YouTuber मनीष कश्यप पर लगा NSA, जानिए-क्या है National Security Act ?
NSA कानून के किताब का ऐसा अधिनियम है जिसमें बेल नहीं होती. या तो आरोपी आरोप मुक्त होता है या फिर दूसरे केसों में बेल होने के बाद भी जेल में रहता है.
highlights
- देश विरोधी गतिविधियों में शामिल शख्स पर होती है NSA की कार्रवाई
- संदिग्ध को बिना अपराध कारित किए जेल जाना पड़ सकता है
- NSA की अवधि, 3 माह, 6 माह या 12 माह तक हो सकती है
- NSA के आरोपी को बेल नहीं मिलती
- हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट NSA के आरोपी को दे सकता है राहत
Patna:
NSA यानि National Security Act (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) देश के कानून की किताब की ऐसी धारा जिसमें किसी भी ऐसे शख्स की गिरफ्तारी जिससे देश की सुरक्षा को खतरा हो बिना एफआईआर दर्ज किए और बिना अपराध कारित किए लगाकर पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है. NSA के तहत देश विरोधी गतिविधियों में शामिल शख्स को तीन माह, छह माह अथवा साल भर तक के लिए न्यायिक हिरासत में रखा जा सकता है. हालांकि, हाईकोर्ट में एडवाइजरी के समक्ष यदि अपील करता है तो हाईकोर्ट सरकार को तलब करके ये बात पूछ सकती है कि आखिर शख्स को क्यों NSA के तहत हिरासत में रखा गया है? अगर सरकार की दलीलों से हाईकोर्ट संतुष्ट होता है तो आरोपी पर NSA जारी रहता है अन्यथा की स्थिति में हाईकोर्ट आरोपी को आरोप मुक्त कर देता है. दूसरे शब्दों में अगर कहें तो NSA किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार सुरक्षा एजेंसियों, पुलिस को देता है.
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3 माह से 12 माह तक की होती है NSA की अवधि
NSA कानून के किताब का ऐसा अधिनियम है जिसमें बेल नहीं होती. या तो आरोपी आरोप मुक्त होता है या फिर दूसरे केसों में बेल होने के बाद भी जेल में रहता है. NSA किसी पर समय के मुताबिक लगाया जाता है. ये समय 3 माह से लेकर 12 माह तक के लिए होता है. यानि कम से कम 3 माह और अधिकतम 12 माह तक के लिए किसी ऐसे व्यक्ति पर लगाया जा सकता है, जिसे सुरक्षा एजेंसियां ये समझे कि उससे देश को खतरा है. हालांकि, हाईकोर्ट के समक्ष अपील करने पर हाईकोर्ट आरोपी को आरोप मुक्त कर सकता है. कुल मिलाकर NSA के आरोपी को बेल नहीं मिलती.
इंदिरा गांधी ने बदली थी NSA एक्ट की परिभाषा
NSA ब्रिटिश शासन से जुड़ा एक्ट है. उस समय भी किसी घटना के होने से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार किये जाने का अधिकार सुरक्षा एजेसिंयों के पास था 1881 में ब्रिटिशर्स ने बंगाल रेगुलेशन थर्ड नाम का कानून बनाया गया, जिसमें घटना से पहले ही गिरफ्तारी की व्यवस्था थी. उसके बाद वर्ष 1919 में रोलेट एक्ट लाया गया. रोलेट एक्ट के आरोपी को ट्रायल तक की छूट नहीं थी. भारत के आजाद होने के बाद तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा 1950 में प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट लाया गया. उसके बाद जब 1980 में इंदिरा गांधी देश की पीएम बनीं तो उनकी सरकार ने 23 सितंबर 1980 को संसद से इसे पारित कराकर नया कानून बना दिया जिसे अब NSA के नाम से जाना जाता है.
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