ऑटो इंडस्ट्री में हाहाकार, डेढ़ साल में 286 शोरूम बंद, 2 लाख नौकरियां गईं, जानें क्या है मंदी की वजह
क्रेडिट पॉलिसी (RBI Credit Policy) में रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ग्रोथ का लक्ष्य 7 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है. RBI के अनुसार, ऑटो जैसे कुछ सेक्टरों में मंदी का असर ज्यादा बढ़ रहा है.
नई दिल्ली:
ऑटो इंडस्ट्री (Autu Industry) में अघोषित मंदी से हाहाकार मचा हुआ है. हर तरफ मंदी की बात हो रही है. हालांकि मंदी का कारण क्या है, इसकी चर्चा कम सुनाई पड़ रही है. www.newsnationtv.com अपनी इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में आपको बताएगा कि ऑटो इंडस्ट्री के हालात इतने बदतर कैसे हुए और फिलहाल सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या कुछ कदम फिलहाल उठा सकती है.
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बता दें कि हाल की अपनी क्रेडिट पॉलिसी (RBI Credit Policy) में रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ग्रोथ का लक्ष्य 7 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है. RBI के अनुसार, ऑटो जैसे कुछ सेक्टरों में मंदी का असर ज्यादा बढ़ रहा है. मांग में कमी और सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicle) को बढ़ावा देने से ऑटो सेक्टर में मंदी छा गई है. यही वजह है कि ज्यादातर ऑटो कंपनियों को उत्पादन घटाना पड़ रहा है. इसके अलावा कर्मचारियों की छंटनी भी हो रही है.
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ऑटो सेक्टर में 10 लाख नौकरियां जाने का खतरा
सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स (Society of Indian Automobile Manufacturers-SIAM) के मुताबिक, ऑटो सेक्टर में 10 लाख नौकरियां जाने का खतरा बढ़ गया है. सियाम (SIAM) का कहना है कि स्थिति नहीं सुधरने पर और भी नौकरियां जा सकती हैं. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) का दावा है कि तीन महीने (मई से जुलाई) में खुदरा विक्रेताओं ने करीब 2 लाख कर्मचारियों की छंटनी की है. FADA का मानना है कि निकट भविष्य में स्थिति में सुधार की संभावना नहीं है. भविष्य में छंटनी के साथ ही और भी शोरूम बंद हो सकते हैं. FADA के मुताबिक 18 महीने देश में 271 शहरों में 286 शोरूम बंद हो चुके हैं. इसकी वजह से 32 हजार लोगों की नौकरी चली गई थी. 2 लाख नौकरियों की छंटनी इसके अतिरिक्त है.
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घरेलू कारों की बिक्री 19 साल में सबसे कम
सियाम (SIAM) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में यात्री वाहनों की घरेलू बिक्री में करीब 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. यात्री वाहनों की बिक्री लगातार नौवें महीने गिरी है. जुलाई में यात्री वाहनों की बिक्री 30.98 फीसदी घटकर 2,00,790 वाहन रही है, जो जुलाई 2018 में 2,90,931 वाहन थी. इससे पहले दिसंबर 2000 में यात्री वाहनों की बिक्री में 35.22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. बता दें कि मारूति सुजुकी इंडिया की बिक्री जुलाई में 36.71 फ़ीसदी घटी थी, जबकि हुंडई की बिक्री 10.28 फीसदी और दोपहिया वाहनों की सबसे बड़ी कंपनी हीरो मोटो कॉर्प की बिक्री भी जुलाई में 22.9 फीसदी घटी थी.
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गौरतलब है कि इस साल अप्रैल महीने में खबर आई थी कि 13 सालों में पहली बार स्कूटर्स की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई थी. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ट्रैक्टर की बिक्री में भी 10 से 12 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है.
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जीएसटी 18 फीसदी करने की मांग
ऑटो कंपोनेंट मैन्यूफेक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Automotive Component Manufacturers Association of India-ACMA) ने मोदी सरकार से ऑटो इंडस्ट्री पर GST को घटाकर 18 फीसदी करने की मांग की है. बता दें कि मौजूदा समय में 70 फीसदी से ज्यादा पार्ट्स पर 18 फीसदी GST है, जबकि 30 फीसदी पार्ट्स पर 28 फीसदी GST है. इसके अलावा 1 से लेकर 15 फीसदी सेस भी लगाया जाता है.
