संकट में चतरा की 'लाइफलाइन', सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क?
चतरा जिला प्रशासन की अनदेखी और सड़क व परिवहन विभाग की लापरवाही का नतीजा है कि सड़क की सूरत-ए-हाल से पैदल यात्री से लेकर गाड़ी चालक सब परेशान हैं.
highlights
- सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क?
- दलदल बनी सड़क पर कैसे हो आवाजाही?
- हादसे को दावत दे रहा नेशनल हाईवे
Chatra:
चतरा जिला प्रशासन की अनदेखी और सड़क व परिवहन विभाग की लापरवाही का नतीजा है कि सड़क की सूरत-ए-हाल से पैदल यात्री से लेकर गाड़ी चालक सब परेशान हैं. चतरा जिले के व्यसत नेशलन हाइवेज़ में से एक है NH-99. इस सड़क पर यात्रा करना जंग लड़ने से कम नहीं. जरा सी चूक और आप हादसे का शिकार हो सकते हैं. इस हाईवे पर आवागमन करने से पहले इसकी बदहाल को देखकर ही राहगीरों और गाड़ी चालकों की रूह कांप जाती हैं, क्योंकि सड़क के नाम पर यहां दलदल और गड्ढों का अंबार है. जो हादसे को दावत देने का काम करते हैं.
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संकट में चतरा की 'लाइफलाइन'
ये बदहाली तब है, जब ये सड़क बलिक चतरा, डोभी, शेरघाटी, हंटरगंज, पटना, जहानाबाद, औरंगाबाद, बनारस और जिले के कारोबारियों के लिए भी एकमात्र आवाजाही का सहारा है. झारखंड को बिहार से जोड़ने वाली ये नेशनल हाईवे आज अपनी ही बदहाली पर आंसू बहा रहा है. लोगों की मानें तो एक घंटे की दूरी तय करने में उन्हें दो घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है. ये हालत हंटरगंज प्रखंड में महज 10 किलोमीटर के अंतराल पर दो जगहों पर है. पहला जोरी के पास पखा मोड़ और दूसरा डुमरी के पास. इन दोनों जगहों पर पुल निर्माण की शुरुआत भी की गई, लेकिन सालों से पुल निर्माण कार्य कछुएं की चाल चल रहा है.
सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क?
इस सड़क की बदहाली आम लोगों के साथ ही कारोबारियों के लिए परेशानी का सबब बन गई है. आस-पास के लोग गर्मियों में धूल फांकते हैं और बरसात में कीचड़ से सन जाते हैं. कई बार यहां भीषण हादसा हुआ है. आवाजाही करने वाले कई लोग यहां हादसे का शिकार हुए हैं, लेकिन आज तक लोगों की समस्या के निदान के लिए ना तो किसी जनप्रतिनिधि और ना ही किसी अधिकारी ने कोई पहल की है.
दलदल बनी सड़क पर कैसे हो आवाजाही?
एक तरफ सड़क बदहाल है और दूसरी ओर पुल निर्माण में लेट लतीफी हो रही है. जिससे लोगों में काफी नाराजगी है. हैरानी ज्यादा इसलिए भी होती है क्योंकि इसी सड़क से जिलाधिकारी से लेकर सूबे के आला अधिकारी, मंत्री और जनप्रतिनिधि गुजरते हैं, लेकिन किसी को सड़क की बदहाली पर ध्यान नहीं जाता. सवाल ये कि वोट मांगने वाले जनप्रतिनिधि और जनता की सेवा के लिए दफ्तर में बैठे अधिकारी क्या अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं.
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