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क्या रूक सकेंगी हर दिन होने वाली 4657 मासूमों की मौत?

मामला सिर्फ देश की राजधानी दिल्ली तक सीमित नहीं. दुनिया के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 14 शहर भारत के हैं.

Updated on: 14 Oct 2018, 07:49 PM

नई दिल्ली:

बीते दिनों खबर आई कि देश की राजधानी दिल्ली की हवा एक बार फिर सबसे खराब है. बीते कुछ सालों से अक्टूबर के आखिर तक दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण डराने लगता है. आसपास के इलाकों में जलने वाली पराली, दिवाली के पटाखे और मौसम में बदलाव इसकी वजहें हो सकती हैं. वैसे हालात सुधारने के लिए दिल्ली सरकार को पहले से तय एक्शन प्लान पर काम करना होता है लेकिन एनजीटी दिल्ली सरकार से नाखुश है. तभी तो 25 अक्टूबर को डिप्टी सेक्रेटरी को तलब किया गया.

स्वच्छ भारत के दावों के बीच टॉप 15 प्रदूषित शहरों में 14 भारत के!

हालांकिं मामला सिर्फ देश की राजधानी दिल्ली तक सीमित नहीं. दुनिया के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 14 शहर भारत के हैं. कानपुर टॉप पर है, जबकि दिल्ली छठे स्थान पर! इनके साथ ही फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुड़गांव, जयपुर, पटियाला और जोधपुर भी. उत्तर भारत का शायद ही कोई सूबा बचा हो! यानि ईमानदारी का सवाल हर राज्य से जुड़ा है.

गंगा किनारे बसी करोड़ों जिंदगियों पर सवाल!

इस बीच जलवायु परिवर्तन पर आई आईपीसीसी की एक रिपोर्ट भी सुर्खियों में है, जिसके मुताबिक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस तक का औसत इजाफा होने पर गंगा नदी वाले राज्यों में 20 फीसदी बारिश की कमी हो सकती है.

जिसका सीधा सिर्फ करोड़ों की आबादी पर नहीं, बल्कि खेती और अनाज उत्पादन पर भी. क्योंकि देश के ज्यादातर इलाकों में खेती आज भी इन्द्रदेव की मेहरबानी पर ही निर्भर है.

खतरा बड़ा, वक्त कम!

रिपोर्ट में बताया गया है कि हालात सुधारने के लिए अगर अगले 12 सालों में जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो हालात बेकाबू हो जाएंगें. ऐसे में समझना होगा कि प्रदूषण के चलते दुनियाभर में सालाना 17 लाख बच्चों की मौत होती है यानि हर दिन 4657 बच्चे काल के गाल में समा रहे हैं.

पूरी दुनिया में हर साल 70 लाख लोग अकेले वायु प्रदूषण के चलते बेमौत मारे जा रहे हैं, जिसमें से 90 फीसदी से ज्यादा मौतें भारत जैसे कम और मध्यम आय वाले मुल्कों में हैं. बेशक हालात भयावह हैं. इस बीच ताजा रिपोर्ट ये बताते हुए डरा रही है कि 2.0 डिग्री तापमान बढ़ने का सीधा असर दुनिया की 37% आबादी पर दिखेगा.

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तो क्या वाकई हम गंभीर हैं. ईमानदार हैं? क्या वाकई पर्यावरण जैसा जरूरी मुद्दा हमारे नेताओं की प्राथमिकता में है? प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? समाज क्या कर सकता है? यही सब समझने के लिए इस 'सोमवार शाम 6 बजे न्यूज़ नेशन टीवी पर मेरे साथ देखिए इंडिया बोले.'