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यूरोपीय संघ का अमेरिका को जवाब, ईरान परमाणु समझौते का कोई विकल्प नहीं है

यूरोपीय संघ (ईयू) के विदेश नीति के प्रमुख ने सोमवार को चेतावनी देते हुए कहा कि ईरान परमाणु समझौते का कोई विकल्प नहीं है।

Updated on: 22 May 2018, 12:51 PM

ब्रुसेल्स:

यूरोपीय संघ (ईयू) के विदेश नीति के प्रमुख ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि ईरान परमाणु समझौते का कोई विकल्प नहीं है।

ईयू ने वाशिंगटन के इस समझौते से अलग होने के बाद तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो के बयानों पर यह जवाब दिया है।

यूरोपीय संघ की विदेश नीति की प्रमुख फेडेरिका मोगरिनी ने कहा, 'अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो के भाषण से नहीं लगता कि कैसे जेसीपीओए (परमाणु समझौते) से अलग होने से मध्यपूर्व क्षेत्र परमाणु प्रसार से किस तरह सुरक्षित रहेगा।'

मोगरिनी ने कहा कि यदि ईरान अपने वादों से जुड़ा रहता है तो ईयू भी इस समझौते से पीछे नहीं हटेगा।

माइक पोंपियो ईरान परमाणु समझौता 2015 के घोर विरोधी हैं और उन्होंने ईरान पर कड़े प्रतिबंध की बात कह चुके हैं।

एक बयान में उन्होंने कहा कि संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ईरान परमाणु समझौते को अधिकारिक तौर पर जेएसपीओए से जाना जाता है।

इससे पहले शनिवार को ईरान के एटमी ऊर्जा संगठन (एईओआई) के प्रमुख ने यूरोपीय देशों से 2015 परमाणु ऊर्जा समझौते से जुड़े अपने वादों के प्रति प्रतिबद्ध रहने का आग्रह किया था।

सलेही ने कहा था कि परमाणु समझौते को बचाने के ईयू के प्रयास दर्शाते हैं कि यह समझौता इस क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी महीने ईरान परमाणु समझौते से अलग होने की घोषणा की थी। ट्रंप ने साथ ही कहा कि अमेरिका ईरान के साथ व्यापारिक संबंध रखने वाले देशों के खिलाफ भी कड़े प्रतिबंध लगाएगा।

ट्रंप ने समझौते से अलग होते हुए कहा था, 'ईरान के विरुद्ध परमाणु से संबंधित प्रतिबंधों में छूट देने के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, बल्कि समझौते के अंतर्गत तेहरान और उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर दोबारा प्रतिबंध लगाएंगे।'

ट्रंप के इस फैसले पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सहित कई यूरोपीय देशों ने संयुक्त बयान से निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि हमारी साझा सुरक्षा के लिए विशेष महत्व है।

ईरान और छह अन्य वैश्विक देशों अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस, फ्रांस और जर्मनी के बीच जुलाई 2015 में शक्तियों के बीच हुए परमाणु समझौते के तहत ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने को राजी हुआ था और बदले में ईरान पर लंबे समय से लगे आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी गई थी।

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