तेजस्वी के लखनऊ दौरे के बाद बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस की मौजूदगी पर फंसा पेंच
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महगठबंधन में पहले छोटे दलों के आकर्षण से महागठबंधन के नेता उत्साहित नजर आ रहे थे लेकिन अब इन दलों की मांग ने महागठबंधन में सीट बंटवारा चुनौती हो गई है.
पटना:
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महगठबंधन में पहले छोटे दलों के आकर्षण से महागठबंधन के नेता उत्साहित नजर आ रहे थे लेकिन अब इन दलों की मांग ने महागठबंधन में सीट बंटवारा चुनौती हो गई है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिना कांग्रेस के गठबंधन बनाए जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं. कांग्रेस के एक नेता की मानें तो पहले कांग्रेस के 12 से 20 सीटों पर लड़ने पर सहमति बनी थी लेकिन धीरे-धीरे अन्य दलों के इस गठबंधन में शामिल होने के बाद अब गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर किचकिच शुरू हो गई है. खास बात यह है कि कांग्रेस का महागठबंधन से अलग होने की बात तब से शुरू हुई है, जब से तेजस्वी लखनऊ में मायावती और अखिलेश यादव से मिलकर लौटे हैं.
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अब इस गठबंधन में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के अलावा जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी शामिल है. माना जाता है वामपंथी दल भी इस महागठबंधन में शामिल होंगे, हालांकि अब तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है.
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कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस कम से कम 16 सीटें मांग रही है और यह संकेत भी दे रही है कि कांग्रेस किसी भी हाल में 12 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. कांग्रेस के इस मांग के बाद राजद ने अपने दूसरे फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है, जिसमें कांग्रेस शामिल नहीं है. राजद के एक सूत्र ने बताया कि तेजस्वी बिना कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इसे लेकर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी के नेताओं से बातचीत भी हो चुकी है.
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बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले और राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यह बड़ी बात नहीं होगी. उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के परिणामों से उत्साहित कांग्रेस राजद की सोच से ज्यादा सीट की मांग कर रही है. ऐसे में इतना तय है कि कांग्रेस 10 सीट से नीचे नहीं जाएगी. किशोर कहते हैं, "राजद के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के विरोध के कारण कांग्रेस भी राजद से दूर होकर देश में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि राजद ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, इस कारण अलग हुए. इस बहाने को लेकर राजद भी कांग्रेस से अलग होकर अपने वोटबैंक को मजबूत करने की बात को लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी."
ऐसे में कांग्रेस और राजद के लिए अलग होना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने सीट बंटवारे को लेकर भी कहा कि महागठबंधन में दलों की संख्या अधिक हो गई है, जिसे कोई नकार नहीं सकता. ऐसे में कोई भी दल सीट को लेकर त्याग करने की स्थिति में नहीं है. इस बीच, कांग्रेस ने अपने शक्तिप्रदर्शन को लेकर तीन फरवरी को पटना के गांधी मैदान में रैली की घोषणा कर दी है. इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के भी आने की संभावना है. रैली को लेकर कांग्रेस के नेता उत्साहित हैं.
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वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं कि महागठबंधन में सीट बंटवारे का पेंच कांग्रेस के कारण फंसा हुआ है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, ऐसे में वह सम्मानजनक सीटों से कम पर समझौता नहीं कर सकती है. उत्तर प्रदेश की रणनीति पर राजद यहां काम कर सकती है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है. भेलारी भी मानते हैं कि रालोसपा किसी हाल में चार सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी. कांग्रेस और हम की अपनी-अपनी मांगें हैं. ऐसे में राजद के पास कांग्रेस को छोड़कर गठबंधन बनाने का अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचता.
वैसे, राजद के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, "राजद अपनी वैकल्पिक योजना पर काम कर रही है परंतु कांग्रेस के साथ बातचीत विफल नहीं हुई है. यह सही है कि कांग्रेस तीन राज्यों में विजयी हुई है परंतु बिहार में भी उसकी स्थिति में सुधार हुआ है, ऐसा नहीं है. कांग्रेस को अपनी क्षमता के अनुसार मांग करनी चाहिए."
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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. पिछले लोकसभा चुनाव में राजद ने कितनी सीटें जीती थी, उसे यह याद रखना चाहिए. यह विधानसभा चुनाव नहीं है, जहां मतदाता क्षेत्रीय दलों को मत देंगे, यह लोकसभा चुनाव है, जहां मतदाता राष्ट्रीय दलों को देखते हैं. बहरहाल, महागठबंधन में सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है. यही कारण है कि महागठबंधन के नेताओं के खरमास यानी 15 जनवरी के बाद होने वाला सीट बंटवारा अब तक नहीं हुआ है.
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