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लोकसभा चुनाव में छाया आर्टिकल-35A का मुद्दा, जानें क्या है पूरा मामला

लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) में आर्टिकल-35ए को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है.

Updated on: 03 Apr 2019, 12:29 PM

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) में आर्टिकल-35ए को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है. पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जम्मू-कश्मीर के आर्थिक विकास में अनुच्छेद 35 ए को सबसे बड़ा सांविधानिक बाधक बताया था. वहीं, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि अगर आर्टिकल 35A से छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की बात उठेगी. ये आर्टिकल राज्य में स्थायी नागरिकता और जमीन खरीदने संबंधी मामलों से जुड़ा है. धारा-35ए को लेकर घाटी में काफी तनाव भी रहती है. इसके साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला ने मोदी सरकार को संविधान के अनुच्छेदों 370 और 35 A को 'छूकर दिखाने' की चुनौती दी थी.

अनुच्छेद 35 ए क्या है?

  • 1954 में भारत के राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 370 के साथ अनुच्छेद 35ए को जोड़ा गया था.
  • इस धारा के अंतर्गत जम्मू और कश्मीर विधानसभा को राज्य के नागरिकों और उनके विशेषाधिकार को परिभाषित करने की शक्ति मिली थी.
  • अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता है जबकि अनुच्छेद 35ए प्रदेश सरकार को यह निर्धारित करने की शक्ति देता है कि कौन यहां का मूल या स्थायी नागरिक है और उन्हें क्या अधिकार मिले हुए हैं.
  • ये अनुच्छेद राज्य विषय सूची के उन क़ानूनों को संरक्षित करता है जो महाराजा के 1927 और 1932 में जारी शासनादेशों में पहले से ही परिभाषित किए गए थे. राज्य के विषय कानून हर कश्मीरी पर लागू होते हैं चाहे वो जहां भी रह रहे हैं. यही नहीं ये संघर्ष विराम के बाद से निर्धारित सीमा के दोनों ओर भी लागू होते हैं.
  • संविधान के इस अनुच्छेद के ज़रिए जम्मू-कश्मीर के स्थायी (मूल) निवासियों को विशेष अधिकार दिए गए हैं.
  • इस अनुच्छेद के तहत जम्मू और कश्मीर से बाहर के लोग यहां अचल संपत्ति नहीं ख़रीद सकते हैं और न ही उन्हें राज्य सरकार की योजनाओं का फ़ायदा मिल सकता है. इसके साथ ही प्रदेश में बाहरी लोगों को सरकारी नौकरी भी नहीं मिल सकती है.
  • अनुच्छेद 35A के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं. साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं.

क्यों उठ रही है हटाने की मांग?

साल 1947 में हुए भारत-पाक बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे. देश भर के जिन भी राज्यों में ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं. लेकिन जम्मू-कश्मीर में उन्हें आज भी उनके तमाम मौलिक अधिकार नहीं मिल पाए है.