चौराहे पर भारत-चीन संबंध, एलएसी पर तनाव रहते सहयोग नहीं
विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने दो टूक कहा है कि जब तक एलएसी पर तनाव रहेगा, तब तक चीन के साथ दूसरे क्षेत्रों में रिश्तों को सामान्य नहीं बनाया जा सकता.
highlights
- विदेश मंत्री ने एलएसी पर यथास्थिति पर रखी राय
- चीन पर समझौते का पालन नहीं करने का आरोप
- भारत-चीन संबंध चौराहे पर है, दिशा चीन पर निर्भर
नई दिल्ली:
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के कुछ इलाकों में चीनी सैनिकों की बढ़ती गतिविधियों की खबरें आने के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने दो टूक कहा है कि जब तक एलएसी पर तनाव रहेगा, तब तक चीन के साथ दूसरे क्षेत्रों में रिश्तों को सामान्य नहीं बनाया जा सकता. इसके साथ ही जयशंकर ने 1988 में पूर्व पीएम राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) की बीजिंग यात्रा के दौरान सीमा पर शांति बनाए रखने को लेकर किए गए समझौते को तोड़ने का आरोप भी चीन (China) पर लगाया है. इसके बाद 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाये रखने के लिए दो महत्वपूर्ण समझौते हुए. यह अलग बात है कि चीन ने समझौता तोड़ने का काम किया.
पूर्वी लद्दाख की घटना से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव
फाइनेंशियल एक्सप्रेस और इंडियन एक्सप्रेस की ओर से आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर स्थिरता के मद्देनजर कई क्षेत्रों में संबंधों में विस्तार हुआ, लेकिन पूर्वी लद्दाख की घटना ने इस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि क्षेत्र में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया जल्द पूरी होनी चाहिए और सीमावर्ती इलाकों में पूर्ण रूप से शांति बहाली से ही द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है. गौरतलब है कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच पैंगोंग सो इलाके में पिछले वर्ष हिंसक संघर्ष के बाद सीमा गतिरोध उत्पन्न हो गया था. इसके बाद दोनों पक्षों ने हजारों सैनिकों और भारी हथियारों की तैनाती की थी. सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने इस वर्ष फरवरी में पैंगोंग सो के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से सैनिकों और हथियारों को पीछे हटा लिया था.
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चौराहे पर हैं भारत-चीन संबंध
इस बीच, विदेश मंत्री ने कहा, 'मैं समझता हूं कि संबंध चौराहे पर हैं और इसकी दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या चीनी पक्ष सहमति का पालन करता है, क्या वह हमारे बीच हुए समझौतों का पालन करता है. पिछले साल यह स्पष्ट हो गया कि अन्य क्षेत्रों में सहयोग, सीमा पर तनाव के साथ जारी नहीं रह सकता है.' चीन द्वारा क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने एवं दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा के बारे में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, 'भारत प्रतिस्पर्धा करने को तैयार है और हमारी अंतर्निहित ताकत और प्रभाव है जो हिन्द प्रशांत से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक है.' उन्होंने कहा, 'प्रतिस्पर्धा करना एक बात है लेकिन सीमा पर हिंसा करना दूसरी बात है.'
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1988 की सहमति से चीप हटा पीछे
विदेश मंत्री ने कहा, 'मेरे पास इस समय कोई स्पष्ट जवाब नहीं है लेकिन 1962 के संघर्ष के 26 वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे. 1988 में एक तरह की सहमति बनी जिससे सीमा पर स्थिरता कायम हुई.' उन्होंने कहा कि इसके बाद 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दो महत्वपूर्ण समझौते हुए. विदेश मंत्री ने कहा कि इस समझौतों में यह कहा गया था कि आप सीमा पर बड़ी सेना नहीं लाएंगे और वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान किया जाएगा और इसे बदलने का प्रयास नहीं होगा, लेकिन पिछले वर्ष चीन वास्तव में 1988 की सहमति से पीछे हट गया. उन्होंने कहा कि अगर सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी तब निश्चित तौर पर इसका संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा.
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