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यूक्रेन नहीं बल्कि नाइजर के खजाने की वजह से छिड़ सकता है विश्व युद्ध

नाइजर को लेकर दुनिया की बड़ी शक्तियोंं की दिलचस्पी के पीछे की असली वजह है यूरोनियम का खजाना है

Updated on: 07 Aug 2023, 07:32 PM

highlights

  • अमेरिका और और रूस को आमने-सामने ला दिया है
  • मोहम्मद बजौम को फ्रांस का समर्थक माना जाता है
  • नाइजर की 20% जनता बेहद गरीबी में जीवन-यापन कर रही

नई दिल्ली:

रूस और यूक्रेन के बीच पिछले डेढ़ साल से भी ज्यादा वक्त से जंग जारी है. लेकिन इसी बीच अब यूरोप से कहीं दूर अफ्रीकी महाद्वीप में जंग का नया अखाड़ा तैयार हो गया है. पश्चिमी अफ्रीका के देश नाइजर में बीते माह हुए तख्तापलट ने इतना ज्यादा तनाव पैदा कर दिया है कि एक छोटी सी चिनगारी विश्वयुद्ध को जन्म दे सकती है.अब आप सोच रहे होंगे कि अफ्रीकी देशों में अक्सर तख्तापलट होते रहे हैं तो फिर नाइजर में ऐसा क्या है जिसमें हुए सत्ता परिवर्तन ने अमेरिका और और रूस को आमने-सामने ला दिया है.

दरअसल नाइजर को लेकर दुनिया की बड़ी शक्तियोंं की दिलचस्पी के पीछे की असली वजह है यूरोनियम का वो खजाना है,  जिसके अब अमेरिका या फ्रांस जैसे देशों के हाथ से निकल कर रूस के हाथ पहुंचने की संभावना जताई जा रही है. लेकिन सबसे पहले आपको नाइजर के ताजा हालात से रूबरू कराते हैं. दरअसल नाइजर में बीती 26 जुलाई को फौज ने डेमोक्रेटिक तरीके से चुने गए प्रेजीडेंट मोहम्मद बजौम को गिरफ्तार करके सत्ता पर कब्जा कर लिया था.  मोहम्मद बजौम को फ्रांस का समर्थक माना जाता है. नाइजर में हुए इस तख्ता पलट के बाद अफ्रीका के 15 देशों के ग्रुप इकोवास ने मोहम्मद बजौम को सत्ता वापस सौंपने के लिए अल्टीमेटम दिया था, जिसकी मियाद रविवार को पूरी हो गई. इकोवास को फ्रांस-अमेरिका का समर्थक ग्रुप माना जाता है.

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नाइजर के एयर स्पेस को बंद कर दिया
 
ECOWAS ग्रुप में बेनिन, बुर्किना फासो, काबो वर्डे, कोटे डी आइवर, गाम्बिया, घाना, गिनी, गिनी बिसाऊ, लाइबेरिया, माली, नाइजर, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, सेनेगल और टोगो जैसे देश शामिल हैं. इकोवास की अध्यक्षता नाइजीरिया के पास है. इकोवास की दी हुई डेडलाइन पूरी होने के बाद नाइजर में सत्ता संभाल रही मिलिट्री जुंटा ने अपने मुल्क पर हमले की आशंका के मद्देनजर नाइजर के एयर स्पेस को बंद कर दिया है. वहीं दूसरी ओर मिलिट्री जुंटा ने हालात से निपटने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की प्राइवेट आर्मी वैगनर ग्रिप से मदद मांगी है.

