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क्या है पत्थलगड़ी हिंसा के पीछे का सच? जिसकी आंच में सुलग रहा पूरा झारखंड

पत्थलगड़ी आंदोलन जमीन और जंगल बचाने को लेकर शुरू हुआ था, लेकिन अब यह शांतिप्रिय इलाके में हिंसा की राह पकड़ चुका है.

Updated on: 26 Jan 2020, 12:32 PM

रांची:

पत्थलगड़ी आंदोलन जमीन और जंगल बचाने को लेकर शुरू हुआ था, लेकिन अब यह शांतिप्रिय इलाके में हिंसा की राह पकड़ चुका है. पत्थलगड़ी आंदोलन का मकसद आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं को सर्वशक्तिमान बनाना है. आदिवासियों की मांग है कि खनन एवं अन्य विकास कार्य के लिए ग्रामसभा की अनुमति अनिवार्य किया जाए.

आंदोलन का विरोध करने पर 7 लोगों की हत्या के बाद यह हिंसा और इलाकों में भड़कने की आशंका है. इसी आंदोलन के चलते झारखंड में कई लोगों पर मुकदमे दर्ज थे, जिसे हेमंत सोरेन सरकार ने वापस ले लिया. इससे भी विभिन्न वर्गो में आक्रोश है. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड के बुरूगुलिकेला गांव में कथित तौर पर पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा सात पत्थलगड़ी विरोधियों की सामूहिक हत्या की घटना के बाद पत्थलगड़ी एकबार फिर चर्चा में है. आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि आज भी पत्थलगड़ी को लेकर भ्रम की स्थिति है.

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जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर बुरूगुलिकेला गांव में कथित तौर पर सात ग्रामीणों की हत्या के मामले में अभी पुलिस जांच कर रही है, लेकिन पुलिस अब तक की जांच के बाद इसे आपसी रंजिश का परिणाम बताती है. सूत्रों का कहना है कि इस रंजिश के पीछे पत्थलगड़ी कारण हो सकता है. उच्चपदस्थ सूत्रों का कहना है कि गांव में कुछ लोग पत्थलगड़ी के समर्थक हैं, जबकि एक गुट सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यो पर विश्वास करता है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि गांव मेंएक तबका पूरी तरह अपनी ग्रामसभा पर विश्वास करती है.

आदिवासियों के हित के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के केंद्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा कि चाईबासा घटना की जांच चल रही है, इस कारण इसे अभी पत्थलगड़ी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी को लेकर आज भ्रम की स्थिति है. उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी काफी पुरानी परंपरा है. मुंडा समाज गांव के बाहर बड़ा पत्थर लगाकर अपने नियम का उल्लेख करता है, जिसे पत्थलगड़ी कहा जाता है, जबकि उरांव समाज पत्थरों का ढेर जमा करता है, जिसे 'कुंजी पत्थर' कहा जाता है. उन्होंने कहा कि यह पत्थर गांवों की सीमा को दर्शाता है.

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कुजूर ने कहा कि आदिवासियों का इतिहास बताता है कि सिंहभूम और खूंटी इलाके में मुंडा आदिवासी ब्रिटिश शासन के वक्त से अपने स्वशासन वाली व्यवस्था के पक्ष में संघर्षरत रहे हैं. पत्थलगड़ी आंदोलन भी उसी कड़ी में था. वे कहते हैं कि आदिवासी अपनी ग्रामसभा के अधिकार की आवाज बुलंद कर रहे थे. उल्लेखनीय है कि पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत खूंटी क्षेत्र से हुई थी. लोगों का कहना है कि सरकार को संवेदनशीलता को समझते हुए उचित कदम उठाना होगा, नहीं तो अशांत और हिंसक रास्ते पर यह परंपरा भटक सकता है.

झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता और झारखंड नरेगा वॉच के संयोजक जेम्स हेरेंज ने आईएएनएस से कहा, "सरकार ने ना तब संवेदनशीलता को समझा था और ना ही अब संवेदनशीलता को समझ रही है. शांतिप्रिय आदिवासी बहुल यह इलाका एक बार फिर से अशांत है. सरकार को पक्ष और विपक्ष को समझाने की जरूरत है." उन्होंने कहा कि पत्थलगड़ी कोई नई प्रथा नहीं है. पत्थलगड़ी उन पत्थरों के स्मारकों को कहा जाता है, जिसकी शुरुआत काफी प्राचीन है. आज भी यह आदिवासी समाज में प्रचलित है.

हेरेंज ने कहा, "आदिवासी समाज में सरकार को लेकर डर और गुस्सा था. उनके बीच यह चर्चा थी कि सरकार पूंजीपतियों के हाथों जंगल और जमीन का अधिकार सौंपने जा रही है. पिछली सरकार ने कई नीतियां बनाईं, जिससे आदिवासियों में यह डर पनपा कि खनन और औद्योगिकीकरण के नाम पर उन्हें उजाड़ा जाएगा." इधर, चाईबासा की घटना के खूंटी समेत रांची जिले के बुंडु और तमाड़ में दहशत और तनाव का माहौल है. इन इलाकों में खूनी संघर्ष की आशंका बढ़ी हुई है.

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पश्चिम सिंहभूम के जिलाधिकारी अरवा राजकमल कहते हैं कि बुरूगुलिकेला गांव में हुई घटना को लेकर अभी जांच जारी है. उन्होंने कहा कि गांव में कई सरकारी कार्य हुए हैं. बहरहाल, चाईबासा के बुरूगुलिकेला गांव की घटना से इतना स्प्ष्ट है कि वहां आदिवासियों की दो गुटों में रंजिश के बीच पत्थलगड़ी मुद्दा बना और घटना को अंजाम दिया गया. उल्लेखनीय है कि पत्थलगड़ी आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए. इस आंदोलन ने तब जोर पकड़ा, जब रघुवर सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में विकास के लिए छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट में संशोधन के लिए विधेयक विधानसभा में पेश किया. इसके बाद से ही आदिवासियों को अपनी जमीन छिनने का डर सता रहा है.

इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया. यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ. यह आंदोलन अब भले ही शांत पड़ गया है, लेकिन ग्रामीण उस समय के पुलिसिया अत्याचार को नहीं भूले हैं. खूंटी पुलिस ने तब पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया. अब हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद पत्थलगड़ी से जुड़े सारे मामलों को वापस लिए जाने का निर्णय लिया गया है. इसको लेकर कई नेताओं ने सवाल खड़े किए कि हेमंत सोरेन ने जल्दबाजी में आरोप वापस ले लिए.