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मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं प्रियंका गांधी वाड्रा?

कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका गांधी हिमाचल और कर्नाटक की तरह, एमपी में भी मुद्दों की राजनीति के साथ सियासी रण में उतर चुकी हैं. जबलपुर और ग्वालियर चंबल क्षेत्र के बाद प्रियंका की अन्य क्षेत्रों में रैली जन सभाओं की तैयारियों का खांका खींच लिया गया.

Updated on: 30 Jul 2023, 07:46 PM

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछली बार जहां कांग्रेस पार्टी राज्य में जीतकर भी हार गई थी. वहीं इस बार उसे बड़े परिवर्तन की उम्मीद नजर आ रही है. हिमाचल और कर्नाटक की जीत से गदगद कांग्रेस पार्टी के लिए मध्य प्रदेश में भी प्रियंका गांधी वाड्रा खेवनहार बन सकती हैं. राज्य में लंबे समय बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की खेमेबाजी से तनाव मुक्त हुई कांग्रेस पार्टी ने इस बार प्रियंका गांधी को केंद्र में रखकर अपनी चुनावी रणनीति बनाई है.  इसकी बानगी आप मध्य प्रदेश में हाल ही में हुई उनकी रैलियों से देख सकते हैं. बीती 21 जुलाई को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ग्वालियर में हुंकार भरी थीं. वहीं, इससे पहले प्रियंका गांधी ने 12 जून को जबलपुर में एक रैली को संबोधित करके राज्य में कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरुआत की थी. जानकारों की मानें तो प्रियंका गांधी के लिए कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में हैट्रिक बनाने के लिए बड़ा सियासी मैदान तैयार कर दिया है. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के बाद कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश में एक बार फिर से वही करिश्मा दोहराएंगी, जो इन दो राज्यों में कर चुकी हैं. यही वजह है कि पार्टी ने प्रियंका गांधी के लिए जन सभाओं और रैलियों और सम्मेलनों के लिए बड़ी रणनीति बनाई है. 

जानकारों के मुताबिक प्रियंका गांधी जिस तरह से दूसरे नेताओं पर सियासी प्रहार करने की बजाय मुद्दों की बात करके जनता में अपनी पैठ बनाती हैं, वही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. आपको बता दें कि प्रियंका गांधी हिमाचल प्रदेश में भी जनता के मुद्दों की बात करते हुए लोगों के बीच में पहुंची थीं. ठीक इसी तरह प्रियंका गांधी ने कर्नाटक में भी आरोप-प्रत्यारोप से दूर जनता की मुख्य समस्याओं को दूर करने की बात कही थी. इन दोनों राज्यों में प्रियंका गांधी ने अपनी रैलियों में राज्य की जनता के लिए जो वादे किए थे, वो सरकार बनने पर पूरे भी होने लगे. अब मध्यप्रदेश में भी प्रियंका गांधी सिर्फ जनता के मुद्दों और समस्याओं की बात कर रही हैं. हालांकि बीजेपी ने राज्य में प्रियंका की रैलियों को लेकर एमपी कांग्रेस के नेताओं को ही कटघरे में खड़ कर दिया है. बीजेपी प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि प्रियंका गांधी को यहां लेकर आने से एक बात साफ हो गई है कि प्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे नेता चूके हुए नेता हो गए हैं. खैर ये तो बात रही सत्ता और विरोधी दलों के अपने-अपने दावों और तैयारियों की. अब आपको बताते हैं कि जमीन पर क्या हकीकत है.

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2018 में कांग्रेस के नेतृत्व में बनी थी सरकार

अगर हम वर्तमान में मध्य प्रदेश के सियासी समीकरणों को देखें तो राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास 130 सीटें हैं. जबकि कांग्रेस के खाते में 96 सीट हैं. वहीं एक सीट बीएसपी और एक निर्दलीय के खाते में हैं. हालांकि साल 2018 के नतीजों के वक्त आंकड़े कुछ और थे. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सबसे ज्यादा 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि बीजेपी 109 सीटों पर सिमट गई थी. बीएसपी 2, सपा 1 और निर्दलीय के खाते में 4 सीट गई थी. कांग्रेस नेता कमलनाथ ने उस वक्त बीएसपी के 2, सपा का एक और 4 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी. 17 दिसंबर 2018 को कमलनाथ ने राज्य के सीएम के तौर पर शपथ ली. इसके साथ ही मध्य प्रदेश में 15 सालों के सूखे के बाद आखिरकार कांग्रेस के हाथ में सत्ता आ ही गई, लेकिन ये सरकार ज्यादा दिन ना चल सकी. मार्च 2020 तक आते-आते पार्टी के 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. ये सभी विधायक कांग्रेस के बागी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे से थे. दरअसल सिंधिया और कमलनाथ के बीच सीएम पद को लेकर रस्साकशी चल रही थी. लेकिन उस वक्त कांग्रेस आलाकमान ने ज्योतिरादित्य को किसी तरह समझा दिया था और कमलनाथ को कुर्सी सौंप दी थी. सिंधिया ने दो साल तक दिल पर पत्थर रखकर कमलनाथ की सरकार चलने दी. लेकिन दो साल बाद सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ खुली बगावत करते हुए ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के 22 विधायकों का इस्तीफा करवा दिया. संख्याबल ना होने की स्थिति में 20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 

