Bihar News: बागमती फिर दिखाने लगी तेवर, बाढ़ से बचने के लिए लोग बना रहे नाव
नेपाल से बागमती नदी का पानी नामापुर पहुंचा तो लोगों का बाढ़ का डर भी सताने लगा. लोग सरकारी व्यवस्था छोड़ खुद ही व्यवस्था करने लगे हैं.
highlights
- बागमती फिर दिखाने लगी तेवर
- बाढ़ से बचने के लिए लोग बना रहे नाव
- 60-70 हजार रुपए में बनती है नाव
Samastipur :
नेपाल से बागमती नदी का पानी नामापुर पहुंचा तो लोगों का बाढ़ का डर भी सताने लगा. लोग सरकारी व्यवस्था छोड़ खुद ही व्यवस्था करने लगे हैं. लोगों ने बाढ़ क्षेत्र से निकलने के लिए नाव का निर्माण शुरू कर दिया है. समस्तीपुर जिले के कल्याणपुर प्रखंड स्थित नामापुर के लोग हर साल की तरह एक बार फिर सहमे हुए हैं. बागमती नदी उफान पर है और इतिहास गवाह रहा है कि जब-जब बागमती ने बागी तेवर अपनाये हैं इस इलाके में भारी तबाही आई है. इतिहास गवाह रहा है कि बागमती के रौद्र मंजर में खेत के खेत डूब गये, गांव का अस्तित्व मिट गया, फसलें बर्बाद हो गई. बागमती ने हर साल यहां तबाही मचाई है. इस बार भी बागमती की लहरों में दहशत की शोर है और इस शोर से नामापुर के लोग अच्छी तरह से वाकीफ हैं.
लोग तैयार कर रहे हैं नाव
बाढ़ और बागमती को नामापुर के लोगों ने अपनी नियती मान लिया है. हर बार बागमती के तेवर के सामने गांव के लोग झूकते हैं. इस बार बागमती के तेवर दिखाने से पहले ही यहां के लोग तैयारी में जुटे हैं. डेंगी बनाने का काम जोरों पर है. डेंगी यानि छोटी नाव. पटूआ यानि जूट की रस्सी से नाव के गैप को भरा जा रहा है. पटूआ भरने के बाद उसके ऊपर अलकतरा से रंगरोगन होगा. जिससे गैप पूरी तरह से भर जाएगा. इस तरह बाढ़ की तबाही से लोगों को बचाने के लिए एक नाव तैयार की जा रही है. नामापुर के शिबू सहनी के हाथों में हर साल इस मौसम में हथौड़ी और छेनी होती है. 15-20 दिनों में एक नाव बन कर तैयार होती है. शिबू बताते हैं कि कटाव शुरू होने के साथ ही उन्होंने गांव के लोगों को बचाने के लिए नाव बनाना शुरू कर दिया है और नाव बनाने के इस काम में उनका बेटा भी हाथ बंटा रहा है.
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60-70 हजार रुपए में बनती है नाव
अब चूकी सरकारी व्यवस्था का लाभ इन्हें मिला नहीं इसलिए सरकारी व्यवस्था छोड़ खुद ही व्यवस्था करने लगे हैं. शिबू साहनी हर साल गांव के लोगों को बचाने के लिए एक नाव बनाते हैं और इसी नाव के सहारे गांव के लोगों को बचाकर वे बांध तक पहुंचाएंगे. एक नाव के निर्माण में करीब 60-70 हजार रुपए का खर्च आता है. शांति और बागमती नदी से ये इलाका घिरा हुआ है. बाढ़ में दोनों नदियां एक हो जाती हैं और फिर इन नदियों को पार करना मुश्किल हो जाता है. बाढ़ में ज्यादातर लोग नाव पर ही निर्भर रहते हैं. करीब 6 हजार की आबादी वाले इस गांव का हर संपन्न लोग बाढ़ की सवारी के लिए अपनी नाव की व्यवस्था कर रखते हैं ताकि बाढ़ में फंसने पर किसी का मुंह न देखना पड़े.
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