Kishore Kumar Birthday Special : जानें क्यों करियर के शीर्ष पर सिंगिग छोड़ देना चाहते थे किशोर कुमार
4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्मे अभय कुमार गांगुली ऊर्फ किशोर कुमार को अपने घर से बहुत लगाव था। यही कारण है कि अपने जीवन के आखिरी सालों में वह खंडवा मध्यप्रदेश चले जाना चाहते थे।
नई दिल्ली:
'चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिए....' गाना गाने वाले किशोर कुमार अपने करियर के शीर्ष मुकाम पर होने के बावजूद अपने घर खंडवा, मध्यप्रदेश लौट जाना चाहते थे। उनका मानना था कि कलाकार को ऐसे समय में अपना करियर छोड़ देना चाहिए जब उसे लोग पूछते हों उसे जानते हों, बजाए कि ऐसे समय में जब उसे हटा दिया जाए और उसे कोई न जानता हो।
जी हां, आपने सही पढ़ा, आपको भी अजीब लग रहा होगा कि कोई कलाकार ऐसे समय में सबकुछ कैसे छोड़ सकता है जब उसके करियर में सबकुछ ठीक चल रहा हो।
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4 अगस्त 1929 को खंडवा मध्यप्रदेश में जन्मे अभय कुमार गांगुली ऊर्फ किशोर कुमार को अपने घर से बहुत लगाव था। यही कारण है कि अपने जीवन के आखिरी सालों में वह अपने घर वापस जाना चाहते थे।
ऑलराउंडर कहे जाने वाले किशोर कुमार ने जहां अपने गानों से लोगों को रुलाया है तो हॉफ टिकट में अपनी जबरदस्त कॉमेडी से लोगों को पेट पकड़- पकड़कर हसंने पर मजबूर भी किया है।
कहा जाता है कि किशोर कुमार मीडिया से दूरियां बना कर रखते थे। बहुत कम ऐसे वाक्ये हैं जब वो मीडिया से सीधे रूबरू हुए हैं। पर एक बार वह गायिका लता मंगेशकर को इंटरव्यू देने के लिए राजी हो गए थे। इसी इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि 'आज में अपने करियर में एक ऐसे मकाम पर हूं जहां सब मुझे पूछ रहे हैं। मैं बस यहां से अब अपने घर खंडवा मध्यप्रदेश चले जाना चाहता हूं। मैंने बहुत कुछ किया है एक्टिंग, संगीत। बस अब मैं यहां से जाना चाहता हूं।'
आगे उन्होंने कहा कि एक कलाकार को करियर में ऐसे समय का इंतजार नहीं करना चाहिए जब उसे कोई पूछे न। वो अपने करियर में बिल्कुल नीचे हो और उसे कोई न जानता हो।
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पर कौन जानता था कि जिंदगी के मायूस पलों में भी मुस्कुराने वाले किशोर कुमार की आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं हो पाएगी। किशोर कुमार की 13 अक्टूबर, 1987 को मुंबई में हार्ट अटैक से मौत हो गई। जिसके बाद वो अपने फैन्स की आंखों में आंसू और कानों में कभी न मिटने वाले गूंजते तराने छोड़ गए।
उनके गाने कभी लोगों को गुदगुदाते हैं, कभी अंजाने ही जीवन की गहराईयों में ले जाते हैं। वो अपने नगमों के जरिये आज भी लोगों में जीवित हैं और हमेशा रहेंगे।
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