कई देशों में अच्छी खासी मौजूदगी

याद कीजिए ये वही वैगनर ग्रुप है जिसने कुछ सप्ताह पहले यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर रूस में बगावत का झंडा उठा लिया था और पुतिन के दोस्त और बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको की मध्यस्थता में बीच का रास्ता निकालकर इस बगावत को शांत कराया गया था. अब आप सोच रहे होंगे कि पश्चिमी अफ्रीका में बन रहे जंग जैसे हालात में वैगनर ग्रुप क्या भूमिका निभा सकता है. दरअसल वैगनर ग्रुप के लड़ाकों की कई अफ्रीकी के कई देशों में अच्छी खासी मौजूदगी है. अफ्रीका के माली , मोजाम्बीक, सूडान, सेंट्रल अफ्रीका रिपब्लिक और लीबिया में वैगनर ग्रुप के लड़ाके मौजूद है और वहां तानाशाही शासन की मदद कर रहे हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक नाइजर में सत्ता पर कब्जा करने वाली मिलिट्री जुंटा के लीडर सलीफो मोडी ने माली का यात्रा करके वहीं मौजूद वैगनर ग्रुप की लीडरशिप से मदद की गुहार लगाई थी.वहीं नाइजर में फ्रांस के मिलिट्री बेस पर उसके और अमेरिका के एक-एक हजार से ज्यादा सैनिक मौजूद है. यहां तक की बात से आपकी समझ में आ गया होगा कि कि नाइजर अब रूस और अमेरिका के बीच की जंग का अखाड़ा कैसे बनता जा रहा है.अब हम आपको बताते हैं कि नाइजर में ऐसी क्या खास बात है जिसके लिए इतने सारे देश जंग करने को आमादा हैं.

80 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर

नाइजर दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है. इसकी 80 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. करीब 2.5 करोड़ की आबादी वाले नाइजर की 20 फीसदी जनता बेहद गरीबी में जीवन-यापन कर रही है. लेकिन नाइजर की धरती काई सारे प्राकृितक संसाधनों से भरपूर है और खास तौर से नाइजर में यूरेनियम का बड़ा भंडार मौजूद है. क्लीन एनर्जी के लिए यूूरेनियम फ्रांस समेत पूरे यूरोप की बड़ी जरूरत है. 

नाइजर दुनिया में यूरेनियम का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है. 2019 में इसने ढाई हजार टन के करीब यूरेनियम का निर्यात किया था. यूरोपीय यूनियन ने साल 2022 में अपनी जरूरत का 25 फीसदी यूरोनियम नाइजर से ही खरीदा था.   इसके अलावा नाइजर में सोना, चांदी, कोयला, चूना पत्थर, नमक, टिन सीमेंट और जिप्सम के बड़े भंडार मौजूद हैें.

पश्चिमी देश संसाधनों का दोहन कर रहे

नाइजर के पास इतने बड़े खनिज भंडार को मौजूद है लेकिन उन पर मालिकाना हक फ्रांस या उसके सहयोगी देशों की कंपनियों का ही है. और यही बात नाइजर के लोगों के मन में घर कर गई है कि पश्चिमी देश उनके संसाधनों का दोहन कर रहे हैं. दरअसल नाइजर बाकी कई अफ्रीकी देशों की तरह फ्रांस का उपनिवेश रहा था. साल 1960 में नाइजर को फ्रांस से आजादी तो मिल गई लेकिन फ्रांस का असर उस पर बना रहा और फ्रांस ने वहां अपना फौजी अड्डा बरकरार रखा.

पिछले महीने ने हुए तख्ता पलट के बाद नाइजर ने फ्रांस के साथ अपने सारे ताल्लुकात तोड़ दिए और फ्रांस को वहीं से अपने नागरिकों को बाहर निकालना पड़ा. इसी दौरान नाइजर के शहरों में हुए प्रदर्शनों में फ्रांस के खिलाफ नारे लगे और रूस के झंडे लहराए गए. दरअसल रूस ही वो देश है जो अपने प्राइवेट आर्मी यानी वैगनर ग्रुप के जरिए फ्रांस को अफ्रीका से बाहर कर रहा है. बुर्किना फासो और माली जैसे देशों में वैगनर ग्रुप का एंट्री ने फ्रांस को आउट कर दिया. और इसी तर्ज पर नाइजर में मिलिट्री जुंटा वैगनर आर्मी की मदद मांग रही है. 

(रिपोर्ट-Sumit Kumar Dubey)