ऑटो इंडस्ट्री (Auto Industry) में मंदी की क्या है प्रमुख वजह
बेरोजगारी, नोटबंदी, GST के बाद बिगड़े आर्थिक हालात की वजह से विपक्ष की आलोचना झेल चुकी मोदी सरकार एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर आ सकती है. ऑटो इंडस्ट्री में मंदी के हालात को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चौतरफा हमले का सामना करना पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर कई तरह की समस्याओं का सामना कर रही ऑटो इंडस्ट्री राहत की उम्मीद लगाए बैठी है. ऑटो इंडस्ट्री अपने सबसे खराब दौर में किस वजह से पहुंची. आइये उन तथ्यों की जांच परख करने की कोशिश करते हैं.
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GST ज्यादा होने से बिक्री में गिरावट
केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए उन पर लगने वाली GST को तो घटा दिया है लेकिन अन्य गाड़ियों पर अभी अधिक GST है. अन्य गाड़ियों और उनके पार्ट्स पर 28 फीसदी जीएसटी लगने से गाड़ियों की लागत में बढ़ोतरी हो गई है. यही वजह है कि 6 माह से देश में वाहनों की बिक्री में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देशभर में कई कंपनियों ने गाड़ियों का उत्पादन बंद कर दिया है.
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कर्ज देने वाली कंपनियां संकट में
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, खुदरा बाजार में मारूति की जितनी गाड़ियों की बिक्री होती है, उसमें से करीब एक तिहाई कारों के लिए कर्ज नॉन बैंकिंग फाइनैंशल कंपनी (NBFC) मुहैया कराते हैं. बता दें कि छोटे शहरों में NBFC के जरिए गाड़ियों की खरीद के लिए कर्ज दिए जाते हैं. NBFC छोटे शहरों में कर्ज प्रदाता के तौर पर एक प्रमुख साधन माना जाता है. चूंकि मौजूदा समय में ज्यादातर NBFCs के वित्तीय संकट में फंसी हुई है और वे कर्ज की वसूली भी नहीं कर पा रही हैं. यही वजह है कि NBFC की लोन देने की क्षमता कम हो गई है. इसीलिए उन्होंने फिलहाल गाड़ियों आदि के लिए कर्ज देना कम कर दिया है.
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लोगों को नए इंजन का इंतजार
कंपनियों को 1 अप्रैल 2020 तक वाहनों में BS-6 इंजन लगाना अनिवार्य होगा. फिलहाल कंपनियां BS-4 इंजन लगा रही हैं. बता दें कि BS-6 से डीजल वाहनों से 68 फीसदी और पेट्रोल वाहनों से 25 फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा. यही वजह है कि लोग BS-6 वाली गाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं, जिसकी वजह से भी मांग में कमी देखने को मिल रही है.
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फसलों की बुआई में कमी भी एक वजह
फसलों की बुआई का भी ऑटो सेक्टर से सीधा नाता है. दरअसल, बीते रबी फसल की पैदावार में कमी और मौजूदा खरीफ फसल की बुआई में कमी की वजह से ग्रामीणों की आय में कमी आशंका है. इसके अलावा ट्रक में लोड को लेकर मोदी सरकार द्वारा बनाए गए सख्त नियमों की वजह से भी मांग कम होने की आशंका है.
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नरेंद्र मोदी सरकार का ये हो सकता है प्लान
पिछले कुछ समय में नरेंद्र मोदी सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों पर ज्यादा जोर दे रही है. उसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही विदेशों से इंपोर्ट होने वाले ऑयल पर भी हमारी निर्भरता कम होगी. बता दें कि सरकार ऑयल इंपोर्ट को कम करके चालू खाता घाटा (CAD) को कम करना चाहती है. जानकारों की मानें तो लॉन्ग टर्म में मोदी सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से देश को काफी फायदा होने जा रहा है. हालांकि ऑटो सेक्टर की मौजूदा मंदी को देखते हुए केंद्र सरकार फिलहाल चौतरफा घिरी हुई है. ऐसे में आने वाले समय में यह देखना होगा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ऑटो सेक्टर को इस दुष्चक्र से निकालने के लिए क्या कदम उठाती है, जिससे इंडस्ट्री के साथ-साथ दांव पर लगी लाखों लोगों की नौकरियां जाने से बच जाए.
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