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काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, दर्शन, गंगा में स्‍नान से मिलता है मोक्ष

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है.

Updated on: 25 Mar 2021, 12:12 PM

highlights

  • काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है
  • हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता
  • विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं

वाराणसी:

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. ज्ञानव्यापी मस्जिद ही असल काशी विश्वनाथ मंदिर है, ऐसा दावा किया जाता है. यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है. काशी विश्‍वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्‍ट स्‍थान है. ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं. यहिपर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया और काशिनरेश तथा विद्वतजनोद्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खूब धुमधामसे निकाली गयी.महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है. 

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वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था. बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था.

उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है. जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था. जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया.

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हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता. उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं. यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है. इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की. अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये.

सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है. भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो. मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है. विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं:-

दशाश्वेमघ,
लोलार्ककुण्ड,
बिन्दुमाधव,
केशव और
मणिकर्णिका
और इनहीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है.