राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस का लक्ष्य मिशन 25, लेकिन राजपूत सभा के नेता के बिना संभव नहीं, जानें कौन हैं ये
लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो चुका है. अगर हम बात राजस्थान की करें तो यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता रहा है.
जयपुर:
लोकसभा चुनाव 2019 का शंखनाद हो चुका है. अगर हम बात राजस्थान की करें तो यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता रहा है. राजस्थान में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने सभी 25 सीटें जीती थीं. इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए कांटे का मुकाबला है, क्योंकि दोनों पार्टियों ने मिशन 25 का लक्ष्य रखा है. ऐसे में सभी पार्टियां चुनावी किला फतह करने के लिए तमाम समीकरण अपने पक्ष में करने की कवायद में जुटी है.
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बता दें कि राजस्थान में आज भी जाति समूह सबसे बड़े पैसा ग्रुप है. लगातार बढ़ती जाति की अहमियत के चलते जाति और समाज के प्रतिनिधि का रोल बढ़ता जा रहा है. राजस्थान में राजनीतिक तौर पर जाट राजपूत मीणा गुर्जर ब्राह्मण माली ऐसी जातियां हैं, जो प्रभावी भूमिका निभाती है. राजस्थान में राजपूत जाति का राजनीतिक वर्चस्व आज भी कायम है. राजपूत वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए दोनों ही पार्टियां जुटी हुई हैं. ऐसे में राजपूत समाज एवं तमाम समाज के नेताओं की अहमियत बढ़ जाती है, जो राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. राजपूत सभा इस मायने में अहम मानी जाती है.
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गिरिराज सिंह लोटवाड़ा राजपूत समाज के अध्यक्ष हैं. विधानसभा चुनाव में जिस तरह से गिरिराज सिंह ने अपने तमाम संगठन करणी सेना को लेकर बीजेपी के खिलाफ अपील की थी, जिसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. राजपूत समाजों को काफी हद तक प्रभावित करने का मुद्दा रखने वाले गिरिराज सिंह लोटवाड़ा लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं. राजस्थान में चाहे विधानसभा का चुनाव हो या फिर लोकसभा का नगर निकाय का चुनाव हो या पंचायत का जाति आज भी अपनी अहम भूमिका निभाती है. लोकसभा चुनाव के शंखनाद के बीच राजनीतिक पार्टियां जातियों को साधने की कवायद में जुटी हैं.
कौन हैं गिरिराज सिंह लोटवाड़ा
गिरिराज सिंह लोटवाड़ा राजपूत समाज के अध्यक्ष हैं. दौसा से आने वाले गिरिराज सिंह लोटवाड़ा 2010 में हुए राजपूत सभा के चुनाव में भारी मतों से अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे. शिक्षा जगत से आने वाले झोटवाड़ा वर्ष 2005 से वर्ष 2011 तक जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत रहें. बीए, एलएलबी डिग्री धारक लोटवाड़ा की राजपूत समाज में प्रभावशाली भूमिका है. सन् 1952 के प्रथम आम चुनाव में गिरिराज सिंह लोटवाड़ा के पिता कल्याण सिंह ने राम राज्य परिषद की ओर से चुनाव लड़ा था. परिवार के विजय सिंह नरेला 1977 में जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे.
क्या है लोटवाड़ा का दावा
राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा का दावा है कि राजपूत सभा की 13 जिलों में इकाई है. प्रदेश के हर जिले में छात्रावास है. यही नहीं क्षत्रिय युवक संघ, करणी सेना भी राजपूत सभा के साथ आवाज बुलंद करती है. इस आधार पर लोटवाड़ा 200 से करीब 100 विधानसभा सीटों पर प्रभाव का दावा करते हैं.
विधानसभा चुनाव में एक बड़ी ताकत बनकर सामने आए गिरिराज सिंह
राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराज सिंह लोटवाड़ा पिछले विधानसभा चुनावों में समाज की एक बड़ी ताकत बनकर सामने आए. आनंदपाल एनकाउंटर पद्मावती फिल्म के विरोध जैसे मुद्दों को लेकर राजपूत समाज ने सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की. इस दौरान राजपूत सभा के अध्यक्ष गिरिराज सिंह ने करणी सेना के जरिए पूरे राजस्थान में राजपूतों की ताकत का एहसास कराया. इसके साथ कई मुद्दों से नाराज चल रहे बीजेपी सरकार के खिलाफ अपील की, जिसका परिणाम राजस्थान विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक राजपूत छिटक गया. गिरिराज सिंह ने कहा सरकार की नीतियों के चलते राजपूत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था, जिससे राज्य में पार्टी सत्ता से बाहर
हो गई.
प्रदेश की जनता गिरिराज के साथ
राजपूत समाज के लोगों की बात करें या फिर प्रदेश के अन्य लोगों की. उनका यह मानना है गिरिराज सिंह की अपील का असर पड़ता है. अधिकतर लोगों ने कहा कि जिस तरह राजपूत समाज के साथ ही अन्य वर्गों में गिरिराज सिंह की जो पकड़ है उसके चलते उनकी अपील का असर पड़ता है. हम उनके साथ हैं चाहे बात चुनाव की हो चाहे बात सरकार के खिलाफ लड़ने की हो चाहे समाज के हित में अन्य मुद्दों पर उनके साथ आने की.
क्या कहते हैं नेता
जहां तक नेताओं की बात है समाज के तथाकथित प्रतिनिधियों की ताकत पहचानते हैं. राजनीतिक दलों के नेता समाज के इन प्रतिनिधियों का विरोध करने से बचते हैं. साथ ही कहते हैं कि हम सभी समाजों के नेताओं का सम्मान करते हैं. सभी समाज के लिए जो काम कर रहे हैं उनको साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं. वजह साफ है सियासी समीकरण बनाने बिगाड़ने में इनकी भूमिका को लेकर नेता भी अब इनसे सीधे टकराने से बचते नजर आते हैं. कोशिश करते हैं कि इनका साथ मिल जाए.
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