Kachchatheevu Island: क्या बिगड़ सकते हैं भारत और श्रीलंका के संबंध? PM मोदी के बयान पर पड़ोसी मुल्क का जवाब
Kachchatheevu Island: कच्छतीवु द्वीप को लेकर भारत और श्रीलंका की तरफ से बयानबाजी का दौर जारी है...ऐसे में अगर बात आगे बढ़ती है तो दोनों देशों के संबंध बिगड़ने की आशंका है.
New Delhi:
Kachchatheevu Island: देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा काफी चढ़ा हुआ है. इस बीच कच्छतीवु द्वीप के मुद्दे ने राजनीतिक बयानबाजी को और हवा दे दी है. सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कच्छतीवु को लेकर देश की सबसे बड़ी पार्टी और विपक्षी दल कांग्रेस पर हमलावर हैं. चुनावी रैलियों के दौरान पीएम मोदी कच्छातिवु को लेकर कांग्रेस को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री का कहना है कि कांग्रेस ने जानबूझकर कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया. तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने दावा किया है कि मोदी सरकार इस क्षेत्र को फिर से भारत में मिलाने के सभी प्रयास कर रही है. बीजेपी नेता कच्छतीवु द्वीप को लेकर जिस तरह से आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं, उससे भविष्य में भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के साथ संबंध बिगड़ने का खतरा सताने लगा है.
श्रीलंका सरकार का पलटवार
भारत में कच्छतीवु को लेकर छिड़ी बहस के बीच श्रीलंका का बड़ा बयान आया है. श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे की कैबिनेट मंत्री जीवन थोंडामन ने कहा है कि कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका की सीमा में आता है. उन्होंने कहा कि हमारे भारत के साथ अच्छे संबंध हैं. इसके अलावा कच्छतीवु को लेकर अभी तक भारत की तरफ से कोई ऑफिशियल बातचीन नहीं की गई है. अगर भविष्य में ऐसा कुछ होता है तो विदेश मंत्रालय इसका जवाब देगा. दरअसल, श्रीलंका की तरफ से यह प्रतिक्रिया विदेश मंत्री एस. जयशंकर के उस बयान पर आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि इंदिरा सरकार ने 1974 में कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था और इस बात को कई सालों तक छिपाए रखा था. हालांकि द्वीप पर दोबारा दावा करने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में जयशंकर ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में विचारधीन बताया था.
कच्छतीवु द्वीप को भारत को लौटाने जैसा कोई श्रीलंका का कोई इरादा नहीं
वहीं, श्रीलंका सरकार में मंत्री डगलस देवानंद ने कहा कि कच्छतीवु द्वीप को भारत को लौटाने जैसा कोई श्रीलंका का कोई इरादा नहीं है. हालांकि अभी तक दोनों देशों के बीच कच्छतीवु द्वीप को लेकर कोई ऑफिशियल बातचीत नहीं हुई है. लेकिन जिस तरह से द्वीप पर अपने-अपने दावे को लेकर दोनों तरफ से बयानबाजी और दौर जारी है, वह दोनों देशों के संबंधों के लिहाज से अच्छे संकेत नहीं है. बल्कि ऐसे में दोनों देशों के रिश्ते में पड़ती खटास से इनकार नहीं किया जा सकता है.
संबंध बिगड़े तो फायदा उठा सकता है चीन
अगर भारत और श्रीलंका के संबंधों में खटास आती है तो चीन शायद ही इसका फायदा उठाने से चूकेगा. वैसे भी 2023 श्रीलंका आर्थिक संकट के बाद चीन वहां पहले से ज्यादा सक्रिय हो गया है. चीन ने श्रीलंका को भारी भरकम वित्तीय ऋण दिया हुआ है. इसके साथ ही चीन श्रीलंका में रडार बेस स्थापित करने समेत कई ऐसी परियोजनाओं को अंजाम देने में लगा है, जिसका भारतीय हितों पर सीथा प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर रखा है. हंबनटोटा के जरिए चीन की भारतीय सीमाओं तक सीधी पहुंच बनती है. चीनी कर्जे में दबा श्रीलंका अपने आप असहाय पाता है. ऐसे में अगर श्रीलंका के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ते हैं तो चीन वहां और ज्यादा सक्रिय हो सकता है और भारत विरोधी अपनी नीतियों को और ज्यादा प्रभाव बना सकता है.
क्या है कच्छतीवु द्वीप विवाद
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कच्छतीवु द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पड़ता है. यह रामेश्वरम से 32 किमी और श्रीलंका के जाफना से 62 किलोमीटर की दूरी पर है. हाल ही में एक तमिलनाडु में बीजेपी प्रमुख अन्नामलाई की तरफ से दायर आरटीआई में खुलासा हुआ है कि भारत सरकार ने 1974 में यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया था.
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