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कांग्रेस आलाकमान का संकट और बढ़ा, शीला दीक्षित के बाद कौन संभालेगा दिल्ली की कमान

दिल्ली में पहले से ही अंदरूनी कलह का शिकार चल रही कांग्रेस के लिए यह संकट कहीं बड़ा है. इसकी वजह कुछ महीने बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं.

Updated on: 21 Jul 2019, 07:59 AM

highlights

  • कांग्रेस के पास नहीं है दिल्ली में शीला दीक्षित जैसा कद्दावर नेतृत्व.
  • कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से चुनौतियां और बढ़ीं.
  • शीला दीक्षित ने ही लोकसभा में कांग्रेस को बनाया था फर्स्ट रनर-अप

नई दिल्ली.:

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे से कांग्रेस में शुरू हुआ संकट शीला दीक्षित के आकस्मिक निधन से और गहरा गया है. दिल्ली में पहले से ही अंदरूनी कलह का शिकार चल रही कांग्रेस के लिए यह संकट कहीं बड़ा है. इसकी वजह कुछ महीने बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं. इस स्थिति में शीला दीक्षित जैसी कद्दावर नेता के न होने से दिल्ली कांग्रेस के लिए खासी असहज स्थिति पैदा हो गई. कांग्रेस आलाकमान भी अच्छे से जानता है कि दिल्ली में कांग्रेस को खड़ा करने का बूता अगर किसी में था, तो वह शीला दीक्षित ही थीं.

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अंदरूनी गुटबाजी और नया नेतृत्व
दिल्ली कांग्रेस के सामने अब एक-दूसरे से जुड़ी दो बड़ी चुनौतियां हैं. एक तो शीला दीक्षित सरीखे कद्दावर नेतृत्व की तलाश करना. वह भी एक ऐसा नेता जो दिल्ली कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी को रोक कर पार्टी कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक सके. यह चुनौती इसलिए और बड़ी हो जाती है, क्योंकि इन गुणों से भरपूर नेता दिल्ली कांग्रेस के पास नहीं है. फिर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अभी अध्यक्ष पद की तलाश नहीं कर सकी है. उस पर दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव काफी अहम हो गया है. खासकर यह देखते हुए कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का काफी कुछ दांव पर है.

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नहीं है शीला दीक्षित जैसा कद्दवार नेता
दिल्ली में कांग्रेस नेताओं की बात करें तो अजय माकन नाम जरूर बड़ा है, लेकिन उनमें सभी को साथ लेकर चलने वाली बात नहीं है. वह पहले से ही गुटबाजी का शिकार रहे हैं या यूं कहें कि गुटबाजी को हवा देते आए हैं. दिल्ली में कांग्रेस नेताओं का एक खेमा उनके साथ जरूर है, लेकिन उन्हें सर्वमान्य नेता नहीं कहा जा सकता है. इनसे इतर अगर तीन कार्यकारी अध्यक्षों हारुन युसूफ, देवेन्द्र यादव और राकेश लिलोठिया की बात करें तो तीनों ही क्रमश: जेपी अग्रवाल, एके वालिया और सुभाष चोपड़ा से काफी जूनियर हैं. इस लिहाज से कांग्रेस के लिए दिल्ली अध्यक्ष का चुनाव टेढ़ी खीर साबित होगा.

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कांग्रेस को शीला ने बनाया फर्स्ट रनर-अप
यहां इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि शीला दीक्षित ही दिल्ली कांग्रेस की गुटबाजी को दूर करने में सक्षम थीं. संभवतः इसी को देखते हुए दो विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद इस लोकसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित को दिल्ली की कमान सौंपी गई थी. इसका असर भी देखने में आया था. पहले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली की पांच लोकसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही. ऐसे में उनका अचानक चले जाना कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं है. शीर्ष नेतृत्व अभी इस नए संकट के लिए किसी स्तर पर तैयार नहीं था.