अब विधानसभा में सबसे बड़ा दल होने के नाते राज्यपाल ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया. 23 मार्च को बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की कमान संभाल ली. जुलाई 2020 तक आते-आते कांग्रेस के 3 और विधायकों ने पार्टी छोड़ विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. मतलब कांग्रेस खेमे के 25 विधायक इस्तीफा दे चुके थे. अब इन सीटों पर उपचुनाव होने थे. इसके साथ तीन अन्य सीटें भी खाली हुईं, इन सीटों पर निर्वाचित विधायकों का कोविड कार्यकाल में देहांत हो गया था. अब उपचुनाव के लिए सीटों की संख्या हो चुकी थी 28. साल 2020 के नवंबर महीने में इन 28 सीटों पर उपचुनाव हुए, इनमें से 19 सीटें बीजेपी के खाते में गईं, वहीं कांग्रेस के पास 9 सीटें आईं. यही वजह है कि वर्तमान में विधानसभा में बीजेपी का आंकड़ा 109 से 130 पहुंच गया. 

हिमाचल और कर्नाटक का करिश्मा मध्य प्रदेश में दोहराएंगी कांग्रेस

अब शिवराज सिंह की सरकार का कार्यकाल भी पूरा होने वाला है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पास अब ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा कोई बड़ा बागी नेता भी नहीं है. इसलिए पार्टी को ये लगता है कि इस बार उसके लिए मध्य प्रदेश का चुनावी मैदान खाली है. यही वजह है कांग्रेस यहां भी हिमाचल और कर्नाटक वाले अपने 5 गारंटी फार्मूले को लागू करने की बात कह रही है. कांग्रेस ने 12 जून को मध्य प्रदेश में अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की, जब पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने जबलपुर में एक जनसभा को संबोधित किया. जानकारों की मानें तो कांग्रेस पूरी तरह से प्रदेश में U + 5G प्लान पर काम कर रही है. आपको बताते हैं क्या है कांग्रेस का ये यू+5जी प्लान...दरअसल इसमें यू से मतलब है यूनिटी...इसका मतलब है कि सभी को एकजुट रखना है. और 5G का मतलब पांच गारंटी है. ये वही पांच गारंटी है जो कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक में जनता को दी है. अब एमपी में भी इन्हीं दो रणनीति पर पार्टी आगे बढ़ रही है. 

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सियासी रूप से कांग्रेस के लिए चंबल क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता मानते हैं कि पांच गारंटी का वादा जब पार्टी के बड़े नेता द्वारा जनता के बीच जाकर किया जाता है तो उसका अलग संदेश जाता है. लेकिन इसके साथ ही वो ये भी मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में लोकल लीडरशिप का खासा रोल रहता है. क्योंकि केंद्र के नेता की पहुंच राज्य के हर जिले, गांव तक नहीं होती है. लेकिन जो स्थानीय नेता होते हैं, उनकी पकड़ नतीजों में अहम रोल निभाती है. 

वहीं दूसरी तरफ कुछ जानकारों का कहना है कि सियासी रूप से कांग्रेस के लिए ग्वालियर चंबल क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है. उनका मानना है कि ये इलाका न सिर्फ दलित वोटरों के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि कांग्रेस के लिए एक संदेश देने के लिए भी ये क्षेत्र इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण है. बता दें कि ये वही क्षेत्र है जहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को सबसे कमजोर किया था. अब अगर प्रियंका गांधी के माध्यम से इस क्षेत्र में कांग्रेस खुद को मजबूत करती हैं, तो ये संदेश सिर्फ मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि आने वाले चुनावों में अन्य राज्यों और लोकसभा के चुनावों के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगा. 21 जुलाई को ग्वालियर की रैली में प्रियंका गांधी ने स्थानीय भाषा में स्पीच की शुरुआत की, उन्होंने कहा कि हम नेताओं में सभ्यता, सरलता और सादगी ढूंढते हैं. अब परिस्थितियां बदल गई हैं. हम मंच पर आते हैं कि तो एक-दूसरे की बुराई गिनाते हैं. उन्होंने कहा कि आज देश में बड़े बिजनेसमैन को संपत्ति सौंप दी जा रही है. देश में आजकल भौकाल की राजनीति है, जनता की समस्याएं डूब रही हैं.

मालवा क्षेत्र में प्रियंका गांधी को होगी बड़ी सभा

कांग्रेस पार्टी से जुड़े रणनीतिकारों का मानना है कि प्रियंका गांधी की ग्वालियर और जबलपुर की दो रैलियों के बाद अब जल्द ही तीसरी रैली मालवा इलाके में की जा सकती है. पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से पहुंचेंगी. वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है प्रियंका गांधी ने जिस तरीके से हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में सियासी रूप से पार्टी को बढ़त दिलाई है, उसी का इस्तेमाल मध्यप्रदेश में भी किया जाना चाहिए. ताकि पार्टी मजबूती के साथ यहां पर वापसी कर सके और उसका संदेश न सिर्फ अगले राज्यों में दिया जाए बल्कि लोकसभा के चुनावों के लिहाज से भी उसको आगे बढ़ाया जाए.  

नवीन कुमार की रिपोर्ट