आगर: बंदरों के आतंक से शहरवासी परेशान, जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया
पर्यटन नगरी आगरा में बंदरों की समस्या से शहरवासी परेशान हैं. बंदर पर्यटकों के साथ ही लोगों को भी हमले करके चोटें पहुंचा रहे हैं.
आगरा:
पर्यटन नगरी आगरा में बंदरों की समस्या से शहरवासी परेशान हैं. बंदर पर्यटकों के साथ ही लोगों को भी हमले करके चोटें पहुंचा रहे हैं. आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, नगर निगम आगरा सहित नौ विपक्षियों को नोटिस जारी करके 17 अगस्त तक जवाब-तलब किया है. वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने अपनी याचिका में यह उल्लेख किया कि आगरा शहर में 30 हजार से अधिक बंदर हैं, जिनकी संख्या बीते दशक में काफी तेजी से बढ़ी है और बंदर अब बड़े-बड़े झुंड बनाकर घूमते हैं.
बंदरों के आक्रमण व उनके काटने से हजारों लोग घायल हो चुके हैं. देखा जाए तो बंदरों के खतरे ने आगरा शहर को त्रस्त कर दिया है, जहां पर्यटकों और स्थानीय लोगों को बंदर समान रूप से परेशान करते पाए जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप निवासियों को गंभीर चोटें और कीमती सामान का नुकसान हो रहा है. कभी-कभी बंदरों के हमले के कारण युवा और वृद्धों की मौत हुई हैं. यही नहीं ताजमहल में भी पर्यटकों को बंदर शिकार बना रहे हैं. एसएन मेडिकल कॉलेज व जिला अस्पताल में मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं. यहां भी बंदरों का आतंक देखा जा सकता है. चाहे शहर हो या देहात हर जगह बंदरों का आतंक फैला है.
यह हुईं घटनाएं
- नवंबर 2018 में ग्राम रुनकता में बंदर मां की गोद से बच्चे को छीनकर ले गया था, जिससे अबोध बच्चे की मृत्यु हो गई.
- जुलाई 2019 में माईथान के हरीशंकर गोयल की मृत्यु बंदरों के हमले में हो गई.
- मार्च 2020 में उस्मान की बंदरों के कारण अपनी छत से गिरकर मौत हो गई.
- अक्टूबर 2020 में भी दो व्यक्तियों की मौत हो चुकी है.
गौरतलब है कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के परिशिष्ट-2 की प्रविष्टि 17 ए के अनुसार बंदर वन्य जीव है और संरक्षित हैं. अत: वन विभाग एवं नगर निगम इस समस्या का समाधान खोजने के लिए जिम्मेदार हैं.
मंकी रेस्क्यू सेंटर की हो स्थापना
- बंदरों के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की अनुमति लेते हुए वन क्षेत्र में मंकी रेस्क्यू सेंटर की स्थापना की जाए.
- जहां पर बंदरों के पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो व गूलर, पाकड़, पीपल, बरगद व दतरंगा आदि फलदार वृक्ष हों.
-बंदरों को सुरक्षित व वैज्ञानिक ढंग से समयबद्ध रूप में इन रेस्क्यू सेंटर में ले जाया जाए. इसके लिए राज्य सरकार व नगर निगम को जिम्मेदारी दी जाए.
नोटिस के बाद सरकारी विभागों के अपने अपने दावे हैं. कोई कहता है कि उनके विभाग द्वारा पहले से ही बंदरो के खिलाप अभियान चल रहा है. कोई कहता है कि अब हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए उचित कदम उठाए जाएंगे. आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय के हस्तक्षेप से बंदरों की समस्या को दूर करना चाहते हैं, क्योंकि अधिकारी इस समस्या के समाधान में विफल रहे हैं.
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