त, चीन और अमेरिका में भारतीय राजदूत जैसे पदों पर रह चुके हैं. उन्होंने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में उनके प्रदर्शन ने उन्हें विदेश सचिव के प्रतिष्ठित पद पर पहुंचाया. यह अलग बात है कि विदेश सचिव पद पर नियुक्ति के दौरान कई वरिष्ठ अधिकारियों (Seniority) की अनदेखी की गई थी.
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मोदी से पहली मुलाकात में बन गए गहरे संबंध
जयशंकर और मोदी की पहली मुलाकात ही दोनों के बीच गहरे संबंध की वायस बनी थी. बतौर गुजरात (Gujarat) के सीएम नरेंद्र मोदी चीन यात्रा पर गए थे. उस वक्त एस जयशंकर चीन में भारतीय राजदूत थे. बताते हैं कि मोदी की चीन यात्रा को सफल बनाने में एस जयशंकर ने खासी भूमिका निभाई थी. चीन ने गुजरात में अच्छा-खासा निवेश किया. इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण था टीबियन इलेक्ट्रिक उपकरण के साथ एक समझौता.
कई भाषाओं के हैं कुशल जानकार
दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक जयशंकर ने राजनीति विज्ञान (Political Science) में एमए की डिग्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की डिग्री ली है. वह 1977 के भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service) बैच से हैं और उनकी पहली बड़ी जिम्मेदारी मॉस्को के भारतीय दूतावास में तीसरा सचिव और पहला सचिव के रूप में रही. रूसी भाषा के जानकार जयशंकर को जापानी और हंगेरियन भाषाओं की भी अच्छी समझ है.
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भारत की पहली परमाणु नीति में था पिता का योगदान
जयशंकर के पिता के. सुब्रह्मण्यम को देश की पहली परमाणु आयुधशाला बनाने और परमाणु अस्त्रों (Nuclear Doctorine) के पहले उपयोग न करने की नीति को तैयार करने का श्रेय दिया जाता है. इस लिहाज से कह सकते हैं कि जयशंकर को कूटनीति एवं सामरिक महत्व की रणनीति बनाने की योग्यता खून में ही मिली है. यही वजह है कि जयशंकर ने अपने कार्यकाल के दौरान कई कूटनीतिक विवादों को सफलतापूर्वक सुलझाया है. जयशंकर को चीन (China) में भारत का सबसे मजबूत हाथ माना जाता है. वह वहां देश के सबसे लंबे समय तक राजदूत रहे हैं.
डोकलाम विवाद सुलझाने का मिला श्रेय
इसके अलावा जयशंकर को विदेश सचिव के रूप में भारत और चीन के बीच पिछले साल डोकलाम (Doklam) में प्रस्ताव पर बातचीत करने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है. विदेश सचिव के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जयशंकर ने कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता में बाहरी मामलों की एक समिति को बताया कि भारत और चीन के बीच सीमा का मुद्दा 'दुनिया का सबसे बड़ा रियल एस्टेट विवाद' है और समिति को कैसे भी इसमें बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
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