2021 महाकुंभ से पहले हरिद्वार में बिजली के तार कर दिए जाएंगे भूमिगत
वर्ष 2021 में महाकुंभ के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को हरिद्वार में बिजली के तारों के मकड़ जाल से मुक्त एक साफ—सुथरा शहर मिलेगा.
देहरादून:
वर्ष 2021 में महाकुंभ के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को हरिद्वार में बिजली के तारों के मकड़ जाल से मुक्त एक साफ—सुथरा शहर मिलेगा. एक बड़ी पहल करते हुए उत्तराखंड की एकमात्र सरकारी बिजली वितरण कंपनी उत्तराखंड पावर निगम लिमिटेड (यूपीसीएल) ने हरिद्वार की बिजली तारों को भूमिगत करने का फैसला लिया है. हरिद्वार के बाद राजधानी देहरादून में भी यह काम किया जायेगा. यूपीसीएल ने हरिद्वार में बिजली के तारों को भूमिगत करने के लिये पहले चरण में, 388 करोड़ रुपये का ठेका एमपी बिड़ला समूह की कंपनी विंध्या टेलीलिंक्स लिमिटेड को दिया.
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विंध्या ने हरिद्वार में काम शुरू किया और अब तक 20—30 फीसदी काम हो चुका है. इसी के साथ, हरिद्वार उत्तराखंड का पहला शहर बन जायेगा जहां वर्ष 2021 तक बिजली के तार भूमिगत हो जायेंगे. यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा ने कहा, ‘‘हरिद्वार में बिजली के केबल भूमिगत करने का ठेका हमने विंध्या टेलीलिंक्स को दिया गया. अब तक 20—30 प्रतिशत काम हो चुका है.’’ मिश्रा ने बताया कि इस परियोजना पर कार्य केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (आइपीडीएस) के तहत किया जा रहा है.
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उन्होंने उम्मीद जतायी कि यह कार्य वर्ष 2021 में होने वाले महाकुंभ मेला से पहले संपन्न हो जायेगा. हरिद्वार में 26 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले पूरे कुंभ क्षेत्र के केबलों को पहले भूमिगत किया जायेगा. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 388 करोड़ रुपये की लागत की इस परियोजना का शिलान्यास इस वर्ष सात मार्च को किया था. उत्तर प्रदेश में काशी के बाद हरिद्वार ऐसा दूसरा शहर है जहां भूमिगत केबल परियोजना लागू की जा रही है.
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रावत ने कहा था कि काशी के बाद हरिद्वार भारत का ऐसा दूसरा शहर बन गया है जहां बिजली के तार भूमिगत हो जायेंगे. हरिद्वार के बाद, यूपीसीएल जल्द ही राजधानी देहरादून में भी बिजली के तारों को भूमिगत करने की प्रक्रिया शुरू करेगा. उन्होंने बताया कि इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) केंद्र सरकार को मंजूरी के लिये भेजी जा चुकी है.
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बिजली के तारों को भूमिगत किये जाने की परियोजना का मकसद ट्रांसमिशन और वितरण के दौरान बिजली के नुकसान यानी ‘लाइन लॉस’ को कम करना भी है. वर्ष 2017—18 में यूपीसीएल का लाइन लॉस 16 फीसदी था. इस बारे में मिश्रा ने कहा, ‘‘इन दोनों परियोजनाओं के जरिए हम लाइन लॉस को और कम करने में सफल होंगे.’’
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