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2024 लोकसभा में उसका करेंगे समर्थन जो GJM की मांगों मानेगा: GJM Chief

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के संस्थापक अध्यक्ष बिमल गुरुंग ने शुक्रवार रात कहा कि उनके द्वारा बनाया गया राजनीतिक संगठन उस पार्टी का समर्थन करेगा, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग में परमानेंट पॉलिटिकल सेटलमेंट (पीपीए) के लिए जीजेएम के आह्वान को प्राथमिकता देगी. गुरुंग ने कहा, गोरखालैंड मुद्दे पर एक बैठक दिसंबर में नई दिल्ली में होने वाली है. हमारा रुख स्पष्ट है. हम 2024 के लोकसभा चुनाव में उस राजनीतिक दल का समर्थन करेंगे, जो पहाड़ों में राजनीतिक समाधान की हमारी मांग का समर्थन करेगा.

Updated on: 05 Nov 2022, 05:45 PM

कोलकाता:

गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के संस्थापक अध्यक्ष बिमल गुरुंग ने शुक्रवार रात कहा कि उनके द्वारा बनाया गया राजनीतिक संगठन उस पार्टी का समर्थन करेगा, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में दार्जिलिंग में परमानेंट पॉलिटिकल सेटलमेंट (पीपीए) के लिए जीजेएम के आह्वान को प्राथमिकता देगी. गुरुंग ने कहा, गोरखालैंड मुद्दे पर एक बैठक दिसंबर में नई दिल्ली में होने वाली है. हमारा रुख स्पष्ट है. हम 2024 के लोकसभा चुनाव में उस राजनीतिक दल का समर्थन करेंगे, जो पहाड़ों में राजनीतिक समाधान की हमारी मांग का समर्थन करेगा.

हालांकि, उन्होंने इस सवाल पर चुप्पी साधी कि क्या राजनीतिक समाधान में जीजेएम की अलग गोरखालैंड राज्य की पुरानी मांग शामिल होगी. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि क्या वह भाजपा के साथ, तृणमूल कांग्रेस के साथ अपने संबंधों को तोड़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

अलग गोरखालैंड राज्य को लेकर 2017 में बड़े आंदोलन शुरू होने के बाद से गुरुंग गायब थे. अंत में, अक्टूबर 2020 में, वह फिर से सामने आए, जब कोलकाता के एक होटल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, उन्होंने जीजेएम द्वारा भाजपा से समर्थन वापस लेने की घोषणा की, जिसे पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में भी समर्थन दिया था. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुरुंग ने तृणमूल कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर की थी.

हालांकि आधिकारिक तौर पर जीजेएम ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया. इस साल गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) के चुनावों से पहले, गुरुंग ने पहाड़ियों में एक स्थायी राजनीतिक समाधान हासिल नहीं होने तक जीटीए चुनावों के बहिष्कार की मांग करते हुए आंदोलन शुरू किया. हालांकि, उस आंदोलन का ज्यादा असर नहीं हुआ.

अब पहाड़ियों में राजनीतिक समाधान को लेकर अपने ताजा बयान से उन्होंने अपने अगले कदम के संकेत दिए हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि उन्होंने अपने इस कदम के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया हो, लेकिन स्थायी राजनीतिक समाधान पर उनका बयान तृणमूल कांग्रेस के साथ संबंधों को खत्म करने का एक गुप्त संकेत है.

पर्यवेक्षकों को लगता है कि जीजेएम के लिए स्थायी राजनीतिक समाधान की अवधारणा अलग गोरखालैंड राज्य के बिना अधूरी है, जो तृणमूल कांग्रेस को कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकती.