कपकपाती ठंड में भी झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर आदिवासी परिवार, सरकार योजनाओं से वंचित
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद को आदिवासी हितैषी बताते हैं और सरकार की हर योजनाओं से आदिवासियों को लाभान्वित करने का दावा भी करते हैं.
highlights
- मूलभूत सुविधाओं से वंचित आदिवासी परिवार
- परिवार को नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ
- झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर है परिवार
Latehar:
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद को आदिवासी हितैषी बताते हैं और सरकार की हर योजनाओं से आदिवासियों को लाभान्वित करने का दावा भी करते हैं. ऐसे तमाम दावों का धरातल पर कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहे हैं. दरअसल, लातेहार जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत बेंदी पंचायत के लेदपा गांव में एक आदिवासी परिवार को सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. अगर मैं कहूं कि 21वीं सदी में भी कोई झोपड़पट्टी मकान में रहने को मजबूर है, तो शायद आपको विश्वास नहीं होगा. दरअसल, लातेहार सदर प्रखंड के बेंदी पंचायत अंतर्गत लेदपा गांव निवासी आदिवासी समुदाय के रंजय उरांव और उसकी पत्नी सकुन्ती देवी इस कपकपाती ठंड में भी झोपड़पट्टी में छोटे-छोटे बच्चों के साथ जीवन यापन करने को विवश हैं.
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मूलभूत सुविधाओं से परिवार वंचित
इस परिवार को सरकार से मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है. प्रधानमंत्री आवास, राशन, शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा से भी यह परिवार महरूम है. बातचीत में घर के मुखिया रंजय उरांव ने बताया कि आवास के लिए वह पंचायत सचिवालय, मुखिया और ब्लॉक में आवेदन देकर थक चुके हैं, लेकिन अबतक उन्हें आवास मुहैय्या नहीं हो पाया है. लिहाजा वह ठंडा, गर्मी, बरसात सभी मौसम में इसी झोपड़ी में रहने को विवश हैं. सरकारी अधिकारियों से गुहार लगाकर थक चुका परिवार अब ठंड से बचाव को लेकर झोपड़ी के बगल में ही मिट्टी का खपटैल घर बना रहा है. वह बताते हैं कि उन्हें राशन भी नहीं मिलता है.
रंजय उरांव की पत्नी शकुन्ती देवी है, वह घर के आस-पास से मिट्टी जमा कर मिट्टी का खपटैल मकान तैयार कर रही हैं. ऐसा नहीं है कि इन्हें प्रधानमंत्री आवास की जरूरत नहीं है, लेकिन आवास की मांग से संबंधित आवेदन देकर थक चुका यह परिवार सरकारी लाभ की उम्मीद छोड़ चुका है. वह खुद ही मट्टी का मकान बना रहे हैं. चूंकि सिस्टम की बेरुखी ने इस परिवार को इसके लिए मजबूर कर दिया है. शकुन्ती देवी बताती है कि कई बार आवास के लिए संबंधित अधिकारियों को आवेदन दे चुके हैं, लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी उन्हें आवास मुहैय्या नहीं हो पाया है.
इस परिवार की परेशानी यही खत्म नहीं होती है. दरअसल, इन्हें शुद्ध पेयजल और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर के भी लाभ से वंचित रखा गया है. लिहाज़ा शकुन्ती देवी परिवार के भरण-पोषण के लिए जंगल से लकड़ियों का प्रबंध करती है, तब जाकर कही घर का चूल्हा जलता है और पेट की भूख मिट पाती है. इस परिवार को शुद्ध पेयजल भी नसीब नहीं है. गांव से काफी दूर पर स्थित कुआं से शकुन्ती देवी पानी लेकर आती हैं. शकुन्ती देवी बताती है कि कुआं का पानी गंदा रहता है, लेकिन कुआं के आलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. लिहाजा कुआं के पानी से उनके परिवार की प्यास बुझती है. इतना ठंड होने के बावजूद इस परिवार को सरकार से एक कंबल तक नहीं मिल पाया है.
इस आदिवासी परिवार की समस्या को लेकर जब हमने प्रखंड विकास पदाधिकारी मेघनाथ उरांव से बातचीत की तो उन्होंने कहा रंजय उरांव के पिता का राशन कार्ड बना हुआ है, जिसमे रंजय उरांव का भी नाम शामिल है. लेकिन किस वजह से उन्हें राशन नहीं मिल रहा है, इसकी जांच की जाएगी. उन्होंने कहा प्रधानमंत्री आवास के लिस्ट में उनका नाम नहीं होने की वजह से उन्हें आवास नहीं मिल पाया है. आवास दिलाने के लिए प्रशासन उस परिवार की हर संभव मदद करेगा. बहरहाल, अब प्रखंड विकास पदाधिकारी को कौन समझाएगा कि ये परिवार काफी समय से झोपड़ी में ही जीवन बसर कर रहे हैं, लेकिन अधिकारियों की नजर आजतक उस परिवार की परेशानी पर नही पड़ी. खैर, अब देखना अहम होगा कि प्रखंड विकास पदाधिकारी की कथनी के मुताबिक कब तक करणी का असर धरातल पर दिखता है और कब इस परिवार को सरकारी योजनाओं के लाभ से जोड़ा जाता है.
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