सरायकेला प्रशासन की कचहरी तारीखों के बीच, ग्रामीण लड़ने को हो रहे मजबूर
सरायकेला प्रशासन की खामियों के बीच जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत आने वाले ऊपर शीला गांव के ग्रामीण कई वर्षों से प्रशासन की कचहरी का गवाह बन रहे हैं, जहां ग्रामीणों ने मुखर होकर अपने गांव में हो रहे पत्थर के अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोला.
highlights
- 8-10 वर्ष के बीच आंदोलन करने वाले ग्रामीणों के चेहरे पर मायूसी
- अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने वाले ग्रामीण झूठे
- ग्राम प्रधान से ग्राम प्रधान होने का सबूत मांगा जाता है
- कैसे हो रहा है दिन-रात अवैध खनन?
Saraikela:
सरायकेला प्रशासन की खामियों के बीच जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत आने वाले ऊपर शीला गांव के ग्रामीण कई वर्षों से प्रशासन की कचहरी का गवाह बन रहे हैं, जहां ग्रामीणों ने मुखर होकर अपने गांव में हो रहे पत्थर के अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोला. जिसके बाद तारीखों के भूल भुलैया में ऐसे फंसे कि ग्रामीण तारीखों पर प्रशासन के दरवाजे खड़े हैं और अवैध खनन करने वाले जमके अवैध खनन कर रहे हैं. मामला ऐसा कि भविष्य में कोई किसी भी अवैध कार्य के खिलाफ प्रशासन का दरवाजा खटखटाने से भी सोचेगा. स्क्रीन पर दिख रहा यह माइनिंग क्षेत्र राजनगर के ऊपर सिला गांव में मौजूद है. बताया जा रहा है कि सन 2014 से यहां अवैध खनन कर पत्थरों की माइनिंग की जा रही है, जिसके खिलाफ ग्रामीणों ने मोर्चा खोल रखा है.
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8-10 वर्ष के बीच आंदोलन करने वाले ग्रामीणों के चेहरे पर मायूसी
कई बरस बीत गए ग्रामीण अपनी आवाज को प्रशासन के बल पर बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ना ग्रामीणों की आवाज का कोई असर अवैध खनन करने वाले लोगों पर हुआ और ना ही प्रशासन का कोई निर्णय ग्रामीणों के हक में आया. लगभग 8 से 10 वर्ष के बीच आंदोलन करने वाले ग्रामीणों के चेहरे में मायूसी साफ देखी जा सकती है. अपनी आवाज पर पत्थरों की पिसाई की धूल जनता देख अब ग्रामीण काफी ज्यादा मायूस देखे जा रहे हैं.
अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने वाले ग्रामीण झूठे
जानकारी देते हुए एक ग्रामीण ने बताया कि हमारा क्षेत्र आदिवासी बहुल क्षेत्र है. यहां किसी प्रकार के उद्योग करने से पहले ग्राम सभा करने की नियमावली है, लेकिन बिना ग्राम सभा के ग्राम सभा के कागजात माइंस संचालकों ने बनवा लिया और उसे प्रशासन के सामने पेश करते हैं. खनन पदाधिकारी इस बात पर अरे बैठे हैं कि सभी नियमावली को पूर्ण करते हुए यहां खनन किया जा रहा है, जो पूरी तरह से सही है. बल्कि इस अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने वाले ग्रामीण ही झूठे हैं.
ग्राम प्रधान से ग्राम प्रधान होने का सबूत मांगा जाता है
जूस ग्रामसभा के कागजात खनन विभाग दिखा रहा है, उस ग्राम सभा में ऐसे लोगों के हस्ताक्षर हैं, जो नियमानुसार वयस्क ही नहीं हुए हैं. उनके हस्ताक्षर कौन से ग्राम सभा को सिद्ध करता है. यही नहीं वैसे लोगों के भी हस्ताक्षर दिखाए जा रहे हैं, जो धरती पर है ही नहीं फिर चीन लोगों की मौत हो चुकी है. उन्होंने हस्ताक्षर किया कैसे मामला प्रशासनिक कचहरी में है, जिसे शायद ग्रामीणों की बातें झूठी लगती है. जहां ग्रामीणों के द्वारा मांगे गए प्रश्नों का उत्तर तो विभाग नहीं देता है, लेकिन ग्रामीणों से उल्टे ग्राम सभा की सच्चाई साबित करने की बात की जाती है. गवाह के रूप में मौजूद होने वाले ग्राम प्रधान से ग्राम प्रधान होने का सबूत मांगा जाता है.
कैसे हो रहा है दिन-रात अवैध खनन?
मजबूर ग्रामीण अब हार चुके, जो उन्होंने कहा है कि कोई भी हमारी बातों को नहीं सुन रहा है. अब इस पूरे मामले में वे इतने थक गए हैं कि युद्ध करने के लिए अलावा उनके पास कोई और उपाय नहीं बचा है. अपने विरोध को दर्ज करने के लिए वे पारंपरिक हथियारों से लैस होकर लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन क्या यही झारखंड की सच्चाई है मजबूर और मशहूर लोगों के बीच कानून पूरी तरह से लाचार क्यों है. क्या इस पर यह जांच नहीं होनी चाहिए कि आखिर खनन करने के लिए जहां सरकार के द्वारा सभी नियमावली की किताबों को बंद कर दिया गया है. वहां खुली आंखों के सामने दिन रात अवैध खनन हो कैसे रहा है.
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